बीज की बढ़ती कीमतों ने थाम दी मूंगफली की खेती की रफ्तार, किसान परेशान

किसानों के पास अपनी फसल को लंबे समय तक स्टोर करने की सुविधा नहीं होती. वे तुरंत मंडी में औने-पौने दाम पर फसल बेचने को मजबूर होते हैं. ऊपर से, बीजों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए विशेष भंडारण ढांचे की जरूरत होती है, जो बहुत कम जगहों पर मौजूद है.

नई दिल्ली | Published: 5 Jul, 2025 | 08:15 AM

मूंगफली यानी जमीन में उगने वाली तेल वाली फसल, जो कभी देश के कई हिस्सों में किसानों की पसंदीदा फसल थी, आज खुद अपनी पहचान बचाने के लिए संघर्ष कर रही है. वजह है किबीज की ऊंची कीमत, कम मशीनीकरण और नई किस्मों के बीजों की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होना. जूनागढ़ स्थित भारतीय मूंगफली अनुसंधान संस्थान (IIGR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, ये सारी चुनौतियां मूंगफली की खेती को सीमित कर रही हैं. एक समय था जब देशभर में मूंगफली की खेती 83 लाख हेक्टेयर में होती थी (1993-94), लेकिन अब ये घटकर केवल 57.54 लाख हेक्टेयर (2024-25) तक सिमट गई है.

आधा खर्च सिर्फ बीज पर

मूंगफली को बोने के लिए किसानों को भारी मात्रा में बीज चाहिए होता है, करीब 180 से 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर. चूंकि मूंगफली एक बड़ी बीज वाली फसल है, इसलिए इसका सीड मल्टीप्लिकेशन रेशियो भी 1:10 है यानी 1 किलो बीज से 10 किलो बीज ही तैयार हो पाता है. इसका मतलब है कि बीज उत्पादन और वितरण में बहुत समय और संसाधन लगता है. किसानों को बीज खरीदने में उत्पादन लागत का लगभग आधा हिस्सा खर्च करना पड़ता है.

कृषि मूल्य लागत आयोग (CACP) की रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 से 2023-24 के बीच मूंगफली की औसत उत्पादन लागत (A2+FL) 76,772 रुपये प्रति हेक्टेयर रही, जो देश की सभी तेल फसलों में सबसे ज्यादा है. ऐसे में छोटे किसान इस फसल से बचने लगे हैं.

गुजरात आगे, बाकी राज्य पीछे क्यों?

मूंगफली उत्पादन में गुजरात देश का अग्रणी राज्य है. यहां के किसान आधुनिक तकनीक, मशीनीकरण और Good Agronomic Practices (GAP) को अपनाते हैं. लेकिन बाकी राज्यों में खासकर उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में स्थिति एकदम अलग है. छोटे और बंटे हुए खेत, बीज और मशीन की कमी, भंडारण सुविधाओं का अभाव और मूल्यवर्धन न होने के कारण वहां मूंगफली की औसत उपज 9 से 13 क्विंटल/हेक्टेयर ही रह जाती है, जबकि गुजरात और पश्चिम बंगाल में यह 25 क्विंटल/हेक्टेयर तक पहुंचती है.

भंडारण और बीज वितरण में भी दिक्कत

बिजनेस लाइन की खबर के मुताबिक, IIGR के निदेशक डॉ. संदीप कुमार बेहरा बताते हैं कि किसानों के पास अपनी फसल को लंबे समय तक स्टोर करने की सुविधा नहीं होती. वे तुरंत मंडी में औने-पौने दाम पर फसल बेचने को मजबूर होते हैं. ऊपर से, बीजों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए विशेष भंडारण ढांचे की जरूरत होती है, जो बहुत कम जगहों पर मौजूद है.

इसके अलावा, बीज प्रमाणन और वितरण में देरी भी एक बड़ी समस्या है. निजी क्षेत्र भी मूंगफली बीज उत्पादन में कम दिलचस्पी दिखाता है क्योंकि इसका आकार बड़ा होता है, भंडारण खर्च ज्यादा आता है और नमी या कीटों से जल्दी खराब हो सकता है.

कीमतें नहीं मिलती, प्रोत्साहन नहीं मिलता

CACP के अनुसार, 2025-26 में उत्तर प्रदेश में मूंगफली की खेती पर अनुमानित लागत 9,962 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि राजस्थान में यही लागत 3,851 रुपये प्रति क्विंटल है. यानी राज्यों के बीच उत्पादन लागत में जबरदस्त अंतर है. ऐसे में अगर केंद्र सरकार राज्यों के बीच उपज में फर्क को पाटने की कोशिश करे, तो उत्पादन लागत भी कम हो सकती है और किसान दोबारा मूंगफली की ओर लौट सकते हैं.

क्या कर रही है सरकार?

सरकार ने National Mission on Edible Oil (Oilseeds) के तहत 18 ब्रिडर सीड हब विकसित करने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए 50 लाख रुपये इन्फ्रास्ट्रक्चर और 1 करोड़ रुपये रिवॉल्विंग फंड और स्टोरेज यूनिट्स के रूप में आवंटन किया गया है. इससे सार्वजनिक क्षेत्र में बीज उत्पादन को बढ़ावा देने की कोशिश की जा रही है.

IIGR के अनुसार, अगर 25 फीसदी बीज प्रतिस्थापन दर (Seed Replacement Rate – SRR) पर तीन साल में लक्ष्य हासिल करना हो, तो 1.59 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की जरूरत होगी. अगर SRR को 35 फीसदी किया जाए तो यह जरूरत 2.23 लाख हेक्टेयर तक पहुंच जाती है.

विशेषज्ञों के अनुसार, अगर सरकार बीज वितरण को समय पर निःशुल्क या सब्सिडी पर उपलब्ध कराए और फसल की MSP पर सुनिश्चित खरीद की गारंटी दे, तो किसान मूंगफली की ओर दोबारा आकर्षित हो सकते हैं. साथ ही मशीनों की सब्सिडी, स्थानीय प्रसंस्करण इकाइयों का विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रम किसानों को आत्मनिर्भर बना सकते हैं.