बिहार के गांवों में किसान के जीवन का आधार केवल खेत नहीं होते, उनके पशु ही असली सहारा होते हैं. गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी- ये सब सिर्फ दूध और मांस देने वाले प्राणी नहीं हैं, बल्कि किसान के परिवार का हिस्सा होते हैं. पशु स्वस्थ रहेंगे तो किसान का घर भी खुशहाल रहेगा. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले बिहार सरकार पशुपालन निदेशालय अब इसी दिशा में लगातार काम कर रहा है ताकि पशु स्वास्थ्य को गंभीरता से लिया जाए और किसानों की आय भी बढ़े.
पशु स्वास्थ्य किसानों की आय से सीधा जुड़ा है
किसान दिन-रात मेहनत करता है, लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति तब मजबूत होती है जब उसके पशु स्वस्थ हों और पूरा दूध दें. जिस भैंस से रोज दूध मिलता है, वही उसके बच्चों की पढ़ाई और घर के खर्च चलाती है. इसीलिए बिहार सरकार यह समझती है कि पशु रोग-मुक्त होंगे तो किसान को दवा पर खर्च भी कम करना पड़ेगा और दूध उत्पादन भी बढ़ेगा.
पौष्टिक आहार और साफ-सफाई भी है जरूरी
पशुओं के लिए केवल चारा ही काफी नहीं होता. उन्हें संतुलित पोषण, खनिज मिश्रण, साफ पानी और स्वच्छ वातावरण भी चाहिए. अक्सर गंदगी से कई बीमारियां लग जाती हैं, जिससे दूध की मात्रा घट जाती है. पशुपालन विभाग समय-समय पर कैंप लगाकर किसानों को बताता है कि पशु के लिए कौन-सा आहार जरूरी है और बीमारी के पहले लक्षण देखते ही डॉक्टर को कैसे बुलाना चाहिए.
रोग-नियंत्रण और समय पर टीकाकरण
जैसे इंसानों में टीकाकरण होता है, वैसे ही पशुओं का भी वैक्सीनेशन बहुत ही जरूरी है. बिहार सरकार फुट एंड माउथ डिजीज (FMD), खुरहा-मुंहपका और ब्रुसेलोसिस जैसी बीमारियों के लिए मुफ्त टीकाकरण अभियान चला रही है. इससे पशुओं की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और पूरे गाँव के मवेशी सुरक्षित रहते हैं. हर ब्लॉक और पंचायत में पशु चिकित्सक की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है ताकि कोई किसान इलाज के लिए दूर भटकना न पड़े.
पशु कल्याण से होगा ग्रामीण समाज मजबूत
जब पशुओं को समय पर दवा, टीका और अच्छा खाना मिलता है तो उनका वजन बढ़ता है, दूध ज्यादा देता है और उनका जीवनकाल भी बढ़ता है. इससे किसान परिवार ज्यादा आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस करता है. बिहार सरकार की कोशिश है कि हर किसान यह समझे कि पशु भी परिवार का हिस्सा हैं और उनका स्वास्थ्य गांव की खुशहाली से जुड़ा हुआ है. यही कारण है कि पशु कल्याण शिविर, जागरूकता अभियान और मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं बराबर जारी हैं.