देसी मक्का से ज्यादा फायदेमंद है स्वीट कॉर्न, एक एकड़ में 2 लाख रुपये की कमाई
स्वीट कॉर्न दरअसल मक्के की ही एक मीठी किस्म होती है, जिसे दूधिया अवस्था में तोड़ लिया जाता है यानी जब दाने पूरी तरह पके नहीं होते. इसका स्वाद हल्का मीठा होता है और यह स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है.
मानसून की पहली बूंद के साथ ही जैसे ही भुट्टे की खुशबू सड़क किनारे ताजगी भर देती है, ठीक वैसे ही किसानों के लिए भी यह समय अवसर लेकर आता है. जी हां, हम बात कर रहे हैं “स्वीट कॉर्न” की खेती की, जो अब पारंपरिक मक्के की तुलना में ज्यादा मुनाफा देने लगी है. अगर आप किसान हैं या खेती में कम निवेश में अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं, तो स्वीट कॉर्न की खेती आपके लिए सुनहरा मौका हो सकती है.
क्या है स्वीट कॉर्न और क्यों है इतना खास?
स्वीट कॉर्न दरअसल मक्के की ही एक मीठी किस्म होती है, जिसे दूधिया अवस्था में तोड़ लिया जाता है यानी जब दाने पूरी तरह पके नहीं होते. इसका स्वाद हल्का मीठा होता है और यह स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है. इसी कारण से इसकी मांग भारत ही नहीं, विदेशों में भी लगातार बढ़ रही है. रेस्टोरेंट, होटल्स और स्ट्रीट फूड में इसकी खपत तेजी से बढ़ी है.
खेती कैसे करें?
स्वीट कॉर्न की खेती लगभग मक्का जैसी ही होती है. फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें फसल को जल्दी तोड़ लिया जाता है. बुवाई के लिए जून-जुलाई (खरीफ) और रबी दोनों सीजन उपयुक्त हैं. इसकी अच्छी उपज के लिए खेत में जल निकासी की व्यवस्था जरूरी है. इसके अलावा कम समय में तैयार होने वाली और कीट-प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें.
बुवाई का सही समय और खेती के लिए उपयुक्त मौसम
उत्तर भारत में स्वीट कॉर्न की खेती मुख्य रूप से खरीफ सीजन में की जाती है, जिसकी बुवाई जून से जुलाई के बीच होती है. वहीं रबी सीजन में इसकी बुवाई अक्टूबर-नवंबर में भी की जा सकती है. यह फसल गर्म और आर्द्र मौसम को पसंद करती है, इसलिए मानसून की शुरुआत इसके लिए आदर्श समय माना जाता है.
खेत की तैयारी और मिट्टी का चयन
स्वीट कॉर्न की अच्छी फसल के लिए खेत का समतल और जलनिकासी वाला होना जरूरी है. इसे ऐसी जमीन में बोना चाहिए जो हल्की दोमट मिट्टी हो और जिसमें पानी रुके नहीं. खेत की 2-3 बार गहरी जुताई कर उसमें गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालना चाहिए, ताकि मिट्टी की उर्वरता बढ़े.
बीज का चुनाव और बोने की विधि
फसल की सफलता बहुत हद तक बीज की गुणवत्ता पर निर्भर करती है. इसीलिए किसानों को चाहिए कि वे प्रमाणित, कीटरोधी और जल्दी पकने वाली उन्नत किस्में चुनें. बीज बोने से पहले उन्हें फफूंदनाशक से उपचारित कर लेना चाहिए. बीजों को 3-4 सेंटीमीटर गहराई में बोया जाता है और पौधों के बीच लगभग 20-25 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है, ताकि पौधों को हवा और रोशनी मिल सके.
सिंचाई और देखभाल में लापरवाही न करें
बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए. इसके बाद हर 7 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई जरूरी है, खासकर जब पौधे फूलने और भुट्टा बनने की अवस्था में हों. खेत में खरपतवार न उगने दें और नियमित निंदाई करते रहें. सफेद मक्खी और स्टेम बोरर जैसे कीटों से फसल को बचाने के लिए जैविक उपायों या सुरक्षित कीटनाशकों का प्रयोग किया जा सकता है.
65 दिन में फसल तैयार, कटाई का समय है बेहद जरूरी
स्वीट कॉर्न की कटाई उसके दानों की दूधिया अवस्था में की जाती है, जब वह पूरी तरह से न पका हो लेकिन दाने भर चुके हों. आमतौर पर यह समय बुवाई के 60 से 70 दिन बाद आता है. अगर आप कटाई में देरी करते हैं तो दाने सख्त हो जाते हैं और मिठास कम हो जाती है, जिससे बाजार भाव पर असर पड़ता है.
चारे से भी होती है कमाई
स्वीट कॉर्न का चारा भी बहुत पौष्टिक होता है. जानवर इसे बड़े चाव से खाते हैं और यह दूध उत्पादन बढ़ाने में भी सहायक होता है. इसके अलावा, खेत की मेड़ों पर गेंदा फूल लगाकर सफेद मक्खियों को दूर रखा जा सकता है, जिससे दोहरा फायदा होता है- कीट नियंत्रण और फूलों से अतिरिक्त आमदनी.
बाजार में डिमांड और सीधी बिक्री
स्वीट कॉर्न की डिमांड न केवल स्थानीय मंडियों में बल्कि रेस्टोरेंट, होटल और प्रोसेसिंग यूनिट्स में भी लगातार बनी रहती है. किसान चाहे तो सीधे इनसे संपर्क कर सीधी बिक्री के जरिए और ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.
कम लागत, ज्यादा मुनाफा
हरियाणा के किसानों ने 20 हजार रुपये प्रति एकड़ की लागत में स्वीट कॉर्न की खेती शुरू की और आज सालाना करीब 4 लाख रुपये प्रति एकड़ तक कमा रहे हैं. वे साल में तीन बार इसकी फसल उगाते हैं. पहले एक एकड़ में शुरू किया और अब पांच एकड़ तक विस्तार कर चुके हैं.