फसल बीमा फर्जीवाड़ा: नदी-बंजर जमीन पर भी कराया गया बीमा, 1 लाख से ज्यादा पॉलिसी कैंसिल

कृषि विभाग की ओर से कराई गई जांच में अब तक खरीफ 2025 की 1,05,361 फसल बीमा पॉलिसी रद्द की जा चुकी हैं. पहले महोबा और झांसी में गड़बड़ियों का खुलासा हुआ था, लेकिन अब ललितपुर और हमीरपुर जैसे जिलों में भी जांच शुरू कर दी गई है.

नई दिल्ली | Published: 23 Dec, 2025 | 03:13 PM

Crop insurance scam: उत्तर प्रदेश में फसल बीमा योजना को लेकर सामने आ रही गड़बड़ियों ने प्रशासन और किसानों दोनों को झकझोर कर रख दिया है. जिन योजनाओं का मकसद किसानों को प्राकृतिक आपदाओं और फसल नुकसान से सुरक्षा देना था, वहीं अब कुछ लोगों ने उन्हें अवैध कमाई का जरिया बना लिया. जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे बेइमानी की परतें खुलती जा रही हैं. हालात ऐसे बन गए हैं कि अब अफसरों पर भी कार्रवाई की तलवार लटकती नजर आ रही है.

एक लाख से ज्यादा बीमा पॉलिसी रद्द

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कृषि विभाग की ओर से कराई गई जांच में अब तक खरीफ 2025 की 1,05,361 फसल बीमा पॉलिसी रद्द की जा चुकी हैं. पहले महोबा और झांसी में गड़बड़ियों का खुलासा हुआ था, लेकिन अब ललितपुर और हमीरपुर जैसे जिलों में भी जांच शुरू कर दी गई है. जिला स्तर पर जिलाधिकारियों की रिपोर्ट के आधार पर बीमा कंपनियां लगातार पॉलिसी रद्द कर रही हैं. अधिकारियों का कहना है कि जांच पूरी होने के बाद यह संख्या और बढ़ सकती है.

सरकारी और बंजर जमीन पर भी कराया गया बीमा

जांच में सामने आया है कि कई जगहों पर नदी, बंजर भूमि, रेलवे की जमीन, सरकारी जमीन और यहां तक कि सांसदों के नाम दर्ज भूमि पर भी फसल बीमा करा दिया गया. इन जमीनों पर खेती होना संभव ही नहीं है, इसके बावजूद कागजों में फसल दिखाकर करोड़ों रुपये का क्लेम ले लिया गया. अकेले महोबा जिले में करीब 40 करोड़ रुपये के गलत क्लेम की बात सामने आई है. इस मामले में कई थानों में FIR दर्ज की जा चुकी हैं और अब जांच का दायरा और बढ़ाया जा रहा है.

अफसरों की भूमिका भी जांच के घेरे में

सूत्रों के मुताबिक, यह गड़बड़ी बिना स्थानीय स्तर पर मिलीभगत के संभव नहीं थी. इसलिए अब सिर्फ किसानों या बिचौलियों पर नहीं, बल्कि संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका की भी गहन जांच की जा रही है. प्रशासनिक स्तर पर यह माना जा रहा है कि यदि लापरवाही या मिलीभगत साबित होती है, तो अफसरों पर कड़ी कार्रवाई तय है.

प्रीमियम और क्लेम के आंकड़ों ने बढ़ाई चिंता

आंकड़ों पर नजर डालें तो स्थिति और गंभीर दिखाई देती है. खरीफ 2024-25 में लाखों किसानों ने सैकड़ों करोड़ रुपये का प्रीमियम जमा किया और बड़ी राशि का क्लेम लिया गया. वहीं खरीफ 2025-26 में भी लाखों किसानों ने बीमा कराया है और क्लेम प्रक्रिया जारी है. इन्हीं आंकड़ों के बीच फर्जीवाड़े के खुलासे ने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

पोर्टल में बदलाव की तैयारी

सरकार ने इस तरह की गड़बड़ियों को रोकने के लिए तकनीकी सुधार का रास्ता चुना है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और मौसम आधारित फसल बीमा योजना के पोर्टल में बदलाव का प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा गया है. अब जमीन के डिजिटल रिकॉर्ड को सीधे बीमा पोर्टल से जोड़ा जाएगा. जैसे ही खाता संख्या डाली जाएगी, जमीन का पूरा विवरण सामने आ जाएगा. इससे यह साफ हो सकेगा कि जमीन कृषि योग्य है या नहीं और असली मालिक कौन है. बीमा स्वीकृति से पहले संबंधित व्यक्ति को सूचना भी दी जाएगी.

किसानों के भरोसे की परीक्षा

इस पूरे मामले ने ईमानदार किसानों को सबसे ज्यादा आहत किया है. कई किसान कहते हैं कि फर्जीवाड़े की वजह से असली जरूरतमंदों को समय पर क्लेम नहीं मिल पाता. अब सरकार और कृषि विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि योजना पर किसानों का भरोसा फिर से कायम किया जाए.

फिलहाल जांच जारी है और आने वाले दिनों में और बड़े खुलासों की संभावना जताई जा रही है. प्रशासन का दावा है कि सख्त कार्रवाई और तकनीकी सुधार के जरिए फसल बीमा योजना को फिर से पारदर्शी बनाया जाएगा, ताकि इसका असली लाभ उन्हीं किसानों तक पहुंचे, जिनके लिए यह योजना बनाई गई थी.

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