यहां शव की राख से बनता है सूप, जानिए यानोमामी जनजाति की चौंकाने वाली रस्म

यानोमामी समुदाय में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद तुरंत दफनाने या जलाने की परंपरा नहीं होती. शव को जंगल में पत्तों और लकड़ियों से ढककर सुरक्षित स्थान पर रखा जाता है, ताकि प्रकृति अपना काम कर सके. लगभग एक महीने बाद जब शरीर प्राकृतिक रूप से बदल जाता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 17 Dec, 2025 | 12:35 PM

Trending News: दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मौत को लेकर लोगों की सोच और परंपराएं बिल्कुल अलग होती हैं. कहीं इसे जीवन का अंत माना जाता है, तो कहीं एक नई यात्रा की शुरुआत. आधुनिक समाज में मौत के बाद शांति, मौन और दूरी रखी जाती है, लेकिन कुछ जनजातियां ऐसी भी हैं, जिनके लिए मौत अपनों से अलग होने का नहीं, बल्कि उन्हें हमेशा के लिए अपने भीतर समा लेने का तरीका है. दक्षिण अमेरिका के घने जंगलों में रहने वाली यानोमामी जनजाति की परंपरा इसी सोच का सबसे चौंकाने वाला उदाहरण है.

मौत को डर नहीं, बदलाव के रूप में देखते हैं यानोमामी

यानोमामी जनजाति वेनेजुएला और ब्राजील के सीमावर्ती वर्षावनों में रहती है. यह जनजाति आज भी आधुनिक दुनिया से काफी हद तक कटी हुई है और प्रकृति के साथ गहरे रिश्ते में जीवन जीती है. इनके लिए मौत किसी व्यक्ति का खत्म हो जाना नहीं है, बल्कि उसकी आत्मा का एक नए रूप में समुदाय के साथ जुड़ जाना है. उनका मानना है कि इंसान का शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा हमेशा जीवित रहती है और उसे शांति तभी मिलती है, जब वह अपने लोगों का हिस्सा बनी रहे.

अंतिम विदाई की अनोखी रस्म

यानोमामी समुदाय में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद तुरंत दफनाने या जलाने की परंपरा नहीं होती. शव को जंगल में पत्तों और लकड़ियों से ढककर सुरक्षित स्थान पर रखा जाता है, ताकि प्रकृति अपना काम कर सके. लगभग एक महीने बाद जब शरीर प्राकृतिक रूप से बदल जाता है, तब परिवार और समुदाय के लोग मिलकर अंतिम रस्म निभाते हैं. शव को जलाया जाता है और जो राख बचती है, उसे बड़े सम्मान से इकट्ठा किया जाता है.

राख से जुड़ा विश्वास और सूप की परंपरा

इस राख को पानी या हल्के सूप में मिलाकर परिवार के सदस्य एक-एक कर पीते हैं. यह सुनने में डरावना लग सकता है, लेकिन उनके लिए यह सबसे पवित्र कर्म है. यानोमामी इसे अपने प्रिय की आत्मा को अपने भीतर बसाने का तरीका मानते हैं. उनका विश्वास है कि जब तक राख परिवार के शरीर का हिस्सा नहीं बनती, तब तक आत्मा बेचैन रहती है और जंगल में भटकती रहती है.

शोक नहीं, सम्मान का प्रतीक

बाहरी दुनिया इसे अजीब या भयावह समझ सकती है, लेकिन यानोमामी लोगों के लिए यह गहरे सम्मान और प्रेम की अभिव्यक्ति है. वे रोते-बिलखते नहीं, बल्कि शांत मन से यह रस्म निभाते हैं. उनका मानना है कि इससे मृत व्यक्ति हमेशा परिवार के साथ रहता है, उनकी सांसों, खून और जीवन का हिस्सा बन जाता है. यह परंपरा शोक नहीं, बल्कि जुड़ाव का प्रतीक है.

आधुनिक नजरिया और आदिवासी सोच का फर्क

आज की आधुनिक सोच में यह परंपरा अस्वीकार्य लग सकती है, लेकिन मानवविज्ञानियों के लिए यह दिखाती है कि संस्कृति कैसे जीवन और मृत्यु को अलग-अलग तरीके से समझती है. यानोमामी जनजाति की यह रस्म हमें यह सिखाती है कि मौत सिर्फ विदाई नहीं, बल्कि यादों, विश्वास और अपनेपन को हमेशा जीवित रखने का भी एक तरीका हो सकती है.

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