पंजाब में इस बार की बाढ़ ने 1,000 से ज्यादा गांवों को डूबो दिया है. गुरदासपुर, कपूरथला, फिरोजपुर, पठानकोट, फाजिल्का, अमृतसर और तरनतारन जैसे जिलों में हालात बेहद खराब हैं.
बुजुर्गों का कहना है कि कि यह बाढ़ उन्हें 1988 की याद दिला रही है, लेकिन इस बार पानी का बहाव और तबाही उससे भी ज्यादा खतरनाक नजर आ रही है. आपको बता दें 1988 में 600 से अधिक मौतें हुई थीं और 10 लाख लोग बेघर हो गए थे.
हिमाचल व उत्तर भारत में सामान्य से पांच गुना ज्यादा बारिश हुई, जिससे नदियां उफान पर आ गईं. भाखड़ा और पोंग बांध से छोड़े गए पानी ने निचले इलाकों की तबाही को और बढ़ा दिया.
करीब 61,000 हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि डूब गई है. धान, गन्ना, कपास और मक्के की फसलें जलमग्न होकर पूरी तरह बर्बाद हो गई हैं. इससे किसानों की मेहनत और पंजाब की कृषि अर्थव्यवस्था को भारी झटका लगा है.
आपको बता दें कि, अब तक 29 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 14.6 लाख लोग सीधे प्रभावित हुए हैं. सुरक्षा के लिहाज से पंजाब भर में सभी स्कूल 3 सितंबर तक बंद कर दिए गए हैं.
पीएम मोदी ने मुख्यमंत्री से बात कर हालात की जानकारी ली और हर संभव मदद का आश्वासन दिया है. NDRF, SDRF, सेना और BSF की टीमें नावों, हेलीकॉप्टर और ड्रोन की मदद से लगातार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा रही हैं. राहत शिविर बनाए गए हैं, लेकिन वहां भीड़ और बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है.
इसी बीच राज्यसभा सांसद संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने कहा कि इस बार बाढ़ का बहाव 1988 से भी ज्यादा रहा है और इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करना चाहिए. प्रशासन भी मान रहा है कि हालात बहुत गंभीर हैं और नुकसान लंबे समय तक याद रहेगा.