बीमा में भी बेईमानी के शिकार हुए किसान, माफिया के निशाने पर घोटाला उजागर करने वाले व्हिसल ब्लोअर

झांसी के सांसद अनुराग शर्मा की जमीन पर किसी दूसरे व्यक्ति ने बीमा कराकर प्रीमियम की राशि भी जमा कर दी और बाद में फसल को हुए कथित नुकसान का हवाला देकर बीमा क्लेम भी हासिल कर लिया. कृषि विभाग और बीमा कंपनियां अब फर्जी बीमा कराने वालों की तलाश में हैं.

नई दिल्ली | Updated On: 25 Dec, 2025 | 05:01 PM

सरकार किसानों की भलाई के लिए कितनी भी योजनाएं क्यों न बना ले, सरकार का बनाया हुआ अपना ही सिस्टम इन योजनाओं को खुद ही भ्रष्टाचार का शिकार बना लेता है. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का हश्र भी कुछ ऐसा ही होता नजर आ रहा है. किसान कल्याण के लिए लागू की गई तमाम योजनाओं की तरह फसल बीमा योजना भी बीमा कंपनियों ओर कृषि विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत की भेंट चढ़ गई है. साल 2016 में मोदी सरकार ने बड़े ही गाजे बाजे के साथ इस योजना का आगाज किया था. महज 10 साल के भीतर ही हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और अब उत्तर प्रदेश में इस योजना में बड़े पैमाने पर हुए भ्रष्टाचार ने सरकार तंत्र की कलई खोल कर रख दी है.

बीमा माफिया के निशाने पर घोटाला उजागर करने वाले व्हिसल ब्लोअर

ताजा मामला यूपी में बुंदेलखंड इलाके से उजागर हुआ है. इसमें जमीन के फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर फर्जी किसानों को बीमा की रकम देने का बड़ा घोटाला सरकार के संज्ञान में आया है. हैरत की बात तो यह है कि जिन किसानों ने इस मामले को उजागर कर बीमा माफिया तंत्र से दुश्मनी लेने का जोखिम उठाया, सरकार व्हिसल ब्लोअर बने उन किसानों को अब सुरक्षा भी मुहैया नहीं करा पा रही है. इतना ही नहीं, बीमा कंपनी और कृषि विभाग के अफसर सैकड़ों करोड़ रुपये के हेरफेर की जांच करने के नाम पर महज औपचारिकताएं पूरी करने और आंदोलन कर रहे किसानों की आवाज को दबाने पर पूरा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. इस बीच मीडिया रिपोर्टों के माध्यम से इस मामले की परतों को एक एक कर उधेड़ा जा रहा है. इनमें उजागर हुए चौंकाने वाले तथ्यों बीमा माफिया तंत्र द्वारा फर्जीवाड़े के लिए अपनाए गए नए तरीकों का भी पता चल रहा है.

नदियों, चारागाह, सरकारी जमीनों को अपना दिखाकर बीमा घोटाला

इसमें गड़बड़ी का सबसे बड़ा मामला महोबा जिले से उजागर हुआ है. इसे मीडिया की नजरों में लाने वाले किसान गुलाब सिंह द्वारा सरकार के समक्ष पेश किए गए दस्तावेजों से पता चला है कि देश की अग्रणी बीमा कंपनी इफको टोकियो द्वारा नदियों के बहाव क्षेत्र वाली जमीन, चारागाह की जमीन, ग्राम समाज की सरकारी जमीन और यहां तक कि एक सांसद की जमीन पर फसल बीमा पॉलिसी बना दी. बीमा के दायरे में ली गई इन जमीनों पर सालों से खेती भी नहीं की जा रही थी. झांसी के सांसद अनुराग शर्मा की जमीन पर किसी दूसरे व्यक्ति ने बीमा कराकर प्रीमियम की राशि भी जमा कर दी और बाद में फसल को हुए कथित नुकसान का हवाला देकर बीमा की क्लेम भी हासिल कर लिया. कृषि विभाग और बीमा कंपनियां अब फर्जी बीमा कराने वालों की तलाश कर रही है. फर्जीवाड़ा करने वालों की खोजबीन के बीच अब तक 3 दर्जन तक बीमा कर्मचारी हिरासत में जरूर ले लिए गए है.

बीमा फर्जीवाड़े का नेटवर्क झांसी, ललितपुर, जालौन और हमीरपुर तक फैला

इस मामले की तह तक जाने के लिए कमर कस चुके किसान गुलाब सिंह ने बीमा की ऑनलाइन होने वाली प्रक्रिया से जुड़े दूसरे जिलों के दस्तावेज भी निकाल कर शासन के समक्ष पेश कर दिए हैं. इससे पता चला है कि फसल बीमा की गड़बड़ी सिर्फ महोबा तक ही सीमित नहीं है. फर्जीवाड़े का नेटवर्क झांसी, ललितपुर, जालौन और हमीरपुर तक फैला है. धीमी गति से ही सही, मगर जो जांच हो रही है, उसमें पता चल रहा है कि किस तरह से झांसी जिले में किए गए फसल बीमा के क्लेम की राशि जालौन और हरदोई जिले के बैंक खातों में भेजी गई. वहीं महोबा जिले में किए गए फसल बीमा के क्लेम की राशि मध्य प्रदेश के बैंक खातों में जमा हुई.

सरकार को 1.05 लाख से ज्यादा फसल बीमा पॉलिसी को रद्द करनी पड़ीं

नतीजतन, यूपी सरकार को अब तक की जांच में रबी सीजन 2024 से लेकर चालू खरीफ सीजन 2025 के दौरान गड़बड़ी के दायरे में आई संदिग्ध किस्म की 1.05 लाख से ज्यादा फसल बीमा पॉलिसी को रद्द करना पड़ा है. जांच में पता चला है कि फर्जीवाड़ा करने वालों ने उन किसानों की जमीनों के कागजों का इस्तेमाल फर्जी बीमा कराने में किया है जो अपनी फसल का बीमा कराने से अब तक परहेज करते रहे हैं. ऐसे में फसल बीमा योजना से दूरी बना कर रखने वाले किसानों के लिए यह अब जरूरी हो गया है कि वे अपनी जमीन के दस्तावेजों को जब तक जरूरी न हो तब तक किसी अन्य व्यक्ति को ना दें. खासकर सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने का लालच देने वाले ऐसे लोगों को कतई न दें, जो खुद को कृषि विभाग या खेती से जुड़ी कंपनियों का एजेंट बताकर गांवों में घूमते रहते हैं.

ऑनलाइन सिस्टम पूरी तरह से दुरुस्त नहीं

इस बीच यह मामला सरकार के लिए भी सबक बना है, जो लगातार किसान कल्याण की योजनाओं को लागू करने के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया को आधी अधूरी तैयारी के साथ बढ़ावा देने में लगी है. फसल बीमा योजना की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होने के बावजूद इतने बड़े पैमाने पर हो चुकी गड़बड़ी, इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि अभी ऑनलाइन सिस्टम पूरी तरह से दुरुस्त नहीं है. जांच में पता चला है कि फसल बीमा के लिए अभी जमीन के जो दस्तावेज इस्तेमाल किए जा रहे हैं, उनका पूरी तरह से डिजिटलीकरण नहीं हुआ है. दरअसल केंद्र सरकार ने पूरे देश में फार्मर रजिस्ट्री कराने का अभियान चलाया है. आधार से लिंक की जा रही फार्मर रजिस्ट्री में हर किसान की जमीन के हर टुकड़े का पूरा ब्यौरा दर्ज होगा.

फसल बीमा निदेशक ने केंद्र को पोर्टल में सुधार का प्रस्ताव भेजा

अभी यूपी सहित तमाम राज्यों में फार्मर रजिस्ट्री बनाने का काम पूरा नहीं हुआ है. जब तक हर किसान की फार्मर रजिस्ट्री नहीं बनेगी तब तक इस तरह के फर्जीवाड़े को नहीं रोका जा सकेगा. इस घोटाले से सबक लेकर अब यूपी की कृषि सांख्यिकी एवं फसल बीमा निदेशक सुमिता सिंह ने केंद्र सरकार के समक्ष प्रस्ताव भेजा है कि जमीन संबंधी दस्तावेजों का डिजिटलीकरण पूरा होने तक फसल बीमा पोर्टल में जरूरी सुधार संबंधी बदलाव किया जाएं. इस सबके बीच सरकार को गुलाब सिंह जैसे व्हिसल ब्लोअर किसानों की सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम करना चाहिए. आखिरकार सरकार का मकसद किसान कल्याण ही है और इसी मकसद को पूरा करने में मददगार साबित हो रहे गुलाब सिंह जैसे किसान ही सही मायने में सरकार की सजग निगाहें बन सकते हैं. गुलाब सिंह, पहले से ही बदहाली का शिकार रहे बुंदेलखंड के एक सामान्य किसान हैं और पूरा सिस्टम इस बात से वाकिफ है कि एक सामान्य किसान के पास इतने पर्याप्त संसाधन नहीं होते हैं, जिनके बलबूते व्हिसल ब्लोअर बनकर आंदोलन करने का जोखिम उठाया जा सके.

Published: 25 Dec, 2025 | 04:59 PM

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