बरसाती बीमारी थनैला रोग से पशुओं की होती है मौत, पशुपालक जान लें लक्ष्ण और रोकथाम के तरीके

थनैला रोग के कई सारे कारण होते हैं. यह रोग विषाणु, जीवाणु माइक्रोप्लाजमा और कवक के कारण फैलता है. संक्रमित पशु के संपर्क में आने से स्वस्थ पशु इस रोग के शिकार हो जाते हैं.

नोएडा | Updated On: 20 Jul, 2025 | 12:45 AM

मॉनसून सीजन की शुरुआत होते ही किसान खरीफ फसलों की बुवाई शुरु कर देते हैं. एक ओर जहां फसलों के लिए बारिश अच्छी होती है, वहीं बरसात के मौसम में पशुओं को कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में बीमारियों के कारण पशुओं में पोशक तत्वों की कमी हो जाती है और उनमें दूध उत्पादन की क्षमता भी कम हो जाती है. कई बार इन बीमारियों के कारण पशुओं की मौत भी हो जाती है. ऐसा ही एक खतरनाक रोग पशुओं में पाया जाता है जिसे थनैला रोग कहते हैं.

थनैला रोग के लक्षण

इस रोग में पशुओं के थन सूजकर गर्म, सख्त और दर्दनाक हो जाते हैं. दुधारु पशुओं के थन से फटा हुआ, थक्के युक्त और दही जैसा जमा दूध निकलता है. कई बार ऐसा भी होता है कि दूध के साथ खून भी निकलता है. वहीं दूध की रंग की बात करें तो रंग गंदा और पीली-भूरे रंग का हो जाता है और दूध से तेज दुर्गन्ध भी आने लगती है. इसके साथ हीं पशुओं के थन में छोटे आकार की गांठे पड़ जाती है. पशुओं में तेज बुखार आना भी इस रोग के प्रमुख लक्ष्ण हैं. आपको बता दें कि तेज बुखार के कारण पशुओं में पौष्टिक आहार की कमी हो जाती है और कुछ समय बात पोषण की कमी के कारण उनकी मौत हो जाती है.

इन कारणों से होता है रोग

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार थनैला रोग के कई सारे कारण होते हैं.यह रोग विषाणु, जीवाणु माइक्रोप्लाजमा और कवक के कारण फैलता है. संक्रमित पशु के संपर्क में आने से स्वस्थ पशु इस रोग के शिकार हो जाते हैं. दूध दुहने वाले के गंदे हाथों से भी इस रोग के होने का खतरा होता है. पशुशाला में गंदगी होने से रोग के संक्रमण का खतरा ज्यादा हो जाता है. अनियमित रुप से दूध दुहने और थन में चोट लगना इस रोग के अन्य कारण हैं.

रोकथाम और बचाव

थनैला रोग से पशुओं को बचाने के लिए जरूरी है कि पशुओं के खाने-पीने का विशेष ध्यान रखें क्योंकि चारे में खनिज पदार्थ और विटामिन की कमी पशु को थनैला रोग के प्रति ज्यादा संवेदनशील बना सकते हैं. इसलिए पशुओं को चारे में विटामिन ई (Vitamin- E) को मिनर्ल्स में मिलाकर खिलाना चाहिए. मक्खियों और मच्छरों से प्रकोप से बचने के लिए पशुओं को रहने वाली जगह में सफाई जरूरी होता है. पशुपालकों के लिए सलाह है कि दूध दुहने के पहले हाथ अच्छे से धो लें और दूध साफ बर्तन में हीं निकालें. दूध दुहने से पहले और बाद में थन को लाल दवा से साफ कर दें. दूध दुहने के आधे घंटे तक पशु को बैठने ना दें क्योंकि दूध दुहने के कुछ समय बाद तक थन के छिद्र खुले रहते हैं जिससे संक्रमण का खतरा बना रहता है.

Published: 19 Jul, 2025 | 11:59 PM