आम का नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है. खास कर उत्तर प्रदेश और बिहार में दशहरी और लगड़ा आम कुछ ज्यादा ही चाव के साथ खाया जाता है. इसका रेट 50 से 100 रुपये किलो के बीच होता है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि भारत में आम की एक ऐसी भी किस्म है, जो 500 से 1500 रुपये प्रति पीस बिकता है. लेकिन कभी-कभी इसका रेट 2600 रुपये किलो हो जाता है. इस किस्म की डिमांड भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में है. तो आइए आज जानते हैं इस किस्म की खासियत के बारे में.
दरअसल, हम आम की जिस किस्म के बारे में बात करने जा रहे हैं, उसका नाम ‘ कोहीतूर’ है. इसका मूल स्थान पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद है. कहा जाता है कि इसको नवाब के शासन काल में ईजाद किया गया था. यही वजह है कि इसे ‘कोहिनूर’ भी कहा जाता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह महक और सुनहरे रंग के लिए जाना जाता है. कोहीतूर आम सिर्फ स्वाद में नहीं, बल्कि अपनी दुर्लभता और इतिहास के लिए भी बेहद खास माना जाता है. इसकी कीमत 500 रुपये से 1,500 रुपये प्रति पीस तक होती है. यह आम भारत की बागवानी परंपरा की एक अनमोल धरोहर है.
इस साल केवल 150 आम पेड़ पर आए
सीएनबीसी टीवी18 की रिपोर्ट के मुताबिक, स्थानीय आम विक्रेता पीहू शेखर ने कहा कि कोहीतूर आम कोई साधारण आम नहीं है. इस आम को चाकू से नहीं काटा जा सकता है. इसे बड़े नाजुक तरीके से संभालना पड़ता है. उन्होंने कहा कि ये आम नवाब के ऐतिहासिक बाग, जफरगंज (लालबाग) में उगते हैं, जहां अब सिर्फ दस पेड़ बचे हैं. इस बार सिर्फ तीन पेड़ों पर ही फल लगे हैं, जिसकी कुल संख्या 150 है. इस साल पैदावार इतनी कम है कि कोहीतूर आम केवल कोलकाता भेजे जाएंगे, जबकि पहले ये अंतरराष्ट्रीय ऑर्डर पर भी भेजे जाते थे.
नवाब के आदेश पर तैयार किया गया
कोहीतूर आम का इतिहास भी उसके स्वाद जितना ही खास और समृद्ध है. ऐसा माना जाता है कि इस आम को नवाब सिराजुद्दौला के आदेश पर तैयार किया गया था. इसे देशभर से चुनी गई बेहतरीन आम की किस्मों जैसे दुर्लभ कालोपहाड़ को मिलाकर तैयार किया गया था. कुछ कहानियां इसे नवाब मुर्शिद कुली खान से जोड़ती हैं, जिन्होंने इसे पहली बार रंगून (अब यांगून) में चखा और फिर मुर्शिदाबाद लेकर आए.
इस तरह होती है आम की तुड़ाई
नवाबी दौर में इन आमों की देखभाल बेहद खास तरीके से होती थी. मैंगो क्लर्क्स या बाग के विशेष सेवक इन पेड़ों को बहुत बारीकी से संभालते थे. उन्हें केवल देखकर पता चल जाता था कि आम तोड़ने का सही समय कब है. कोहीतूर आम कभी चाकू या दरांती से नहीं तोड़े जाते थे. इन्हें बांस की पतली सीली से बहुत नर्मी से तोड़ा जाता था, ताकि डंठल को कोई नुकसान न पहुंचे, क्योंकि माना जाता था कि डंठल को चोट लगने से आम का स्वाद भी खराब हो सकता है. आज भले ही शाही दरबार इतिहास बन चुके हैं, लेकिन कोहीतूर आम आज भी उस बीते दौर का स्वाद और शाही अहसास जिदा रखे हुए हैं.