जिंक का इस्तेमाल क्यों है हर किसान के लिए जरूरी? जानिए इसके फायदे

भारत की लगभग 50% कृषि भूमि में जिंक की कमी पाई जाती है. इसका सीधा असर फसलों की बढ़त और पैदावार पर होता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 25 Apr, 2025 | 12:30 PM

इंसान की तरह ही पौधों को भी पोषण तत्वों की जरूरत होती है, ये बात हर किसान को समझनी चाहिए. जिस तरह हमारे शरीर को ताकतवर बने रहने के लिए विटामिन और मिनरल्स की जरूरत होती है, ठीक उसी तरह खेतों की मिट्टी और उसमें उगने वाली फसल को भी बढ़ने के लिए पोषक तत्व चाहिए होते हैं. पौधों के लिए ऐसा ही एक बेहद जरूरी पोषक तत्व है जिंक. तो चलिए आज जानते हैं कैसे जिंक आपके पौधों की ग्रोथ को बढ़ने में मददगार है.

भारत में जिंक की कमी

भारत की लगभग 50% कृषि भूमि में जिंक की कमी पाई जाती है. इसका सीधा असर फसलों की बढ़त और पैदावार पर होता है. किसान मेहनत तो पूरी करते हैं, लेकिन मिट्टी में जिंक की कमी के कारण फसल कमजोर, बीमार और कम उपज देने वाली हो जाती है. जिसका सीधा असर आमदनी पर पड़ता है.

जिंक से मजबूती

जिंक, पौधों की कोशिकाओं में महत्वपूर्ण एंजाइम बनाने में मदद करता है. ये एंजाइम फसल के विकास, अंकुरण, हरे रंग (क्लोरोफिल) की मात्रा और फसल के स्वास्थ्य के लिए जरूरी होते हैं. जिंक की मदद से पौधे ज्यादा प्रोटीन, शर्करा और ऊर्जा बना पाते हैं. इसका मतलब है कि मजबूत फसल, बेहतर उपज और अधिक कमाई.

कैसे पहचानें जिंक की कमी?

दरअसल, पौधों में जिंक की कमी को पहचाना बेहद आसान है, जब भी पौधों में जिंक की कमी होती है तो पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं, खासकर बीच की नसों के दोनों तरफ. इसके साथ नई पत्तियां छोटी और विकृत होती हैं. मक्का, चावल और गेहूं में सबसे पहले कमी के लक्षण नजर आते हैं और तो और पौधों की बढ़त रुक जाती है और फसल कमजोर दिखने लगती है.

कब और कैसे दें जिंक?

जिंक की पूर्ति के लिए सबसे आम उपाय है जिंक सल्फेट का इस्तेमाल. इसमें करीब 33% जिंक होता है. इसे फसल बोने से पहले या साथ में मिलाया जा सकता है. खेत की मिट्टी की जांच के बाद ही सही मात्रा में जिंक डालना चाहिए ताकि ना कम पड़े और ना ज्यादा हो. धान और गेहूं के लिए 20–25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर और मक्का और दलहन के लिए 15–20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल करना चाहिए.

सही तरीका-बेसल डोज में मिलाएं

जिंक देने का सबसे असरदार और किफायती तरीका है इसे बेसल डोज (बुआई से पहले की खाद) में मिलाकर देना. इससे पौधों को शुरुआत से ही जरूरी पोषण मिल जाता है और पूरी फसल स्वस्थ रहती है.

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