कहते हैं जिसने एक बार लंगड़ा का स्वाद चख लिया, वो बाकी आमों का स्वाद भूल जाता है. क्योंकि बनारसी लंगड़ा की खुशबू और स्वाद ही उम्दा है. साथ ही बाकी अमों से ज्यादा रसीला और लजीज भी. यही वजह है कि इसकी डिमांड केवल दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, बल्कि यूरोप तक है. हालांकि, बनारसी लंगड़ा को अपनी खासित के चलते जीआई टैग भी मिल हुआ है.
ऐसे देश में 1500 से ज्यादा किस्म के आम उगाए जाते हैं, पर लंगड़ा की बात ही अगल है. यह एक खास किस्म का आम है जो उत्तर प्रदेश के बनारस में उगता है. इसका इतिहास भी उतना ही दिलचस्प है जितना इसका स्वाद. कृषि एक्सपर्ट का कहना है कि लंगड़ा आम की जड़ें बंगाल के मालदा आम से जुड़ी हैं. बहुत साल पहले बनारस के एक शिव मंदिर में इसका एक पेड़ उगा था. इसके बाद बनारस में इसकी खेती की शुरुआत हो गई.
300 साल पुरानी है इसकी कहानी
दरअसल, 250 से 300 साल पहले एक संत काशी आए थे. वे अपने साथ एक खास किस्म के आम का बीज लाए थे. वे जिस शिव मंदिर में ठहरे थे, उस बीज को उसी के परिसर में लगा दिया. कुछ ही सालों में वह पौधा बड़ा हुआ और उस पर मीठे और रसीले आम लग गए. जब लोगों ने इन आमों का स्वाद चखा तो इसके दीवाने हो गए. इसके बाद लोगों ने उस किस्म को अपने खेतों में उगाना चाहा, लेकिन संत ने बीज देने से मना कर दिया. जब काशी नरेश ने उनसे खास अनुरोध किया, तो उन्होंने एक बीज दे दिया. इसके बाद धीरे-धीरे इस किस्म के आम का बाग पूरे इलाके में फैल गया. चूंकि वो संत लंगड़े थे, इसलिए इस आम का नाम उनके नाम पर ही ‘लंगड़ा आम’ पड़ गया.
साल 2023 में मिला GI टैग
अगर लंगड़ा आम की खासियत की बात करें, इसकी खुशबू बेहद मोहक होती है. इसके बाग के बगल से गुजरने पर आपको इसकी खुशबू मिल जाएगी. साथ ही इसका छिलका बेहद पतला और गूदा बहुत मुलायम व रसीला होता है. लंगड़ा आम यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल के पूर्वी हिस्सों में इतना लोकप्रिय है कि फसल आते ही तुरंत बिक जाती है. हालांकि लखनऊ, बिहार और बंगाल में उगने वाला लंगड़ा भी अच्छा होता है, लेकिन बनारसी लंगड़ा की बात ही कुछ और है. इसी वजह से इसे साल 2023 में GI टैग भी मिल गया.
बनारस के इन इलाकों में होती है खेती
मौजूदा वक्त में बनारस जिले के अंदर करीब 1,635 बागान मालिक लंगड़ा आम की खेती कर रहे हैं. इसकी सबसे ज्यादा खेती चिरईगांव, अराजीलाइन, हरहुआ और बरागांव जैसे इलाकों में होती है. हालांकि, बीएचयू, रामनगर, नदेसर पैलेस और शहर के अंदर भी भारी मात्रा में ये आम उगाए जाते हैं. कहा ये भी जाता है कि पहले बनारस शहर में दो किस्म के लंगड़ा आम मशहूर थे, जिसमें स्टेट बैंक लंगड़ा, जो राजघराने के बागान में उगता था और मोतीझील लंगड़ा, जो उनके परिवार के बागान में उगता था.
क्या होता है जीआई टैग
भागलपुरी कतरनी चावल को 2018 में भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा दिया गया है. ऐसे जीआई टैग का पूरा नाम Geographical Indication यानी भौगोलिक संकेत है. यह एक तरह का प्रमाणपत्र होता है जो यह बताता है कि कोई उत्पाद किसी खास क्षेत्र या भौगोलिक स्थान से जुड़ा हुआ है और उसकी विशिष्ट गुणवत्ता, पहचान या प्रतिष्ठा उस क्षेत्र की वजह से है.
लंगड़ा आम से जुड़े कुछ रोचक फैक्ट्स
- साल 2023 में बनारसी लंगड़ा को मिला GI टैग
- 1,635 बागान मालिक कर रहे हैं लंगड़ा की खेती
- बनारस में करीब 4500 टन लंगड़ा आम का उत्पादन होता है
- 250 से 300 साल पुराना है लंगना का इतिहास
- इस साल 100 टन से ज्यादा लंगड़ा आम के निर्यात का लक्ष्य रखा गया है
- जापान, लंदन, बांग्लादेश, कोरिया, और खाड़ी देशों में होता है लंगड़ा का निर्यात
- लंगड़ा आम का नाम एक संत के नाम पर पड़ा है