देश और दुनिया में कश्मीर के सेब और नाशपाती की अपनी एक खास पहचान है. लेकिन इस बार प्राकृतिक आपदा ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है. जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-44) 17 दिनों से बंद पड़ा है. लगातार हो रही भारी बारिश और भूस्खलन की वजह से हजारों गाड़ियां रास्ते में ही फंस गईं. इनमें से ज्यादातर गाड़ियां ताजे फलों से भरी हुई हैं. फलों के खराब होने से कश्मीर के बागवानों को अब तक 200-250 करोड़ रुपये तक का नुकसान हो चुका है.
हाईवे बंद, हजारों ट्रक फंसे
जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे कश्मीर को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली सबसे अहम जीवनरेखा है. लेकिन भारी बारिश और पहाड़ों से लगातार हो रहे भूस्खलन की वजह से यह मार्ग पिछले 17 दिनों से पूरी तरह बंद पड़ा है. इस बंदिश का सबसे बड़ा असर उन ट्रकों पर पड़ा है, जिनमें सेब और नाशपाती से लदा माल बाहरी मंडियों तक पहुंचना था. अनुमान है कि करीब 1000 ट्रक इस रास्ते पर फंसे हुए हैं. हालत इतनी खराब हो गई कि कई गाड़ियां अपने फल सड़ने और खराब होने के बाद मजबूरन वापस श्रीनगर, शोपियां और सोपोर की मंडियों में लौट आईं.
सेब और नाशपाती सड़ने लगे
कश्मीर पूरे देश की फल टोकरी कहा जाता है क्योंकि यहां से भारत के करीब 75 प्रतिशत सेब और नाशपाती की सप्लाई होती है. हर साल लाखों टन फल दिल्ली, पंजाब, गुजरात और बेंगलुरु जैसी बड़ी मंडियों तक पहुंचते हैं. लेकिन इस बार तस्वीर बदल गई है. मंडियों से मिल रही जानकारी के अनुसार, हाईवे बंद होने की वजह से फल समय पर नहीं पहुंच पा रहे हैं और माल मंडी पहुंचने से पहले ही खराब हो रहा है. कई किसान पके हुए सेब तोड़कर उन्हें अस्थायी गोदामों में रोककर रखने को मजबूर हैं क्योंकि बाहर भेजना लगभग नामुमकिन हो गया है. वहीं, जिन इलाकों में तोड़ाई हुई है, वहां पेड़ों से फल गिरकर जमीन पर सड़ने लगे हैं, जिससे किसानों का नुकसान और बढ़ गया है.
छोटे ट्रक जा रहे, बड़े ट्रक अब भी रुके
पिछले हफ्ते प्रशासन ने कुछ छोटे 6-टायर वाले ट्रकों को मगध रोड (मुगल रोड) से जाने की इजाजत दी थी. लेकिन ज्यादातर बड़ा माल 10-टायर ट्रकों में जाता है और इनको फिलहाल वैकल्पिक सड़क से जाने की अनुमति नहीं है. इससे बड़ी खेप अब भी रुकी हुई है.
हर साल दोहराई जाती है समस्या
कश्मीर के फल व्यापारियों का कहना है कि जम्मू-श्रीनगर हाईवे बंद होना कोई नई बात नहीं है. हर साल बरसात के मौसम में भूस्खलन और पहाड़ दरकने से यह रास्ता ठप हो जाता है, जिससे बागवानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है. इस बार स्थिति और भी गंभीर है. व्यापारियों के मुताबिक अब तक करीब 200 से 250 करोड़ रुपये तक का नुकसान हो चुका है. हालांकि उनका मानना है कि असली तस्वीर तो तब सामने आएगी जब सारे फंसे हुए ट्रक अपने गंतव्य तक पहुंचेंगे और मंडियों में माल की सही स्थिति पता चलेगी.
बाजार में कश्मीर की साख पर असर
किसानों और व्यापारियों का कहना है कि देर से माल पहुंचने और खराब क्वालिटी के कारण बाहर के खरीदारों का भरोसा टूट रहा है. दिल्ली और अन्य मंडियों में समय पर ताजा फल न पहुंचने से कश्मीर के फलों की छवि भी प्रभावित हो रही है.
रेल कार्गो से उम्मीद
इस संकट के बीच रेलवे ने एक नई शुरुआत की है. रेलवे बोर्ड ने बडगाम से दिल्ली तक “जॉइंट पार्सल प्रोडक्ट-रैपिड कार्गो” (JPP-RCS) ट्रेन शुरू करने की मंजूरी दी है. यह सेवा 11 सितंबर से शुरू होनी थी, लेकिन खराब मौसम की वजह से इसमें देरी हो सकती है. अगर यह सेवा सुचारू रूप से चल पाई तो भविष्य में कश्मीर के फलों को समय पर देशभर की मंडियों तक पहुंचाया जा सकेगा.
किसानों की चिंता और सवाल
कश्मीर के किसान कहते हैं कि उनकी साल भर की मेहनत एक झटके में बेकार हो जाती है. न सिर्फ उनकी आय पर असर पड़ता है बल्कि अगली फसल के लिए उनकी तैयारी भी प्रभावित होती है. “हर साल यही समस्या होती है, लेकिन स्थायी समाधान अब तक नहीं निकाला गया,” एक शोपियां के बागवान ने बताया.