बावनी इमली का इतिहास: 28 अप्रैल 1858 को फतेहपुर जिले के बावनी इमली (एक ही इमली के पेड़) पर अंग्रेजों ने 52 स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी, जो मातृभूमि की आज़ादी के लिए लड़ रहे थे. लोग कहते हैं उस दिन के बाद से आज तक इस पेड़ पर नया पत्ता नहीं आया.
स्थान और पहचान: यह इमली का पेड़ उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले, बिंदकी तहसील के खजुआ कस्बे के पास स्थित है. आज इसे शहीद स्मारक के रूप में संरक्षित किया गया है.
वीर क्रांतिकारी: जोधा सिंह अटैया, गौतम क्षत्रिय और उनके 51 साथियों ने अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ देशभक्ति की मिसाल पेश की.
जोधा सिंह की वीरता: फतेहपुर कचहरी और खजाने पर कब्जा, गुरिल्ला युद्ध और रणनीतिक हमलों से जोधा सिंह ने अंग्रेजों को कई बार पीछे हटाया और क्रांति को मजबूत किया.
अत्याचार और क्रूरता: फांसी के बाद अंग्रेजों ने शव उतारने वाले पर भी फांसी की सजा की धमकी दी. कई दिनों तक शव पेड़ पर लटके रहे, जिसे गिद्ध नोचते रहे.
शहीद स्मारक: बावनी इमली आज देशभक्ति और बलिदान का प्रतीक है. यह स्मारक आने वाली पीढ़ियों को याद दिलाता है कि स्वतंत्रता किसी आसान रास्ते से नहीं मिली.