पंजाब में 1 जून से शुरू होगी धान की बुवाई, किसान इन दो किस्मों की नहीं कर पाएंगे खेती

पंजाब में 1 जून से धान की रोपाई शुरू हो रही है, जबकि PUSA-44 जैसी प्रतिबंधित और पानी की अधिक खपत करने वाली किस्मों की वापसी से पर्यावरणीय संकट गहराने की आशंका है.

नोएडा | Updated On: 28 May, 2025 | 03:32 PM

पंजाब में 1 जून से धान की रोपाई शुरू होने जा रही है. जबकि कृषि विशेषज्ञ लगातार इसके पर्यावरणीय खतरे और प्रतिबंधित किस्मों की खेती को लेकर चेतावनी दे रहे हैं. राज्य के कृषि विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, कई किसान अब भी लंबे समय में तैयार होने वाली और अधिक पानी की खपत करने वाली PUSA-44 और PR-126 किस्मों की खेती कर रहे हैं, जबकि इन पर प्रतिबंध पहले से जारी हैं. जानकारों का कहना है कि सरकार के पास इन प्रतिबंधित किस्मों की बुवाई पर रोक लगाने या निगरानी करने का कोई ठोस तंत्र नहीं है. इससे पंजाब के जल संसाधनों की टिकाऊ स्थिति पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

पंजाब सरकार ने पहले भूजल बचाने के लिए धान रोपाई की तारीख आगे बढ़ाई थी, लेकिन अब इसे फिर से 1 जून से शुरू करने का फैसला किया गया है. इस निर्णय की कृषि वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने कड़ी आलोचना की है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में याचिकाएं दायर होने के बावजूद सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी है, जिसके तहत अब चरणबद्ध तरीके से रोपाई की इजाजत दी गई है.

1 जून से इन जिलो में शुरू होगी खेती

सरकारी अधिसूचना के अनुसार, पंजाब में धान की रोपाई 1 जून से फरीदकोट, बठिंडा, फिरोजपुर, मुक्तसर और फाजिल्का में शुरू होगी। 5 जून से गुरदासपुर, पठानकोट, अमृतसर, तरनतारन, रूपनगर, एसएएस नगर (मोहाली), फतेहगढ़ साहिब और होशियारपुर में शुरू होगी. जबकि 9 जून से लुधियाना, मलेरकोटला, मानसा, मोगा, पटियाला, संगरूर, बरनाला, कपूरथला, जालंधर और शहीद भगत सिंह नगर में रोपाई की अनुमति होगी. धान की सीधी बुवाई (DSR) पूरे राज्य में 15 मई से 31 मई तक की जा सकती है.

किसान कर रहे इस किस्म की खेती

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) के पूर्व कुलपति बीएस ढिल्लों ने सरकार के इस फैसले की निंदा की है. उन्होंने कहा कि 1 जून से रोपाई की अनुमति देना 2009 से पंजाब के भूजल को बचाने के लिए किए गए वर्षों के प्रयासों को कमजोर करता है और राज्य को एक पर्यावरणीय संकट की ओर ले जाता है. जल्दी बुवाई की घोषणा के बाद राज्य में किसान फिर से लंबी अवधि वाली और पानी की ज्यादा खपत करने वाली PUSA-44 किस्म की ओर झुक रहे हैं, क्योंकि इससे चावल की उपज अधिक मिलती है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह किस्म बाकी किस्मों की तुलना में 15 से 20 फीलसदी अधिक पराली छोड़ती है, जिससे पराली जलाने की घटनाएं बढ़ सकती हैं और वायु प्रदूषण की समस्या फिर से खड़ी हो सकती है.

 

Published: 28 May, 2025 | 03:31 PM