Karnataka News: कर्नाटक सरकार ने आखिरकार किसानों की नाराजगी देखते हुए मक्का खरीद की सीमा 20 क्विंटल से बढ़ाकर 50 क्विंटल कर दी. यह फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि बंपर पैदावार के बाद बाजार भाव गिर गए थे. सरकार के स्पष्टीकरण में कहा गया है कि नई सीमा किसान की जमीन के रकबे के अनुसार तय होगी, जैसा कि ‘फ्रूट्स’ डेटाबेस में दर्ज है. इसमें बताया गया है कि किसान की प्रति एकड़ जमीन के हिसाब से 12 क्विंटल की दर से अधिकतम 50 क्विंटल मक्का तक सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीदा जाएगा. साथ ही खरीद के लिए उन PACS को प्राथमिकता दी जाएगी जो डिस्टिलरी के पास स्थित हैं. समर्थन मूल्य पहले की तरह 2,400 रुपये प्रति क्विंटल ही रहेगा.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, यह फैसला किसानों के विरोध के बाद लिया गया, क्योंकि बाजार में मक्का के दाम 1,800 से 1,900 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर गए थे, जो केंद्र के MSP 2,400 रुपये से काफी कम है. इस साल उत्पादन भी बढ़ा है. कर्नाटक ने 2024-25 में 66 लाख टन मक्का पैदा किया, जबकि पिछले साल यह 56 लाख टन था. पिछले पांच सालों में मक्का की खेती का रकबा लगातार बढ़ा है, लेकिन मौसम की मार के कारण पैदावार में उतार-चढ़ाव आता रहा है.
मक्के के रकबे में बढ़ोतरी
कृषि आंकड़ों के अनुसार, कर्नाटक में मक्का की खेती का रकबा 2020-21 में 17.2 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 2023-24 में 19.7 लाख हेक्टेयर हो गया. हालांकि इसी अवधि में पैदावार 3,689 किलो प्रति हेक्टेयर से घटकर 2,855 किलो रह गई थी. अच्छी मॉनसून बारिश के कारण 2024-25 में पैदावार बढ़कर 3,489 किलो प्रति हेक्टेयर हो गई. कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक सीबी बालारेड्डी ने कहा कि मक्का और सूरजमुखी ऐसी फसलें हैं जिनमें हाइब्रिड बीजों का सबसे ज्यादा उपयोग होता है, इसलिए ये जलवायु और कीटों के प्रति अधिक सहनशील हैं.
कितना है मक्के का MSP
किसानों का कहना है कि उत्पादन बढ़ने के बाद भी उन्हें इसका सही दाम नहीं मिल रहा. किसान नेता कुरुबु शांतकुमार ने कहा कि पैदावार में गिरावट कभी ज्यादा बारिश तो कभी सूखे जैसी स्थिति के कारण होती है, क्योंकि हाइब्रिड किस्म में कीटों का ज्यादा प्रभाव नहीं होता. उन्होंने कहा कि इस बार 10 लाख टन का बंपर उत्पादन होने के बावजूद व्यापारी कीमतें 1,800 से 1,900 रुपये प्रति क्विंटल तक गिरा रहे हैं, जबकि केंद्र का MSP 2,400 रुपये है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
विशेषज्ञों का कहना है कि असली समस्या बाजार से जुड़ाव की कमी है. यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, GKVK के लोहितस्वा एच.सी. ने कहा कि उत्पादन बढ़ रहा है, लेकिन फसल के लिए मजबूत बाजार नहीं बन पाया है. उन्होंने कहा कि आयात, ज्यादा घरेलू उत्पादन और केंद्र की खरीद रुकने से दाम MSP से नीचे चले गए हैं. इसी वजह से राज्य सरकार ने केंद्र से अनुरोध किया है कि आयात रोका जाए और पोल्ट्री व एथनॉल उद्योगों के लिए मक्का खरीद में समर्थन दिया जाए.