पारंपरिक तरीके से अलग-अलग पशु पालने पर खर्च अधिक होता है. लेकिन जब बकरी और मुर्गी को एक साथ पाला जाता है तो बकरियों का बचा चारा मुर्गियां खा लेती हैं.
इससे अलग से दाना डालने की जरूरत कम हो जाती है और प्रति मुर्गी 30–40 ग्राम दाना रोज़ाना बचता है, जो महीने के हिसाब से हजारों रुपये की बचत है.
बकरी और मुर्गी के लिए एक ही शेड बनाना काफी फायदेमंद है. इसे बीच में जाली लगाकर दो हिस्सों में बांटा जा सकता है. जब बकरियां बाहर जाती हैं, तो गेट खोलकर मुर्गियों को अंदर आने दिया जा सकता है ताकि वे बचा चारा खा लें. इससे सफाई की मेहनत भी कम होती है.
बकरियों की मेंगनी को फेंकने के बजाय किसान इसे कम्पोस्ट खाद में बदल सकते हैं. यह खाद पूरी तरह ऑर्गेनिक होती है और खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ाने में मदद करती है. इससे किसान अपने ही खेत में चारा उगा सकते हैं और बाहरी चारे पर खर्च घटा सकते हैं.
बकरी की मेंगनी से बनी खाद की मदद से किसान अजोला भी उगा सकते हैं. अजोला एक तरह का हरा चारा है जिसमें भरपूर प्रोटीन होता है. इसे मुर्गियां और बकरियां दोनों खा सकती हैं. इससे न केवल उनकी सेहत बेहतर होती है बल्कि उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है.
मुर्गियां सालभर में 180–200 अंडे देती हैं. यदि किसान 50–100 मुर्गियां पालते हैं, तो रोज़ाना अंडों से अच्छी खासी आमदनी हो सकती है. इसके अलावा, कुछ महीनों बाद मुर्गियों को मांस के रूप में बेचकर भी अतिरिक्त कमाई की जा सकती है.
बकरियों से दूध, बच्चे और खाद मिलती है, वहीं मुर्गियों से अंडे और मांस. अगर दोनों को स्मार्ट मैनेजमेंट के साथ पाला जाए तो किसान आसानी से महीने में ₹20–25 हजार तक कमा सकते हैं, वो भी कम मेहनत और कम खर्च में.