अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी महंगा, किसानों की जेब पर पड़ेगा कितना असर?

जो खाद देश में बनती है, उसमें इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल फॉस्फोरिक एसिड और रॉक फॉस्फेट भी बाहर से मंगाना पड़ता है. यानी कुल मिलाकर हम डीएपी के लिए लगभग पूरी तरह से विदेशों पर निर्भर हैं.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 14 May, 2025 | 08:23 AM

देश के किसानों के लिए एक नई चिंता सामने आई है. खेती में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली डीएपी (डाई-अमोनियम फॉस्फेट) खाद की कीमतों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेज उछाल देखने को मिला है. अप्रैल तक जहां एक टन डीएपी 640 डॉलर में मिल रही थी, अब वही कीमत बढ़कर 720 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है. ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या इसका सीधा असर किसानों की जेब पर पड़ेगा?

फिलहाल सरकार संभालेगी मोर्चा

विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल किसानों को ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है. सरकार ने खरीफ 2025 सीजन के लिए डीएपी पर दी जाने वाली सब्सिडी को बढ़ाकर 27,799 रुपये प्रति टन कर दिया है. इससे खाद कंपनियों को कुछ राहत मिलेगी, ताकि वे किसानों को अभी भी वही पुरानी कीमत यानी करीब 1350 रुपये प्रति बैग पर खाद मुहैया करा सकें.

लेकिन सच्चाई यह है कि कंपनियों को अभी भी घाटा उठाकर ही डीएपी मंगवानी पड़ रही है. क्योंकि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय दरों के हिसाब से एक टन डीएपी भारत में लगभग 65,000 रुपये तक पड़ती है. इसमें सीमा शुल्क, पैकिंग और ढुलाई जैसी लागतें भी जुड़ी होती हैं.

देश में कितनी खपत और कितना आयात?

भारत में हर साल लगभग 100 लाख टन डीएपी की खपत होती है, लेकिन इसका करीब आधा ही देश में बन पाता है. बाकी 50 लाख टन के करीब खाद विदेशों से आयात की जाती है. यहां तक कि जो खाद देश में बनती है, उसमें इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल फॉस्फोरिक एसिड और रॉक फॉस्फेट भी बाहर से मंगाना पड़ता है. यानी कुल मिलाकर हम डीएपी के लिए लगभग पूरी तरह से विदेशों पर निर्भर हैं.

मोरक्को और सऊदी अरब से करार

सरकार ने डीएपी की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए मोरक्को और सऊदी अरब के साथ दीर्घकालिक समझौते किए हैं. हर साल वहां से 20-20 लाख टन खाद मंगाने की व्यवस्था है. मोरक्को की सरकारी कंपनी OCP और सऊदी की MA’ADEN इस दिशा में बड़ी भूमिका निभा रही हैं.

हालांकि, कुछ डीएपी चीन और रूस से भी आती है. लेकिन इस समय चीन से निर्यात पूरी तरह से खुला नहीं है, जिससे वैश्विक कीमतों में मजबूती बनी हुई है. माना जा रहा है कि अगर चीन से सप्लाई शुरू होती है, तो कीमतों में कुछ राहत आ सकती है.

सब्सिडी का बकाया और बढ़ती लागत

हालांकि सरकार ने मौजूदा खरीफ सीजन के लिए सब्सिडी बढ़ा दी है, लेकिन कुछ कंपनियों की पुरानी सब्सिडी अभी भी बकाया है. इससे उनकी आर्थिक स्थिति पर दबाव बना हुआ है. रबी सीजन (अक्टूबर 2024 से मार्च 2025) के दौरान डीएपी पर 21,911 रुपये प्रति टन की सब्सिडी थी, जिसमें 3,500 रुपये प्रति टन का विशेष इंसेंटिव भी दिया गया था. अब यह सब्सिडी बढ़कर 27,799 रुपये हो गई है, लेकिन कंपनियों का कहना है कि जब तक उन्हें समय पर भुगतान नहीं मिलेगा, तब तक आयात करना उनके लिए घाटे का सौदा ही बना रहेगा.

फिलहाल तो किसान राहत की सांस ले सकते हैं क्योंकि सरकार ने दाम नहीं बढ़ने दिए हैं. लेकिन अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी की कीमतें यूं ही चढ़ती रहीं और चीन से सप्लाई नहीं खुली, तो भविष्य में ये बोझ सरकार के लिए भी भारी पड़ सकता है. ऐसे में किसान की नजर एक बार फिर सरकार की नीतियों और समर्थन पर टिक गई है.

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