गांवों की अर्थव्यवस्था और देश की चीनी मिलों की रीढ़ है गन्ना. ये फसल जितनी लंबी होती है, उतनी ही मेहनत भी मांगती है. लेकिन अगर शुरुआत सही हो जाए, तो इसका मीठा फल तय है. गन्ना बोने का समय, तरीका और देखभाल हर कदम पर थोड़ा ध्यान जरूरी है. आइए जानते हैं कि इस फसल को उगाने की शुरुआत किसान को कैसे करनी चाहिए.
कब करें गन्ने की बोआई?
गन्ना बोने का सबसे अच्छा समय होता है बसंत ऋतु यानी फरवरी-मार्च या फिर पतझड़ में सितंबर-अक्टूबर के बीच. कुछ किसान इसे बरसात की शुरुआत में भी लगाते हैं, क्योंकि उस वक्त मिट्टी में नमी होती है जो अंकुरण के लिए जरूरी होती है. बरसात के दिनों में भी बोआई सफल होती है, बशर्ते खेत की जल निकासी ठीक से हो.
बीज का सही चुनाव
गन्ने की बोआई के लिए बीज गन्ने के ही अच्छे और स्वस्थ पौधों से लिए जाते हैं. इन बीजों को ‘सेट’ कहा जाता है, जो एक-एक फुट लंबे होते हैं और जिनमें कम से कम दो से तीन आंखें (बड्स) होती हैं. ये आंखें ही आगे चलकर पौधे बनती हैं. बीज 8 से 10 महीने पुराने गन्ने से लिए जाएं तो बेहतर परिणाम मिलते हैं. बीज को बीमारी से बचाने के लिए बोआई से पहले कुछ किसान इन्हें हल्के फफूंदनाशक घोल में भी भिगोते हैं.
गन्ने की किस्में
अच्छी पैदावार और मिठास पाने के लिए केवल सही किस्म (variety) का चयन भी बहुत जरूरी है.
अगेती किस्में
अगेती किस्मों की खासियत ये होती है कि ये 10 से 11 महीने में ही कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. इसमें चीनी की मात्रा ज्यादा होती है और यह चीनी मिलों के शुरुआती सीजन के लिए बेहतर रहती हैं. उत्तर भारत में Co 0238, जिसे ‘कौशाम्बी’ भी कहा जाता है, किसानों की पहली पसंद बन चुकी है. यह किस्म न केवल जल्दी तैयार होती है, बल्कि इसमें रस भी ज्यादा और शक्कर की मात्रा अधिक होती है.
इसके अलावा Co 0118 (राजगंगा) भी एक लोकप्रिय अगेती किस्म है जो अच्छी उपज के साथ ज्यादा मिठास देती है. वहीं Co 89003 भी एक भरोसेमंद अगेती वैरायटी है, जो किसानों को कम समय में अच्छी कमाई का मौका देती है.
मध्यम अवधि वाली किस्में
जो किसान अगेती और पछेती किस्मों के बीच एक संतुलन चाहते हैं, उनके लिए मध्यम अवधि वाली किस्में सबसे बेहतर विकल्प हैं. ये किस्में 12 से 14 महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं.
दक्षिण भारत में Co 86032 (नैवेली) काफी लोकप्रिय है. यह किस्म मोटे डंठल, अधिक रस और अच्छी उपज के लिए जानी जाती है. उत्तर भारत के लिए Co 05011 एक उन्नत वैरायटी है जो चीनी की मात्रा अधिक देती है और मजबूत पौध संरचना के कारण खेत में गिरती नहीं है.
Co 99004 भी उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के किसानों के बीच लोकप्रिय होती जा रही है, क्योंकि यह उत्पादन और मिठास दोनों का बेहतरीन संतुलन देती है.
पछेती किस्में
कुछ किसानों को गन्ने की बुवाई देर से करनी पड़ती है, या वे लंबी अवधि की खेती के लिए तैयार होते हैं. ऐसे किसानों के लिए पछेती किस्में बेहद उपयोगी होती हैं. इनकी फसल 14 से 16 महीने में तैयार होती है, लेकिन मिठास और उत्पादन में कोई समझौता नहीं होता.
BO 91 बिहार में बहुत पसंद की जाती है, क्योंकि यह पछेती होने के बावजूद चीनी की मात्रा अच्छी देती है. वहीं CoS 767 एक बहुपयोगी किस्म है जो मध्यम से पछेती अवधि में भी बेहतर प्रदर्शन करती है.
विशेष किस्में
कुछ इलाकों में सूखा, जलभराव या जैविक खेती जैसी परिस्थितियां होती हैं. इन विशेष परिस्थितियों के लिए कुछ गन्ने की वैरायटी. भी विशेष रूप से तैयार की गई हैं. जैसे Co J 64 सूखे की स्थिति को झेलने वाली किस्म मानी जाती है. वहीं Co 238 जैविक खेती करने वालों के लिए आदर्श किस्म है, जो कम रासायनिक उपयोग में भी अच्छी पैदावार देती है.
CoPb 92 खास तौर पर पंजाब क्षेत्र के लिए बनाई गई है, जो वहां की मिट्टी और जलवायु के अनुसार बेहतरीन प्रदर्शन करती है.
खेत की तैयारी
गन्ने की अच्छी फसल के लिए मिट्टी का तैयार होना बेहद जरूरी होता है. पहले खेत की गहरी जुताई की जाती है ताकि नीचे की मिट्टी भी खुल जाए. फिर पाटा चलाकर उसे समतल किया जाता है. इसके बाद गोबर की सड़ी खाद या जैविक खाद डालकर मिट्टी की ताकत बढ़ाई जाती है. ध्यान रहे कि खेत में पानी रुकने की जगह न हो, क्योंकि जलभराव गन्ने के लिए हानिकारक होता है.
कैसे करें बोआई?
गन्ने की बोआई दो तरीकों से की जाती है, समतल विधि और कट्ठी विधि. समतल विधि में खेत में 1.2 से 1.5 मीटर की दूरी पर कतारें बनाई जाती हैं और उन कतारों में 4-5 इंच गहरा नाली बनाकर बीज रख दिए जाते हैं. ऊपर से हल्की मिट्टी से ढंक दिया जाता है.
वहीं कट्ठी विधि में थोड़ी गहरी और चौड़ी नालियां बनाई जाती हैं जिनमें बीजों को इस तरह रखा जाता है कि सभी आंखें मिट्टी के संपर्क में आएं. यह विधि खास तौर पर गर्म और कम पानी वाले इलाकों में ज्यादा अपनाई जाती है.
सिंचाई और देखभाल
गन्ने की फसल को शुरू में ज्यादा ध्यान और पानी चाहिए होता है. बोआई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करना जरूरी होता है. फिर हर 10 से 12 दिन पर पानी देते रहना चाहिए, खासकर गर्मी के समय में. अगर बरसात का मौसम हो, तो यह ध्यान रखना पड़ता है कि खेत में कहीं पानी जमा न हो जाए.
खाद और पोषण
गन्ने की फसल लंबी अवधि की होती है, इसलिए उसे लंबे समय तक पोषण की जरूरत होती है. शुरुआत में गोबर की खाद के साथ-साथ यूरिया, डीएपी और पोटाश जैसी उर्वरकें दी जाती हैं. कुछ किसान जैविक तरल खाद या जीवामृत का भी इस्तेमाल करते हैं जो पर्यावरण के लिए सुरक्षित और पौधों के लिए लाभकारी होते हैं.
रोग और कीट नियंत्रण
गन्ने में दीमक, टॉप बोरर और शूट बोरर जैसे कीट अक्सर नुकसान पहुंचाते हैं. इनके अलावा फफूंदी और सड़न जैसी बीमारियां भी आ सकती हैं. ऐसे में समय-समय पर फसल का निरीक्षण करना और जरूरत पड़ने पर जैविक या रासायनिक दवाइयों का छिड़काव करना जरूरी होता है. कई किसान अब प्राकृतिक उपाय जैसे नीम का अर्क या लहसुन-जीरा स्प्रे भी इस्तेमाल कर रहे हैं.
गन्ने की बोआई कोई जटिल प्रक्रिया नहीं है, लेकिन इसमें अनुशासन और सही जानकारी की जरूरत होती है. अगर किसान खेत की तैयारी, बीज चयन, सिंचाई और पोषण पर ध्यान दें तो गन्ने की फसल न सिर्फ अच्छी होती है, बल्कि बाजार में अच्छा दाम भी देती है.