फसलों के लिए टॉनिक का काम करता है ये तरल पदार्थ, जानें घर में आसानी से बनाने का तरीका

किसान अपनी फसलों पर वर्मीवाश का इस्तेमाल कर सकते हैं . ये फसलों के लिए एक टॉनिक का काम करता है जिसके इस्तेमाल से फसल की ग्रोथ, फूल, फल औक क्वालिटी बढ़ाने में मदद मिलती है.

अनामिका अस्थाना
नोएडा | Published: 7 Jun, 2025 | 02:18 PM

फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए बेहद जरूरी है कि उन्हें सही पोषण और खाद दी जाए. केमिकल खाद की जगह किसानों को यही सलाह दी जाती है कि वे अपनी फसलों पर जैविक खाद का इस्तेमाल करें. ऐसे में किसान अपनी फसलों पर वर्मीवाश का इस्तेमाल कर सकते हैं . ये फसलों के लिए एक टॉनिक का काम करता है जिसके इस्तेमाल से फसल की ग्रोथ, फूल, फल औक क्वालिटी बढ़ाने में मदद मिलती है. इसके साथ ही इसके इस्तेमाल से फसलों में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है. खबर में आगे बात करेंगे कि वर्मीवाश कैसे बनाया जा सकता है और क्या होते हैं इसके फायदे.

क्या होता है वर्मीवाश

वर्मीवाश एक तरल जैविक खाद है जो कि केंचुए के शरीर से निकलता है. दरअसल. केंचुआ जब मिट्टी में चलता है तो उसके शरीर से रिसाव आता होता है, जिसमें घुलनशील पोषक तत्व जैसे एंजाइम, माइक्रोब्स और हॉर्मोन आदि होते हैं. इसका इस्तेमाल पौधों में फोलियर स्प्रे या मिट्टी में सिंचाई के रूप में किया जाता है.

वर्मीवाश ऐसे करें तैयार

वर्मीवाश को बनाने के लिए एक ड्रम में गोबर और जैविक कचरा डालें. इसके बाद उसपर केंचुए छोड़ें और पानी डालकर नमी बनाए रखें. ड्रम में नीचे एक टोटी लगाएं जिससे पानी बाहर निकल सके. इस मिश्रण में हर 2 से 3 दिन में थोड़ा पानी डालें. इस ड्रम में नीचे टोंटी से निकलने वाला तरल पदार्थ ही वर्मीवाश कहलाता है. देखने में वर्मीवाश गाढ़ा नहीं होता है और यह हल्के पीले रंग का होता है.

क्या हैं इस तरल खाद के फायदे

वर्मीवाश में मौजूद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम पौधों की ग्रोथ में मदद करते हैं. एंजाइम मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाते हैं. वर्मीवाश में रहने वाले माइक्रोब्स मिट्टी की क्वालिटी में सुधार लाने में मदद करते हैं. इसमें मौजूद हॉर्मोन फसलों में फूल और फलों को बढ़ावा देते हैं. इसके अलावा वर्मीवाश में नेचुरल पीएच होता है जो कि मिट्टी के पीएच को संतुलित रखता है. किसानों के लिए वर्मीवाश इस्तेमाल करना कई तरीकों से फायदेमंद होता है. इसके इस्तेमाल से केमिकल खाद पर किसानों का खर्चा कम हो जाता है, साथ ही फसलों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.

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