महाराष्ट्र में तेजी से बढ़ा केले का रकबा, वैश्विक बाजार में भारत की पकड़ और मजबूत

महाराष्ट्र लंबे समय से केले का “हॉटस्पॉट” माना जाता है, लेकिन अब स्थिति और मजबूत होती जा रही है. राज्य के कई जिलों में किसान तेजी से पारंपरिक फसलों से हटकर केले की ओर आ रहे हैं. ताजा अनुमानों के अनुसार 2025 में महाराष्ट्र में केले के तहत क्षेत्र पहले से कहीं अधिक बढ़ सकता है.

नई दिल्ली | Published: 26 Nov, 2025 | 03:07 PM

भारत में केला सिर्फ एक फल नहीं, बल्कि किसानों की आर्थिक रीढ़ बनकर उभर रहा है. हाल के सालों में इसकी मांग, उत्पादन और निर्यात—तीनों ने मिलकर केला उद्योग को नए मुकाम पर पहुंचा दिया है. खासकर महाराष्ट्र, जो पहले ही देश का सबसे बड़ा केला उत्पादक राज्य है, अब और भी बड़ा “केला पावरहाउस” बनने की राह पर है. बढ़ता रकबा, आधुनिक तकनीक और वैश्विक बाजारों में जगह बनाने की कोशिशें भारत की हिस्सेदारी को आने वाले समय में और बढ़ा सकती हैं.

महाराष्ट्र में बढ़ता रकबा, नए रिकॉर्ड की तैयारी

महाराष्ट्र लंबे समय से केले का “हॉटस्पॉट” माना जाता है, लेकिन अब स्थिति और मजबूत होती जा रही है. राज्य के कई जिलों में किसान तेजी से पारंपरिक फसलों से हटकर केले की ओर आ रहे हैं. ताजा अनुमानों के अनुसार 2025 में महाराष्ट्र में केले के तहत क्षेत्र पहले से कहीं अधिक बढ़ सकता है. इसका कारण है बेहतर दाम, स्थिर बाजार और निर्यात से जुड़ा भरोसा.

एक ओर पूरे देश में करीब 14 मिलियन टन से बड़ा केला उत्पादन होता है, वहीं महाराष्ट्र अकेले लगभग 25 फीसदी हिस्सेदारी रखता है. दिलचस्प बात यह है कि मूल्य के नजरिए से भी केला अब आम को पीछे छोड़ चुका है.

2023–24 में जहां आम का ग्रॉस वैल्यू करीब 46,100 करोड़ रुपये रहा, वहीं केले का मूल्य 47,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. यह बदलाव बताता है कि किसानों का रुझान तेजी से केले की ओर क्यों बढ़ रहा है.

सोलापुर—तेजी से उभरता ‘नया केला हब’

जलगांव लंबे समय से केले की राजधानी रहा है, लेकिन अब सोलापुर, नांदेड़ और जामनेर जैसे जिले भी मजबूत दावेदार बनते जा रहे हैं.
स्थानीय किसान संगठनों का कहना है कि सिर्फ सोलापुर में ही इस साल केला रकबा 90,000 एकड़ तक पहुंच सकता है, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है.

निर्यात ने इस बदलाव में बड़ी भूमिका निभाई है. कुछ साल पहले भारत से केला निर्यात सीमित मात्रा में होता था, लेकिन आज हर साल 55,000 से ज्यादा कंटेनर बाहर भेजे जा रहे हैं. कीमतों में उतार–चढ़ाव जरूर आता है, लेकिन किसानों का कहना है कि अन्य फसलों की तुलना में केले से मुनाफा ज्यादा स्थिर रहता है.

गिरती कीमतें और सरकारी दखल की उम्मीद

हाल के हफ्तों में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में कीमतों में गिरावट से किसान चिंतित हैं. किसानों का मानना है कि यदि बाजार पर नजर रखने और कीमतों को नियंत्रित करने वाला कोई समर्पित तंत्र हो, तो लाभ में सुधार हो सकता है. हालांकि, महाराष्ट्र सरकार इस दिशा में तेजी से काम कर रही है.

जल्द बनेगा ‘Banana Board’

राज्य सरकार एक बड़े कदम की तैयारी में है—Banana Board की स्थापना. इसके साथ ही कोल्ड स्टोरेज, लॉजिस्टिक्स, भंडारण और प्रोसेसिंग यूनिट्स को भी तेजी से बढ़ाया जा रहा है. ये सुविधाएं किसानों को न केवल बेहतर कीमत दिलाने में मदद करेंगी, बल्कि फसल खराब होने से होने वाले नुकसान को भी कम करेंगी.

भारत की नजर वैश्विक बाजार पर

भारत पहले ही मिडिल ईस्ट के देशों में मजबूत स्थिति बना चुका है. सऊदी अरब, UAE, कतर, ओमान और कुवैत में भारतीय केले की मांग लगातार बढ़ रही है.

इसके अलावा इरान और इराक भारत के लिए सबसे बड़े नए अवसर बनकर उभरे हैं. इन दोनों देशों में सालाना मांग 10 लाख टन से भी ज्यादा है. भारत की कीमतें वहां के औसत आयात मूल्य की तुलना में काफी कम हैं, जिससे भारत को जबरदस्त प्रतिस्पर्धात्मक फायदा मिलता है.

यूके में खुल रहा ‘प्रीमियम बाजार’

भारत और ब्रिटेन के बीच हुए व्यापार समझौते के बाद UK में भारतीय केले को जीरो ड्यूटी एक्सेस मिल गया है. ब्रिटेन के रिटेलर्स “ripen-at-home” यानी घर पर धीरे–धीरे पकने वाले केले की ओर ज्यादा झुकाव दिखा रहे हैं और भारत इस श्रेणी में बेहतरीन गुणवत्ता देने में सक्षम है.

Tesco जैसे बड़े सुपरमार्केट भारतीय प्रीमियम केले की सप्लाई बढ़ाने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. यह भारत के लिए उच्च मूल्य वाले बाजार में बड़ा मौका है.

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