कड़ाके की ठंड में फसल पर नहीं पड़ेगा पाले का असर, बस खेत की मेड़ पर करें ये छोटा सा काम
इस साल कड़ाके की ठंड और पाले का असर बागवानी फसलों पर अधिक पड़ सकता है. किसानों को फसल बचाने के लिए चूल्हे की राख का छिड़काव, शाम को धुआं करना और सिंचाई कम करना जैसे आसान देसी उपाय अपनाने चाहिए.
Agriculture News: इस साल नवंबर महीने से ही कड़ाके की ठंड पड़नी शुरू हो गई है. इससे इंसान के साथ-साथ मवेशियों पर भी सीधा असर देखने को मिल रहा है. लेकिन अधिक सर्दी पड़ने पर सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचने की संभावना बागवानी फसलों की होती है. ऐसे भी मौसम विभाग ने इस साल ज्यादा शीतलहर वाले दिन रहने की संभावना जताई है. ऐसे में किसानों को अपनी फसलों की सुरक्षा के किए खास इंतजाम करना चाहिए. क्योंकि फसल की बर्बादी होने पर किसानों को आर्थिक नुकसान हो सकता है. इसलिए आज हम ठंड से फसल को बचाने के लिए कुछ ऐसे देसी टिप्स बताने जा रहे हैं, जिससे अपनाने के लिए किसानों को ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा.
दरअसल, किसानों के लिए भी ठंड से अपनी फसल बचाना जरूरी है. इस मौसम में अचानक पाला पड़ने से फसल झुलस सकती है और नुकसान हो सकता है. जो किसान सब्जी, चना, मसूर या मटर उगाते हैं, उन्हें कुछ छोटे-छोटे उपाय अपनाकर अपनी फसल को ठंड और पाले के बुरे प्रभाव से सुरक्षित रखना चाहिए. आज हम इन्हीं आसान तरीकों के बारे में जानेंगे.
फसलों की सुरक्षा के लिए तीन आसान उपाय
विशेषज्ञों के अनुसार, पाले से बागवानी फसलों की सुरक्षा के लिए तीन आसान उपाय अपनाए जा सकते हैं. पहला, चूल्हे की राख का घोल बनाकर खेत में छिड़कें, जिससे फसलों पर सुरक्षा की परत बनती है. दूसरा, शाम को खेत में सूखी घास या लकड़ी जलाकर धुआं करें, जिससे तापमान बढ़ता है. तीसरा, सिंचाई कम करें, क्योंकि अधिक पानी फसलों को कमजोर करता है.
किसान खेत की मेड़ पर चारा गीला करके जलाएं
दरअसल, सबसे ज्यादा पाला दिसंबर के अंत या फरवरी की शुरुआत में पड़ता है. इससे फसलों को बहुत अधिक नुकसान पहुंचता है. क्योंकि पाले से पौधों की कोशिकाएं फट सकती हैं और फसल को नुकसान हो सकता है. पाला रोकने के लिए किसान शाम के समय खेत की मेड़ पर कूड़ा या चारा गीला करके जलाएं. इससे धुआं निकलता है और तापमान बढ़कर पाले का असर कम होता है.
किसान समय रहते सावधानी बरतें
अगर आपकी फसल में स्प्रिंकलर या पाइप से सिंचाई हो रही है, तो पानी के कारण खेत का तापमान थोड़ा बढ़ जाता है और पाले का असर कम होता है. यह तरीका खासकर सब्जियों, छोटे पौधों और चना-मसूर की फसल को बचाने में मदद करता है. कृषि वैज्ञानिकों और मौसम विभाग की चेतावनी मिलने पर किसान समय रहते सावधानी बरत सकते हैं.