भारत ने पिछले एक दशक में ऊर्जा क्षेत्र में एक नई दिशा में बड़ी छलांग लगाई है. जहां पहले देश पूरी तरह से विदेशी कच्चे तेल पर निर्भर था, वहीं अब एथनॉल जैसे जैविक ईंधन के माध्यम से आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है. मोदी सरकार के 11 वर्षों में एथनॉल उत्पादन की क्षमता 4 गुना से भी अधिक बढ़ गई है, जो भारत के ऊर्जा, पर्यावरण और कृषि तीनों क्षेत्रों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है.
क्या है एथनॉल?
एथनॉल एक जैविक ईंधन है जो गन्ने की शीरा, खराब अनाज, मक्का, टूटे चावल और यहां तक कि सड़ी हुई सब्जियों से भी बनाया जा सकता है. यह पेट्रोल में मिलाया जाता है ताकि पारंपरिक ईंधन पर निर्भरता कम हो, प्रदूषण घटे और साथ ही किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिल सके. सरकार की एथनॉल मिश्रण नीति (Ethanol Blended Petrol – EBP) इसी सोच का नतीजा है.
11 साल में चार गुना बढ़ी उत्पादन क्षमता
2013 में देश की कुल एथनॉल उत्पादन क्षमता केवल 421 करोड़ लीटर थी. लेकिन 2025 तक यह क्षमता बढ़कर 1,810 करोड़ लीटर सालाना तक पहुंच चुकी है. यह बढ़ोतरी केंद्र सरकार की नीतियों, खासकर वित्तीय सहायता और ब्याज सब्सिडी जैसी योजनाओं के कारण संभव हो पाई है.
एथनॉल मिश्रण की दर में भी जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. 2013-14 में जहां पेट्रोल में एथनॉल की मात्रा केवल 1.53 प्रतिशत थी, वहीं अब 2024-25 के दौरान यह 18.74 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है. सरकार का लक्ष्य है कि 2025-26 तक यह मिश्रण 20 प्रतिशत तक पहुंच जाए.
किसानों और अर्थव्यवस्था को मिला सीधा लाभ
एथनॉल नीति से सबसे बड़ा फायदा देश के किसानों को मिला है. गन्ना, मक्का और खराब हो चुके अनाज को बेचने का नया माध्यम मिला है, जिससे उनकी आमदनी में इजाफा हुआ है. पिछले 11 सालों में एथनॉल से संबंधित उद्योगों ने लगभग 2 लाख करोड़ रुपये की कमाई की है, जिसमें से करीब 1.22 लाख करोड़ रुपये सिर्फ गन्ने से बने एथनॉल से आए हैं.
इसके अलावा, एथनॉल मिश्रण से देश को अब तक 1.10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की विदेशी मुद्रा बचत हुई है. यह तेल आयात पर हमारी निर्भरता को घटाता है, जो देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है.
सरकार की योजनाएं बनीं बड़ी ताकत
एथनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने 2018 से 2022 के बीच कई ब्याज सब्सिडी योजनाएं चलाईं. इसके तहत जिन कंपनियों या सहकारी समितियों ने एथनॉल प्लांट लगाने के लिए बैंक से कर्ज लिया, उन्हें सरकार ने 6 प्रतिशत या बैंक द्वारा लिए गए ब्याज का 50 प्रतिशत, जो भी कम हो, उसके रूप में 5 वर्षों तक सहायता दी.
हाल ही में, मार्च 2025 में सरकार ने एक नई योजना भी शुरू की है, जिसके तहत सहकारी शुगर मिलों को उनके मौजूदा गन्ना आधारित प्लांट्स को मल्टी-फीड आधारित एथनॉल यूनिट्स में बदलने के लिए प्रोत्साहन दिया गया है.
उत्पादन के स्रोत हुए विविध
भारत में अब एथनॉल कई स्रोतों से उत्पादित हो रहा है. कुल 1,810 करोड़ लीटर की उत्पादन क्षमता में से 816 करोड़ लीटर गन्ने की शीरा आधारित है, 858 करोड़ लीटर अनाज आधारित है और 136 करोड़ लीटर ड्यूल फीड (दोनों स्रोतों से) आधारित है.
राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति 2018 के तहत अब ऐसे खाद्य पदार्थों को भी एथनॉल उत्पादन में इस्तेमाल करने की अनुमति है जो इंसानों के खाने के लायक नहीं रह गए हों, जैसे खराब आलू, टूटे चावल, सड़ी हुई सब्जियां या एक्सपायरी डेट के पेय पदार्थ. इससे खाद्य अपव्यय कम हुआ है और एथनॉल उत्पादन में निरंतरता बनी रहती है.