किस्मत के सहारे नहीं, बल्कि मेहनत के दम पर अपने हाथों की लकीर बदली जा सकती है. इसका जीता-जागता उदाहरण हैं बिहार के आशीर्वाद कुमार. आशीर्वाद ने बीटेक करने के बाद नौकरी के ऑफर को ठुकराकर अपनी किस्मत खुद लिखने का फैसला किया और आज न सिर्फ खुद सफल हैं, बल्कि लगभग 10 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. वे युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर उभरे हैं. उन्होंने कहा कि बत्तख और मुर्गी पालन से वह मीट के साथ ही अंडा उत्पादन से कमाई कर रहे हैं. जबकि, देसी तरीका अपनाने के चलते उनका पालन खर्च भी बेहद कम है.
बिहार के बेगूसराय जिले में छौड़ाही प्रखंड के एकंबा पंचायत में रहने वाले आशीर्वाद कुमार ने बीटेक (फूड टेक्नोलॉजी) की पढ़ाई पूरी की है. डिग्री मिलने के बाद उन्हें नौकरी के ऑफर भी मिले, लेकिन उन्होंने गांव में ही कारोबार शुरू करने का निर्णय लिया. उन्होंने 300 बत्तखों और देसी मुर्गों का फार्म खोला है. उनके अनुसार बत्तख पालन से अधिक लाभ मिलता है. इसी कारण उन्होंने एक तालाब का निर्माण भी कराया, जहां बत्तखें तैरती भी हैं और प्राकृतिक भोजन भी पाती हैं. यहां अंडे का उत्पादन भी किया जा रहा है.
देसी मुर्गे की बाजार में हमेशा अधिक मांग रहती है, वहीं ठंड के मौसम में बत्तख और देसी मुर्गी के अंडों की बिक्री भी खूब बढ़ जाती है. इसी वजह से आसपास के क्षेत्रों के लोग अंडे खरीदने उनके फार्म पर पहुंचते हैं.
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कम खर्च के चलते सफल हो रहा बत्तख पालन
आशीर्वाद कुमार ने बताया कि बत्तखें कम खर्च में पाली जा सकती हैं. ये घास-फूस और कीड़े-मकोड़े भी खा लेती हैं, जिससे चारे का खर्च कम होता है. एक बत्तख साल में लगभग 300 अंडे तक देती है, जो मुर्गी की तुलना में लगभग दोगुना होता है. इसके अंडे आकार में भी बड़े होते हैं. बत्तखें मुर्गियों की तुलना में अधिक मजबूत होती हैं और कम बीमार पड़ती हैं, जिससे दवाइयों का खर्च कम आता है.
मुर्गी से दोगुनी कीमत में बिकता है बत्तख का अंडा
बत्तख के मांस और अंडों की अच्छी मांग रहती है. बत्तख का एक अंडा 15 रुपये में बिकता है. जबकि, मुर्गी का अंडा अधिकतम 8 रुपये में जाता है. खासकर उन लोगों के बीच जिन्हें मुर्गी के अंडों से एलर्जी होती है. इनका पालन सरल है. पानी के स्रोत के पास ये और बेहतर तरीके से पनपती हैं तथा कीड़े-मकोड़े खाकर पर्यावरण को भी संतुलित करती हैं.

पोल्ट्री किसान आशीर्वाद कुमार (ऊपर). बेगूसराय कुक्कुट विभाग के पदाधिकारी (नीचे).
कोरोना काल में संकट गहराया तो पिता ने प्रेरित किया
आशीर्वाद कहते हैं कि यदि युवा ठान लें, तो अपनी किस्मत खुद लिख सकते हैं. उन्होंने बताया कि कोरोना काल में जब रोजगार संकट गहराया हुआ था, तब उनके पिता मुकेश सिंह ने उन्हें कारोबार शुरू करने के लिए प्रेरित किया. आज वे अपने व्यवसाय को धीरे-धीरे आगे बढ़ा रहे हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस संदेश का भी जिक्र किया, जिसमें युवाओं को रोजगार देने पर जोर दिया गया है. आशीर्वाद कहते हैं कि आज वही बात उनके लिए प्रेरणा सिद्ध हो रही है और उन्हें इससे सुखद अनुभव मिल रहा है.
कैसे शुरू करें कुक्कुट पालन
कुकुट विभाग के पदाधिकारी ने कहा कि सरकार युवाओं के लिए कई बेहतरीन योजनाएं चला रही है. कुक्कुट पालन को बिहार सरकार बढ़ावा दे रही है. इसके तहत युवा बत्तख और मुर्गी पालन कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि अगर कोई युवा रोजगार शुरू करना चाहता है तो कार्यालय से संपर्क कर फॉर्म भर सकता है और सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकता है.