स्वाद और सुगंध में बासमती भी है इसके सामने फेल, 12 मिनट में पक जाता है चावल.. 4000 रुपये क्विंटल रेट

पश्चिम बंगाल का सुगंधित तुलाईपंजी चावल स्वाद और खुशबू में बासमती का मुकाबला करता है और इसे GI टैग भी मिला है. राज्य सरकार के प्रोत्साहन से इसकी खेती 45 फीसदी बढ़ी है. प्रति क्विंटल 3,800 से 4,000 रुपये में बिकने वाला यह धान कीट-प्रतिरोधी होता है.

नोएडा | Updated On: 16 Nov, 2025 | 01:38 PM

West Bengal News: जब भी चावल की बात होती होती है तो लोगों के जेहन में सबसे पहले बासमती का नाम उभरकर सामने आता है. लोगों को लगता है बासमती की तरह स्वादिष्ट और खुशबूदार चावल कोई नहीं है. लेकिन ऐसी बात नहीं है. पश्चिम बंगाल में उगाए जाने वाला चावल ‘तुलाईपंजी’ बासमती से किसी मायने में कम नहीं है. इसका स्वाद और सुगंध बहुत उमदा है. यही वजह है कि इसे जीआई टैग भी मिला हुआ है. जीआई टैग मिलने से इस धान की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ गया है. साथ ही किसानों की बंपर कमाई भी हो रही है. तो आइए आज जानते हैं ‘तुलाईपंजी’ चावल की खासियत के बारे में.

‘तुलाईपंजी’ उत्तरी बंगाल में उगाए जाने वाला सुगंधित देशी चावल की किस्म है. जीआई टैग  मिलने के बाद से यह किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. राज्य सरकार के प्रोत्साहन की वजह से इसकी खेती 45 फीसदी से अधिक बढ़ गई है. यह चावल मुख्य रूप से उत्तर दिनाजपुर के राइगंज, कलियागंज, हेमताबाद, करंदिघी और दक्षिण दिनाजपुर के कुशमंडी ब्लॉक में उगाया जाता है. हालांकि, पहले किसान तुलाईपंजी उगाने में कम रुचि दिखाते थे, लेकिन सरकारी मदद और बेहतर कीमत मिलने लगी तो इसकी खेती बढ़ गई.

GI टैग मिलने के बाद बढ़ गया उत्पादन

तुलाईपंजी चावल का नाम तुलाई नदी से लिया गया है, जो भारत और बांग्लादेश के बीच बहती है. उत्तर बंगाल के छोटे किसानों ने 2016 में इसकी खेती फिर शुरू की. लेकिन  2023 में तुलाईपंजी को भी GI टैग मिलने के बाद किसानों की रुचि इसकी खेती के प्रति और बढ़ गई. यह एक यह गैर-बासमती किस्म  है, जिसे अगस्त में बोया और जनवरी में काटा जाता है. इसके पौधों की ऊंचाई लगभग 42 से 45 सेंटीमीटर होती है. खेती के लिए 2.5 इंच पानी का स्तर सबसे अच्छा माना जाता है. इसके दाने का आकार करीब 5.3 मिमी होता है और सिरे पर छोटी मूंछें दिखाई देती हैं. यह चावल दो ग्रेड में आता है. छोटी मूंछ वाला, जिसकी खुशबू बेहतर होती है और लंबी मूंछ वाला, जिसकी खुशबू थोड़ी कम होती है.

तुलाईपंजी का मार्केट में क्या है रेट

एक क्विंटल तुलाईपंजी धान से करीब 53 किलो चावल मिलता है. कटाई के समय यह धान 3,800 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल बिकता है. पिछले साल 2023 किसानों को 6,500- 7,000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिला था, लेकिन साल 2024 में ज्यादा उत्पादन होने से कीमत कुछ कम हो गई. फिर भी किसानों को सामान्य रेट से ज्यादा ही मिलता है. ऐसे तुलाईपंजी चावल की बाजार कीमत 80 से 85 रुपये प्रति किलो है. इस किस्म में कीट-प्रतिरोधी गुण होते हैं और इसकी खेती में ज्यादातर उर्वरकों की जरूरत नहीं पड़ती. पकने के बाद यह चावल सुवादिष्ट, गैर-चिपचिपा और हल्का भूरा दिखाई देता है.

हेल्थ के लिए है बहुत फायदेमंद

तुलाईपंजी चावल सभी के लिए अच्छा है, लेकिन खास तौर पर पुरानी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए यह और भी फायदेमंद माना जाता है. इसे संतुलित आहार के साथ शामिल करने से शरीर को बेहतर पोषण मिलता है. हृदय रोग या हाई कोलेस्ट्रॉल वाले लोगों के लिए यह चावल उपयोगी है. कुछ अध्ययों में पाया गया है कि तुलाईपंजी चावल कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद करता है, जिससे दिल की बीमारियों का खतरा घट सकता है. मधुमेह के मरीजों  के लिए भी यह एक अच्छा विकल्प है, क्योंकि यह धीरे-धीरे पचता है और ब्लड शुगर लेवल को तेजी से नहीं बढ़ाता. इसलिए जिन लोगों को शुगर नियंत्रित रखनी होती है, उनके लिए यह चावल सुरक्षित और उपयोगी माना जाता है.

12 मिनट में पक जाता है तुलाईपंजी

तुलाईपंजी चावल आयरन, मैग्नीशियम, थायमिन, नियासिन और विटामिन B6 से भरपूर होता है. जिन लोगों में ये पोषक तत्व कम होते हैं, वे अपनी रोजाना की डाइट में यह चावल शामिल कर सकते हैं. इस चावल को पकने में करीब 10 से 12 मिनट लगते हैं. इसे सुरक्षित रखने के लिए बस इसे एयरटाइट कंटेनर में रखें और धूप और नमी से दूर रखें. खास बात यह है कि तुलाईपंजी चावल को कीट-प्रतिरोधी माना जाता है, इसलिए इसे स्टोर करने के लिए किसी अतिरिक्त सावधानी की जरूरत नहीं पड़ती.

क्या होता है जीआई टैग

GI मतलब जियोग्राफिकल इंडिकेशन होता है, जो एक एक खास पहचान  वाला लेबल होता है. यह किसी चीज को उसके इलाके से जोड़ता है. आसान भाषा में कहें तो ये GI टैग बताता है कि कोई प्रोडक्ट खास तौर पर किसी एक तय जगह से आता है और वही उसकी असली पहचान है. भारत में साल 1999 में ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट’ लागू हुआ था. इसके तहत किसी राज्य या इलाके के खास प्रोडक्ट को कानूनी मान्यता दी जाती है. जब किसी प्रोडक्ट की पहचान और उसकी मांग देश-विदेश में बढ़ने लगती है, तो GI टैग के जरिए उसे आधिकारिक दर्जा मिल जाता है. इससे उसकी असली पहचान बनी रहती है और वह नकली प्रोडक्ट्स से सुरक्षित रहता है.

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Published: 16 Nov, 2025 | 01:33 PM

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