बुंदेलखंड की धरती पर विदेशी फूल ब्लूकॉन की खेती, किसान हो रहे मालामाल

परंपरागत खेती से हटकर हमीरपुर जिले में किसान अब ब्लूकॉन फूल की खेती को अपना रहे हैं. इस फूल की डिमांड बहुत है. बिक्री के लिये मार्केट तलाशने की जरूरत नहीं पड़ती है क्योंकि इसके खरीददार खुद घर चलकर आते हैं.'

मोहित शुक्ला
Noida | Updated On: 27 Mar, 2025 | 02:17 PM

उत्‍तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र को किसी समय में पानी की कम उपलब्‍धता के चलते खेती के लिहाज से एक कमजोर क्षेत्र माना जाता था. लेकिन अब यहां के किसानों ने ऐसी फसलों के विकल्‍प तलाश लिए हैं जो कम पानी में भी उन्‍हें ज्‍यादा मुनाफा दे सकते हैं. यहां के एक किसान ने एक ऐसे विदेशी फूल की खेती कर ली है, जिससे उन्‍हें बस फायदा ही फायदा हो रहा है. कम पानी और कम लागत वाली इस खेती से यहां के किसान मालामाल हो रहे हैं.

जर्मनी में होती है इसकी खेती

परंपरागत खेती से हटकर हमीरपुर जिले में किसान अब ब्लूकॉन फूल की खेती को अपना रहे हैं. इस तरह के विदेशी फूल की खेती सिर्फ जर्मनी में होती है. लेकिन अब इस विदेशी फूल की खेती हमीरपुर जिले के गोहांड ब्लॉक के चिल्ली गांव में भी लहलहाने लगी है. इसकी खेती करने वाले प्रगतिशील किसान रघुवीर सिंह ने किसान इंडिया से बात करते हुये बताया, ‘पहले पानी की कमी के चलते हमारे क्षेत्र में परंपरागत खेती होती थी जिसमें आए दिन घाटा होता था. लेकिन जब से मैंने ब्लूकॉन फूल की खेती शुरू किया तब से अच्छी कमाई हो रही है. इसके अलावा इस फूल की डिमांड बहुत है. बिक्री के लिये मार्केट तलाशने की जरूरत नहीं पड़ती है क्योंकि इसके खरीददार खुद घर चलकर आते हैं.’

लागत 10 हजार, कमाई लाखों में

रघुवीर सिंह बताते हैं की एक बीघा में 10 हजार रुपये की लागत आती है. वहीं कमाई की बात करें तो करीब एक बीघा खेत से महीने में चार क्विंटल से लेकर साढ़े चार क्विंटल फूल निकलते हैं. फिर इन्‍हें सुखा लिया जाता है जिसके बाद दो से ढाई सौ किलो फूल रह जाते हैं. वहीं मार्केट में इन सूखे फूलों की कीमत 2500 रुपये से लेकर तीन हजार रुपये प्रति किलो तक है. महीने भर में साढ़े सात लाख रुपये की आमदनी की जा सकती है. इसके साथ ही इसकी फसल में रोग भी नहीं लगते हैं. अगर सिचाई की बात करें तो ब्लूकॉन को ज्‍यादा पानी की जरूरत नहीं होती है.

मुंबई में इन फूलों की मांग ज्‍यादा

रघुवीर सिंह ने बताया की इस फूल की डिमांड बहुत ज्‍यादा है. उत्‍तर प्रदेश से ज्‍यादा इन फूलों की मांग मायानगरी मुंबई में बहुत ज्‍यादा है. इस फूल का प्रयोग दवा बनाने में और शादी जैसे फंक्‍शंस में सजावट करने के लिए किया जाता है.

25 अक्टूबर से पड़ती है नर्सरी

इस फूल की खेती के लिये सबसे पहले खेत की जुताई करें. इसके बाद नर्सरी डाल दें जिसके लिए अक्‍टूबर का महीना बेस्‍ट माना गया है. गोबर की खाद डाल कर के खेत को तैयार कर लें. उसके बाद खेत की बाट पर इसकी रोपाई कर दें.

अवारा जानवर भी नहीं छूते इसको

बुंदेलखंड में आवारा या छुट्टा जानवरों का प्रकोप बहुत ज्‍यादा है. इसकी वजह से किसानो की फसलों को बहुत नुकसान होता है. वहीं आवारा जानवर ब्‍लूकॉन की फसल के आसपास तक नहीं फटकते हैं. वजह है फूल से निकलने वाली अजीब गंध जिसे जानवर पसंद नहीं करते हैं और खेत से दूर भाग जाते हैं.

(हमीरपुर से मोहित शुक्‍ला की रिपोर्ट)  

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Published: 26 Mar, 2025 | 02:30 PM

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