भारत 5 लाख मीट्रिक टन ऑर्गेनिक आटे का कर सकता है निर्यात, केंद्र सरकार देगी अनुमति
केंद्र सरकार भारत से 5 लाख मीट्रिक टन ऑर्गेनिक आटे के निर्यात की अनुमति दे सकती है. गेहूं की रिकॉर्ड खरीदारी और पर्याप्त स्टॉक के बीच यह कदम तीन साल बाद निर्यात में पहला बड़ा ढील होगा. सीमित निर्यात से वैश्विक आपूर्ति में मदद और भारतीय मिलों को अंतरराष्ट्रीय मांग का लाभ मिलेगा.
Wheat export: केंद्र सरकार ने कहा है कि भारत अगले कुछ समय में 5 लाख मीट्रिक टन ऑर्गेनिक आटे के निर्यात को लेकर अनुमति दे सकता है. यह गेहूं आधारित उत्पादों के निर्यात में तीन साल से अधिक समय बाद पहला बड़ा ढील देने जैसा कदम होगा. यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब देश में गेहूं की खरीदारी तेज है, महंगाई 0.3 फीसदी रिकॉर्ड कम है और स्टॉक पर्याप्त हैं, जिससे निर्यात पर नियंत्रण थोड़ी ढील देने की स्थिति बन गई है. 2024-25 रबी मार्केटिंग सीजन में 30 जून तक गेहूं की खरीदारी 299.2 लाख मीट्रिक टन रही, जो पिछले तीन साल में सबसे ज्यादा है और सरकार के 310 लाख मीट्रिक टन लक्ष्य के करीब है.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों ने कहा कि खाद्य मंत्रालय गेहूं और उससे बने उत्पाद जैसे आटा, मैदा और सूजी के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने पर विचार कर रहा है, क्योंकि इस साल फसल अच्छी होने और मॉनसून शानदार रहने की उम्मीद है, जो पिछले पांच साल में सबसे अच्छा है. कृषि मंत्रालय ने पहले ही जुलाई 2024 से जून 2025 के दौरान गेहूं की रिकॉर्ड 1175 लाख मीट्रिक टन उत्पादन का अनुमान लगाया था, जिससे घरेलू उपलब्धता पर भरोसा बढ़ा है. 2022 में निर्यात पर रोक लगाने से पहले भारत के गेहूं का निर्यात 2.12 अरब डॉलर तक पहुंच गया था.
ऑर्गेनिक गेहूं के निर्यात की अनुमति
ऑर्गेनिक गेहूं के निर्यात की अनुमति देना भारत के गेहूं आधारित निर्यात को धीरे-धीरे फिर से खोलने की पहली दिशा हो सकती है. विश्लेषकों का कहना है कि सीमित निर्यात भी वैश्विक आपूर्ति में मदद कर सकता है, खासकर एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व के आयात पर निर्भर देशों के लिए, साथ ही भारतीय मिल और प्रोसेसर मजबूत अंतरराष्ट्रीय मांग का लाभ उठा सकते हैं.
जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा
बता दें कि केंद्र सरकार जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है. आज ही तमिलनाडु के कोयंबटूर से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की 21वीं किस्त जारी करने के बाद पीएम मोदी ने कहा कि प्राकृतिक खेती 21वीं सदी की जरूरत हो गई है. आने वाले समय में भारत प्राकृतिक खेती का ग्लोबल हब बनने की ओर बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि पिछले 11 सालों में कृषि क्षेत्र में बड़ा बदलाव आया है और हमारा कृषि निर्यात दोगुना हो गया है.
हमारे पूर्वजों की परंपराओं और ज्ञान
पीएम ने कहा कि प्राकृतिक खेती 21वीं सदी की कृषि की जरूरत है. हाल के सालों में बढ़ती मांग के चलते कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग तेजी से बढ़ा है. इसके कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो रही है और खेती का खर्च बढ़ रहा है. इसका समाधान फसल विविधीकरण और प्राकृतिक खेती में है. उनके मुताबिक, प्राकृतिक खेती भारत का अपना विचार है, यह कोई आयातित चीज नहीं है. यह हमारे पूर्वजों की परंपराओं और ज्ञान से उत्पन्न हुई है.