जीनोमिक तकनीक से तैयार होगी साहिवाल गायों की उन्नत नस्ल, बढ़ेगा दूध उत्पादन.. किसानों की कमाई में इजाफा

NDRI ने साहिवाल गायों के लिए भारत का पहला जीनोमिक चयन कार्यक्रम शुरू किया है, जिससे दूध उत्पादन, आनुवांशिक सुधार और किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी. यह तकनीक छोटे किसानों के लिए भी लाभकारी है.

वेंकटेश कुमार
नोएडा | Published: 20 Aug, 2025 | 11:30 PM

भारत के डेयरी क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक पहल है. ICAR-नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (NDRI) ने साहिवाल गायों के लिए देश का पहला जीनोमिक चयन कार्यक्रम शुरू किया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस पहल का उद्देश्य देशी नस्लों में तेजी से आनुवांशिक सुधार करना है, जिससे दूध उत्पादन बढ़े और छोटे व मध्यम स्तर के डेयरी किसानों को अधिक लाभ हो सके. इस तकनीक की मदद से सबसे अच्छी गुणवत्ता वाले पशुओं का ही आगे प्रजनन किया जाएगा. 

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, NDRI के निदेशक डॉ. धीर सिंह ने कहा कि देश में पहली बार साहिवाल गायों के लिए जीनोमिक चयन कार्यक्रम शुरू किया गया है. इससे दूध उत्पादन बढ़ेगा. साथ ही आनुवांशिक सुधार तेजी से होगा और किसानों को बेहतर आर्थिक लाभ मिलेगा.  इस कार्यक्रम की खास बात यह है कि इसमें एक अत्याधुनिक जीनोमिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जिसे देशी नस्लों के मूल्यांकन के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है.

छोटे किसानों की बढ़ेगी कमाई

संस्थान ने भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए खास मॉडल तैयार किए हैं. इनमें छोटे किसानों की उत्पादन प्रणाली, अलग-अलग नस्लों के झुंड और सीमित वंशावली (pedigree) वाले क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है. इन टूल्स की मदद से यह सुनिश्चित किया गया है कि जीनोमिक क्रांति में छोटे और सीमांत किसान भी पीछे न रहें. NDRI के निदेशक ने कहा कि इस तकनीक से वैज्ञानिक अब ऐसे सांडों की पहचान कर सकते हैं जिनमें दूध उत्पादन की सबसे अधिक आनुवांशिक क्षमता है. इससे पारंपरिक तरीकों पर निर्भरता कम होगी, जो केवल बाहरी लक्षणों (phenotype) पर आधारित होते हैं और जिनके नतीजे आने में कई साल लग जाते हैं.

इस परियोजना को सफल बनाने में वैज्ञानिकों की एक टीम ने अहम भूमिका निभाई. इसमें डॉ. विकास वोहरा (प्रमुख, पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन विभाग), डॉ. अनुपमा मुखर्जी (प्रधान वैज्ञानिक), डॉ. रानी एलेक्स (सीनियर वैज्ञानिक), डॉ. गोपाल गोवाने और डॉ. टी.वी. राजा (दोनों प्रधान वैज्ञानिक) शामिल रहे. इन वैज्ञानिकों ने NDRI की विभिन्न साहिवाल गायों पर परीक्षण किए और उनकी जीनोमिक ब्रीडिंग वैल्यू (GBV) तय की.

दूध उत्पादन में भी होगा इजाफा

अब तक की उपलब्धियों के बारे में बताते हुए निदेशक डॉ. धीर सिंह ने कहा कि इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी सफलता यह है कि इससे गाय-बैलों की पीढ़ी बदलने में लगने वाला समय काफी कम हो गया है. पारंपरिक तरीकों में जहां 7-8 साल लगते हैं, वहीं जीनोमिक चयन की मदद से कुछ ही हफ्तों में बेहतरीन सांड उपलब्ध कराए जा सकते हैं. इससे जीनोमिकली टेस्ट किए गए साहिवाल सांडों का उच्च गुणवत्ता वाला सीमन (वीर्य) जल्दी किसानों तक पहुंच सकेगा, जिससे दूध उत्पादन बढ़ेगा और ग्रामीण परिवारों की आय में सुधार होगा. डॉ. सिंह ने यह भी कहा कि यह तकनीकी प्रगति राज्य सरकारों और केंद्र की एजेंसियों को भी मदद करेगी. वे अब देशभर में टॉप क्वालिटी के साहिवाल सांडों का सीमन तैयार कर पाएंगे, जिससे सरकार की देशी नस्ल सुधार योजनाओं को गति मिलेगी और इसके फायदे ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचेंगे.

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Published: 20 Aug, 2025 | 11:30 PM

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