भारतीय भोजन की थाली बिना दाल के अधूरी रहती है. दाल का सेवन पूरे देशभर में किया जाता है और बाजार में भी इसकी मांग सालभर बनी रहती है. ऐसे में किसानों को दाल की खेती करना बहुत ही फायदा पहुंचा सकता है. वैसे तो भारतीय रसोई में बहुत सी दालें होती हैं लेकिन हम आज बात करने वाले हैं दलहनी फसलों की मुख्य फसल यानी मुख्य दाल के बारे में, जो कि अरहर की दाल है. तो चलिए जान लेते हैं कि कैसे होती है अरहर दाल की खेती और किस तरह इसकी खेती के लिए खेत तैयार किया जाता है.
सही मिट्टी और जमीन का चुनाव करें
अरहल दाल को कुछ जगहों पर तुअर दाल के नाम से भी जाना जाता है. इसकी खेती करने से पहले किसान को सभी जरूरी जानकारी कर लेनी चाहिए. अगर किसान अरहर दाल की खेती करना चाहते हैं तो फसल की बुवाई से पहले खेत तैयार करना बेहद जरूरी है. अरहर की खेती के लिए दोमट मिट्टी बेस्ट मानी जाती है. जिसमें जल निकासी भी अच्छे से हो सके. बुवाई से पहले खेत की कम से कम 2 से 3 बार गहरी जुताई कर लें. जुताई करने के बाद खेत को समतल कर लें और जल निकासी का भी इंतजाम कर लें.
बुवाई से पहले सही खाद का इस्तेमाल
एक बार जब खेत अच्छे से बुवाई के लिए तैयार हो जाए तो मिट्टी में गोबर या कंपोस्ट की खाद डालें. ध्यान रहे खेत तैयार करते समय मिट्टी में यूरिया, डीएपी और पोटाश का इस्तेमाल जरूर करें. जरूरत हो तो खेत में जिंक सल्फेट का भी इस्तेमाल करें. किसानों के जरूरी है कि अच्छे उत्पादन के लिए वे अरहर की उन्नत किस्मों के बाजों का चुनाव करें.
अरहर की बुवाई का सही समय
अहरह दलहनी फसल है जिसकी बुवाई खरीफ सीजन में की जाती है. इसलिए अरहर की फसल लगाने का सबसे सही समय जून से जुलाई के बीच होता है. इस मौसम में खेत को अच्छे से तैयार कर मिट्टी में करीब 1 से 2 इंच की गहराई में बीजों को रोपें. फसलों का तैयार होना फसल की किस्म पर निर्भर करता है. अरहर की कुछ किस्में 120 से 125 दिनों में तैयार हो जाती हैं. कुछ किस्में 115 से 120 दिन में तैयार होती हैं. वहीं कुछ अन्य किस्में तैयार होने में 150 दिन तक का समय लेती हैं.