गेहूं की फसल को चौपट कर सकती है यह बीमारी, जानें इसके बारे में

गेहूं भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसल है और देश की खाद्य सुरक्षा का सबसे बड़ा आधार भी है. बस कुछ ही दिनों के बाद गेहूं की कटाई शुरू हो जाएगी. अगर फसल में फंगस का रतुआ रोग लग गया तो फिर पूरी फसल चौपट हो जाती है.

Kisan India
Noida | Published: 15 Mar, 2025 | 10:28 PM
1 / 5गेहूं की फसल के लिए रतुआ रोग को काफी खतरनाक माना गया है. इसे कई नामों से जानते हैं, रस्ट, रोली और गेरुआ. यह बीमारी तीन तरह की होती है, पीला रतुआ (धारीधार रतुआ या येलो रस्ट), भूरा रतुआ (पत्ती का रतुआ या ब्राउन रस्ट) और काला रतुआ (तने का रतुआ या ब्लैक रस्ट).

गेहूं की फसल के लिए रतुआ रोग को काफी खतरनाक माना गया है. इसे कई नामों से जानते हैं, रस्ट, रोली और गेरुआ. यह बीमारी तीन तरह की होती है, पीला रतुआ (धारीधार रतुआ या येलो रस्ट), भूरा रतुआ (पत्ती का रतुआ या ब्राउन रस्ट) और काला रतुआ (तने का रतुआ या ब्लैक रस्ट).

2 / 5साल 2011 में देश के कई हिस्सों में गेहूं की फसल पीला रतुआ रोग से से प्रभावित हो गई थी. यह बीमारी 'पक्सीनिया स्ट्राईफारमिस' नामक एक फंगस से होती है जो मुख्‍यतौर पर भारत के उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में और उत्‍तर हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है.

साल 2011 में देश के कई हिस्सों में गेहूं की फसल पीला रतुआ रोग से से प्रभावित हो गई थी. यह बीमारी 'पक्सीनिया स्ट्राईफारमिस' नामक एक फंगस से होती है जो मुख्‍यतौर पर भारत के उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में और उत्‍तर हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है.

3 / 5 यह बीमारी तापमान ज्‍यादा होने पर फसल को लगती है. रोग से प्रभावित गेहूं की फसल में तने और पत्तियों पर चाकलेटी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. बाद में ये धब्‍बे काले रंग के नजर आने लगते हैं. तने में संक्रमण दिखाई देने के कारण इस रोग को 'तने का रतुआ' के नाम से भी जाना जाता है.

यह बीमारी तापमान ज्‍यादा होने पर फसल को लगती है. रोग से प्रभावित गेहूं की फसल में तने और पत्तियों पर चाकलेटी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. बाद में ये धब्‍बे काले रंग के नजर आने लगते हैं. तने में संक्रमण दिखाई देने के कारण इस रोग को 'तने का रतुआ' के नाम से भी जाना जाता है.

4 / 5 पीला रतुआ की रोकथाम के लिए प्रॉपीकोनाजॉल (टिल्ट 25 ई.सी.) का 0.1 प्रतिशत घोल या टेबुकोनेजोल 250 ई.सी. का 0.1 प्रतिशत की दर से घोल कर छिड़काव करें. इससे रतुआ रोग के साथ-साथ पर्ण झुलसा या चूर्णी फफूंदी (पाउडरी मिल्ड्‌यू) रोग भी नियंत्रित हो जाते हैं.

पीला रतुआ की रोकथाम के लिए प्रॉपीकोनाजॉल (टिल्ट 25 ई.सी.) का 0.1 प्रतिशत घोल या टेबुकोनेजोल 250 ई.सी. का 0.1 प्रतिशत की दर से घोल कर छिड़काव करें. इससे रतुआ रोग के साथ-साथ पर्ण झुलसा या चूर्णी फफूंदी (पाउडरी मिल्ड्‌यू) रोग भी नियंत्रित हो जाते हैं.

5 / 5  पीला रतुआ रोग ज्‍यादातर उत्‍तर  हिमालय की पहाड़ियों से उत्‍तरी मैदानी क्षेत्र में दिखाई पड़ता है, जैसे-पंजाब, हरियाणा, जम्मू तथा हिमालय का मैदानी क्षेत्र, उत्तरी राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्‍तराखंड उत्तराखंड का मैदानी भाग.

पीला रतुआ रोग ज्‍यादातर उत्‍तर हिमालय की पहाड़ियों से उत्‍तरी मैदानी क्षेत्र में दिखाई पड़ता है, जैसे-पंजाब, हरियाणा, जम्मू तथा हिमालय का मैदानी क्षेत्र, उत्तरी राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्‍तराखंड उत्तराखंड का मैदानी भाग.

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