अरहर की खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. बाजार में भी अरहर की मांग साल भर रहती है. ऐसे में किसान के लिए ये जानकारी करना जरूरी है कि अरहर की कौन सी ऐसी किस्में हैं जिनकी खेती करके किसान अच्छी पैदावार कर सकते हैं. अरहर की कुछ ऐसी उन्नत किस्में हैं जिनकी बुवाई से किसान अच्छे उत्पादन के साथ-साथ अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं. वैसे तो अरहर की बुवाई खरीफ सीजन में जून के महीने तक कर देनी चाहिए लेकिन अगर किसी वजह से किसानों को बुवाई करने में देरी हो जाए को वे जुलाई के पहले 15 दिन में भी अरहर की बुवाई कर सकते हैं. तो चलिए आज बात कर लेतें हैं अरहर की पांच उन्नत किस्मों और उनकी पैदावार की.
पूसा 992
पूसा 993 अरहर दाल की एक ऐसी किस्म है जिसे साल 2005 में विकसित किया गया था. इसके दाने मोटे, गोल, चमकदार और भूरे रंग के होते हैं. पूसा 992 बुवाई के करीब 140 से 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. बात करें इसकी पैदावार की तो प्रति एकड़ फसल पर करीब 7 क्विंटल तक उत्पादन होता है.
पूसा 2001
अरहर की इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) ने साल 2006 में विकसित किया था. पूसा 2001 को पूसा अरहर-16 के नाम से भी जाना जाता है. खेती के लिहाज से अरहर की इस किस्म को अच्छा माना जाता है. यह किस्म बुवाई के करीब 140 से 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसकी प्रति एकड़ फसल से लगभग 8 क्विंटल उत्पादन होता है.
आईपीएल 203
उत्पादन के मामले में आईपीएल 203 सबसे अच्छी किस्म है. यह अरहर की एक उन्नत किस्म है जो कि रोगमुक्त है . इसकी खेती से किसानों को ज्यादा उपज मिलती है. अरहर की इस किस्म का विकास केंद्रीय दलहन अनुसंधान संस्थान ने किया था.आईपीएल 203 बुवाई के करीब 10 महीने बाद बन कर तैयार होती है. मु्ख्य रूप से इसकी खेती बुंदेलखंड में की जाती है. इसकी प्रति एकड़ फसल से करीब 25 से 26 क्विंटल उपज देती है जो कि अरहर की अन्य किस्मों के मुकाबले बहुत ज्यादा है.
नरेन्द्र अरहर-2
अरहर की इस किस्म को पकने में काफी समय लगता है. अरहर की यह किस्म करीब 3 से 5 साल तक उत्पादन देती है. नरेन्द्र अरहर-2 की फसल बुवाई के करीब 240 से 250 दिनों में बन कर तैयार होती है. इसकी प्रति एकड़ फसल से लगभग 22 से 26 क्विंटल पैदावार होती है. अरहर की यह किस्म उकठा और फलियों में छेद करने वाले कीड़ों के प्रति अवरोधक है.
पूसा 855
पूसा 855 अरहर की सबसे ज्यादा उपज देने वाली किस्म है.यह अरहर की एक जल्दी पकने वाली किस्म है. इसकी फसल बुवाई के करीब 120 से 128 दिनों बाद बनकर तैयार होती है. इसकी खेती उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के लिए सही मानी जाती है. मैदानी इलाकों में इसकी खेती करना आसान होता है. बात करें इसके उत्पादन की तो इसकी प्रति एकड़ फसल से करीब 25 से 30 क्विंटल उपज होती है.