पॉलीहाउस तकनीक से खीरे की खेती कर रहे विजेंद्र, मिल रही 80 टन पैदावार

किसान इंडिया से बात करते हुए किसान विजेंद्र ने बताया कि पॉली हाउस खेती के लिए उन्होंने सबसे पहले जानकारी जुटाई. जिसमे उनकी मदद परंपरागत खेती के अनुभव ने भी की.

अलवर | Updated On: 6 Jun, 2025 | 07:05 PM

अलवर में भूजल के गिरते स्तर के कारण फसल में सिंचाई की समस्या से निपटने के लिए किसान अब परंपरागत खेती से दूरी बनाकर नई तकनीकों की मदद से खेती कर अच्छी कमाई कर रहे हैं. राजस्थान के अलवर जिले के बबेली गांव के रहने वाले किसान विजेंद्र इसका एक अच्छा उदाहरण हैं. अपने अनुभव की मदद से किसान विजेंद्र ने परंपरागत खेती को पॉली-हाउस ड्रिप खेती में बदलकर खीरे की खेती की और कुछ ही सालों में विजेंद्र को खीरे की खेती से तगड़ा मुनाफा मिलने लगा.

परंपरागत खेती के अनुभव का इस्तेमाल

किसान इंडिया से बात करते हुए किसान विजेंद्र ने बताया कि पॉली हाउस खेती के लिए उन्होंने सबसे पहले जानकारी जुटाई. जिसमे उनकी मदद परंपरागत खेती के अनुभव ने भी की.उन्होंने बताया कि साल 2019 मे उन्होंने 2 पॉली हाउस लगाकर खीरे की खेती शुरू की जिसमें उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ. इसके साथ ही विजेंद्र ने बताया की वे न केवल खुद नई तकनीक का इस्तेमाल कर खेती से अच्छी कमाई कर रहे हैं, बल्कि दूसरे लोगों को भी परंपरागत खेती के बजाय नई तकनीक से खेती करने को प्रोत्साहित कर रहे हैं.

कम समय में फसल तैयार, अच्छी कीमत

किसान विजेंद्र पिछले करीब 4 साल से अपने गांव बबेली में पॉली हाउस पर नई तकनीक से खेती कर रहे हैं. पानी के गिरते भूजल स्तर के चलते वे नई तकनीक ड्रिप सिस्टम का भी उपयोग कर खीरे की खेती कर रहे हैं. हालांकि खीरे की खेती में कम पानी की आवश्यकता होती है लेकिन बहित ज्यादा गर्मी पड़ने पर पानी की डिमांड बढ़ जाती है. विजेंद्र ने बताया की खीरे की फसल 45 दिन में तैयार हो जाती है और बाजार में आमतौर पर इसकी कीमत 10-15 रुपये प्रति किलो होती है, जिससे किसानों को अच्छा रिटर्न मिलता है साथ ही इस तकनीक से खीरे की फसल का उत्पादन बहुत ही अच्छा होता है. हालांकि इसकी कीमत मंडी भाव के ऊपर निर्भर रहती हैं. मार्केट में जब इसका भाव अच्छा मिलता है तो मुनाफा भी अच्छा होता है.क्योंकि इसमें लेबर चार्ज सहित अन्य खर्चे कम हो जाते है.

एक सीजन में 80 से 100 टन उपज

विजेंद्र ने बताया कि वह एक सीजन में लगभग 80 से 100 टन खीरे की फसल पैदा कर बाजार में बेचते हैं. अगर खीरे की कीमत सही मिल रही है तो एक सीजन में अच्छा मुनाफा हो जाता है. उन्होंने बताया कि खीरे की फसल में हर 3 साल में एक रोग लगता है. जिसके उपाय के लिए हर साल मई व जून में मिट्टी का सोलोराईजेशन किया जाना चाहिए. कम से कम 1 महीने तक पॉलीहाउस में कोई फसल ना उगाएं ताकि मिट्टी में पनप रहे कीटाणु नष्ट हो जाएं. विजेंद्र खुद तो पॉलीहाउस में खीरे की फसल कर ही रहे हैं, इसके अलावा अपने आसपास के क्षेत्र के लोगों को भी उसके बारे में लगातार जानकारी देते रहते हैं. वह गांव के लोगों की मदद करते हैं और उन्हें बताते हैं कि किस तरह से फसल को अच्छा बनाने के लिए उपाय करने चाहिए.

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.

Published: 6 Jun, 2025 | 04:28 PM