Diwali 2025: दिवाली का त्योहार खुशियों, रोशनी और नए आरंभ का प्रतीक माना जाता है. इस दिन घरों की सफाई, सजावट, दीप जलाना और स्वादिष्ट व्यंजन बनाना तो परंपरा का हिस्सा है ही, लेकिन कई घरों में एक खास परंपरा अब भी निभाई जाती है, वो है सूरन या जिमीकंद की सब्जी बनाना. क्या आपने कभी सोचा है कि दिवाली जैसे रौशनी और मिठास के पर्व पर यह विशेष सब्जी क्यों बनाई जाती है? इसके पीछे सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों कारण छिपे हैं.
सूरन (जिमीकंद) क्या है और क्यों है खास
सूरन, जिसे कई जगहों पर जिमीकंद या ओल भी कहा जाता है, एक तरह की जड़ वाली सब्जी है. यह जमीन के नीचे उगती है और पोषक तत्वों से भरपूर होती है. इसमें फाइबर, आयरन, कैल्शियम और विटामिन बी6 जैसे कई तत्व पाए जाते हैं, जो पाचन को बेहतर करते हैं और शरीर को ऊर्जा देते हैं.
लेकिन इसकी खासियत सिर्फ पोषण तक सीमित नहीं है, सूरन को समृद्धि और पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है. जब इसे जमीन से काटा जाता है, तो कुछ समय बाद यह फिर से उग आता है. यही कारण है कि इसे “अक्षय फल” कहा गया है, यानी जो कभी खत्म नहीं होता. यही वजह है कि दिवाली जैसे शुभ पर्व पर इसे बनाना “अक्षय समृद्धि” का प्रतीक माना जाता है.
धार्मिक मान्यता और परंपरा
हिंदू धर्म में दिवाली का त्योहार भगवान लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा से जुड़ा है. लक्ष्मीजी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है, जबकि गणेशजी को विघ्नहर्ता यानी बाधाओं को दूर करने वाला देवता.
कहा जाता है कि जिस तरह सूरन जमीन में दबा रहता है और फिर भी नई ऊर्जा से उगता है, उसी तरह इंसान को भी जीवन में हर कठिनाई के बाद उठ खड़ा होना चाहिए. इसलिए इस दिन सूरन बनाकर खाने का अर्थ होता है, नए आरंभ की कामना करना और जीवन में स्थायी सुख की प्रार्थना करना.
दिवाली पर सूरन खाने की एक और वजह
दिवाली के दिनों में मिठाइयां, तले हुए स्नैक्स और भारी भोजन ज्यादा खाया जाता है. ऐसे में सूरन की सब्जी पाचन को ठीक रखती है और गैस या एसिडिटी से राहत देती है. आयुर्वेद के अनुसार, सूरन खाने से शरीर में वात-पित्त संतुलित रहता है और यह पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है.
इसी कारण बहुत से घरों में कहा जाता है कि दिवाली पर सूरन जरूर खाना चाहिए ताकि त्योहार की मिठास पेट पर भारी न पड़े.
सूरन की पारंपरिक सब्जी कैसे बनती है
दिवाली पर सूरन की सब्जी बनाने की विधि भी खास होती है. सूरन को छीलकर छोटे टुकड़ों में काटा जाता है, फिर हल्दी और नमक लगाकर कुछ देर रखा जाता है ताकि इसकी खुजली कम हो जाए. इसके बाद इसे सरसों के तेल, हींग, जीरा, अदरक-लहसुन और मसालों के साथ भूनकर पकाया जाता है. कुछ लोग इसमें इमली या टमाटर डालकर खटास भी जोड़ते हैं. इसका स्वाद तीखा, चटपटा और पारंपरिक होता है, बिल्कुल त्योहार के जोश जैसा.