केला की खेती करने वाले किसान फसल में पोटैशियम की कमी की वजह से फसल खराब होने की मुसीबत झेल रहे हैं. इसकी वजह से केला के पौधों की ग्रोथ रुक रही है और उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होने का खतरा बढ़ गया है. केला की खेती आमतौर पर जून-जुलाई में की जाती है, लेकिन नवंबर में भी कुछ हिस्सों में केला की फसल लगाई जाती है. ऐसे इलाकों के किसानों को पौटैशियम की पूर्ति के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने सलाह जारी की है.
बिहार के डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने केला की खेती करने वाले किसानों को पैटैशियम की कमी होने से फसल खराब होने की चेतावनी दी है. कृषि सलाह में कहा गया है कि पोटैशियम की कमी केले की उपज को काफी बुरी तरह से प्रभावित करती है. इसकी कमी से केले की उपज काफी घट जाती है जिससे किसानों को प्रत्येक वर्ष बड़े स्तर पर नुकसान होता है.
केला फसल में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश कितना डालें
बिहार समेत अन्य हिस्सों के केला उत्पादक किसान केले के बागों का वैज्ञानिक तकनीक से प्रबंधन कर पोटेशियम की कमी को दूर करते हुए केले से उच्च स्तरीय उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. कहा गया है कि केले की सफल खेती में पोटाश एक बहुत ही महत्वपूर्ण पोषक तत्व है. केला की सफल खेती के लिए किसान केले के प्रत्येक पौधे में 300 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस और 300 ग्राम पोटाश प्रति पौधा की दर से जरूर डालें.
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केला फसल में 12 महीने तक उर्वरक का इस्तेमाल
कृषि सलाह में कहा गया कि केला की फसल होने में 12 महीने तक का वक्त लगता है. ऐसे में किसान नाइट्रोजन और पोटाश जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों को सामान्य तरीके से लगाए गए केले की फसल में 2 से 3 महीने के अंतर पर 9वें महीने तक इस्तेमाल करते रहें. इसके अलावा किसानों को सलाह दी जाती है कि अपने इलाके की जलवायु के हिसाब से फसल में 12 महीने तक जरूरी उर्वरकों का इस्तेमाल आवश्यक है.
केले में शुगर कंटेंट बढ़ेगा और क्वालिटी बेहतर होगी
कृषि सलाह में गया है कि पोटेशियम की कमी से केले की ग्रोथ में उल्लेखनीय कमी आती है. इसकी कमी से पौधे पीले पर जाते है और पेटीओल्स यानी (डंठल) के आधार पर बैंगनी भूरे रंग के पैच दिखाई पड़ने लगते हैं. इसके लिए किसान पोटाश उर्वरक का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. पोटाश केले में शुगर कंटेंट बढ़ाता है, जिससे फल का स्वाद मीठा और बाजार क्वालिटी बढ़िया हो जाती है.