ओलावृष्टि से तबाह हुई सेब-चेरी की फसलें, कश्मीरी किसान बोले- कहां है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना?

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) साल 2016 से देश के अन्य हिस्सों में लागू है, लेकिन कश्मीर में यह अब तक जमीन पर नहीं उतर पाई है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 10 Jun, 2025 | 08:05 AM

कश्मीर घाटी के किसानों पर मौसम ने फिर से कहर बरपाया है. शोपियां जिले में 2 जून को आई तेज ओलावृष्टि ने सेब और चेरी की बंपर फसल को ऐसा नुकसान पहुंचाया कि सैकड़ों किसानों की मेहनत एक ही दिन में मिट्टी में मिल गई. जहां सेब के बाग उजड़ गए, वहीं लाल-लाल चेरी के पेड़ अब सूने खड़े हैं.

किसानों ने सरकार से अपील की है कि उन्हें प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए कोई ठोस व्यवस्था की जाए. उनका कहना है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) अभी तक कश्मीर में लागू नहीं हो पाई है, जिसकी उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है. हर बार नुकसान होने पर किसान अकेले ही उसका बोझ उठाते हैं, और यह उनके लिए अब असहनीय होता जा रहा है.

एक झटके में उजड़ गई मेहनत की कमाई

हंडेव, डोबीपोरा, अलशिपोरा, वादीपोरा और द्राणी जैसे इलाकों में किसान हर साल उच्च गुणवत्ता वाला सेब और चेरी उगाते हैं, लेकिन इस बार आसमान से बरसे संगमरमर जैसे ओलों ने उनकी मेहनत को चूर-चूर कर दिया. शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक, चेरी को करीब 90 फीसदी और सेब को 80 फीसदी से अधिक नुकसान हुआ है.

“हमारी रोजी-रोटी चली गई”- किसानों की पीड़ा

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार कई किसानों ने सोशल मीडिया पर रोते हुए वीडियो शेयर किए हैं, जिसमें वे फसल बर्बादी दिखा रहे हैं और सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. एक किसान पीरजादा शब्बीर ने बताया, “हमें मुआवजे के नाम पर 1000 या 1500 रुपये मिलते हैं, जबकि हमारी लागत ही हजारों में होती है. यह मजाक से कम नहीं है.”

कश्मीर से गायब योजना

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) साल 2016 से देश के अन्य हिस्सों में लागू है, लेकिन कश्मीर में यह अब तक जमीन पर नहीं उतर पाई है. वजह साफ है बीमा कंपनियां या तो रुचि नहीं लेतीं या बहुत ऊंचे प्रीमियम की मांग करती हैं, जिसे सरकार नकार देती है. इसी वजह से कश्मीर के किसानों को हर साल प्राकृतिक आपदाओं के बाद खुद ही नुकसान झेलना पड़ता है.

अब क्या उम्मीद करें किसान?

बागवानी विभाग नुकसान का विस्तृत आकलन कर रहा है और सरकार का कहना है कि वह फिर से बीमा योजना लागू करने की कोशिश कर रही है. लेकिन किसानों की मांग है कि इस बार सिर्फ आश्वासन नहीं, ठोस कदम उठाए जाएं. जब तक फसल बीमा जैसी योजनाएं लागू नहीं होतीं, तब तक हर साल प्राकृतिक आपदाएं उन्हें चोट करती रहेंगी.

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