तेलंगाा में आंगनवाड़ी केंद्रों और रेजिडेंशियल वेलफेयर हॉस्टलों में अंडा सप्लाई करने की टेंडर प्रक्रिया एक बार फिर अनिश्चितता में फंस गई है. पिछले कुछ समय से बच्चों और छात्रों को पोषणयुक्त अंडों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई कोशिशें की गईं, लेकिन अब यह प्रक्रिया फिर से राजनीतिक दबाव, पात्रता नियमों में ढील की मांग और कानूनी अड़चनों की आशंका का सामना कर रही है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अंडा सप्लाई के पहले कॉन्ट्रैक्ट फरवरी 2025 में खत्म हो गए थे. इसके बाद हैदराबाद लोक प्राधिकरण एमएलसी चुनावों के लिए लागू आचार संहिता के चलते नई टेंडर प्रक्रिया रोक दी गई. इस बीच, एक अखबार में इस प्रणाली की खामियों पर रिपोर्ट छपने के बाद महिला एवं बाल विकास विभाग ने पुराने ठेकेदारों से ही अंडों की आपूर्ति जारी रखी. हालांकि मार्च में नए टेंडर जारी किए गए थे, लेकिन कोर्ट केस, टेंडर नियमों में बदलाव और जरूरी मंजूरियों में देरी की वजह से यह प्रक्रिया जून के अंत तक भी पूरी नहीं हो पाई.
शर्तों में छूट दी जानी चाहिए
हाईकोर्ट ने पहले ही यह साफ कर दिया था कि टेंडर के नियम जैसे न्यूनतम टर्नओवर, सरकारी संस्थानों को अंडे सप्लाई करने का अनुभव और Agmark सर्टिफिकेशन सही हैं. लेकिन अब फिर से इन शर्तों को बदलने की कोशिश की जा रही है. हालांकि, कहा जा रहा है कि कुछ पोल्ट्री कारोबारी और सत्तारूढ़ पार्टी के कुछ नेता इन नियमों को कमजोर करने का दबाव बना रहे हैं. उनका तर्क है कि न्यूनतम टर्नओवर और अनुभव जैसी शर्तों में छूट दी जानी चाहिए.
कानूनी विवाद खड़ा हो सकता
अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि अगर टेंडर शर्तों में बदलाव किया गया तो फिर से कानूनी विवाद खड़ा हो सकता है, जिससे प्रक्रिया में और देरी होगी. उन्होंने कहा कि 5 करोड़ रुपये का टर्नओवर और पहले का अनुभव जैसी शर्तें कोई मनमानी नहीं हैं, बल्कि ऐसी सार्वजनिक खरीद प्रक्रियाओं में ये जरूरी और सामान्य सुरक्षा उपाय होते हैं. खासकर तब, जब बच्चों के लिए जल्दी खराब होने वाला खाद्य पदार्थ सप्लाई किया जाना हो. एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि अगर अयोग्य सप्लायर्स को शामिल करने के लिए न्यूनतम शर्तें हटा दी गईं, तो अगर सप्लाई बीच में रुक गई तो जिम्मेदार कौन होगा?”
अंडा सप्लाई टेंडर का दायरा बढ़ा दिया
राज्य सरकार ने इस बार अंडा सप्लाई टेंडर का दायरा काफी बढ़ा दिया है. पहले ये टेंडर सिर्फ आंगनवाड़ी केंद्रों के लिए होते थे, जहां हर साल करीब 36 करोड़ अंडों की जरूरत होती थी. लेकिन अब वेलफेयर हॉस्टल और रेजिडेंशियल शैक्षणिक संस्थानों को भी इसमें शामिल कर लिया गया है, जिससे सालाना मांग बढ़कर 80 करोड़ से ज्यादा अंडे हो गई है. साथ ही सरकार ने अब टेंडर प्रक्रिया को 33 जिलों के हिसाब से कर दिया है, जबकि पहले यह सात जोन में होती थी.