अमेरिका में भारतीय चावल पर डंपिंग का आरोप बेबुनियाद, सरकार ने दी अब ये सफाई
डंपिंग तब मानी जाती है, जब कोई देश अपने उत्पाद को विदेशी बाजार में बहुत कम कीमत पर बेचता है, जिससे वहां के स्थानीय किसानों या उद्योगों को नुकसान पहुंचे. लेकिन वाणिज्य सचिव के अनुसार भारतीय बासमती चावल की अमेरिका में कीमतें काफी ऊंची हैं. ये कीमतें भारत के सामान्य निर्यात मूल्यों से भी ज्यादा होती हैं.
Basmati Rice Export: भारत और अमेरिका के बीच कृषि व्यापार को लेकर इन दिनों कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं. खासतौर पर चावल के निर्यात को लेकर यह सवाल उठ रहा था कि क्या भारत अमेरिका में सस्ते दामों पर चावल भेजकर डंपिंग कर रहा है. इस मुद्दे पर अब भारत सरकार की ओर से साफ और स्पष्ट बयान सामने आया है, जिससे न सिर्फ किसानों बल्कि निर्यातकों को भी राहत मिली है. वाणिज्य सचिव ने साफ कहा है कि अमेरिका में भारतीय चावल की डंपिंग का कोई ठोस आधार नहीं बनता.
महंगा बासमती है भारत की पहचान
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल ने बताया कि भारत अमेरिका को जो चावल निर्यात करता है, उसका बड़ा हिस्सा बासमती चावल होता है. बासमती चावल एक खास किस्म है, जो अपनी खुशबू, स्वाद और गुणवत्ता के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. यह कोई सस्ता या सामान्य चावल नहीं, बल्कि एक प्रीमियम उत्पाद है. यही वजह है कि इसके दाम भी दूसरे चावलों की तुलना में काफी ज्यादा होते हैं.
उन्होंने बताया कि भारत के कुल चावल निर्यात में 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा बासमती चावल का है. अमेरिका में भी भारत मुख्य रूप से यही महंगा बासमती चावल भेजता है. बहुत कम मात्रा में नॉन-बासमती या सफेद चावल का निर्यात किया जाता है. ऐसे में यह कहना कि भारत अमेरिका में सस्ते दामों पर चावल बेचकर डंपिंग कर रहा है, सही नहीं लगता.
डंपिंग का आरोप क्यों नहीं टिकता
डंपिंग तब मानी जाती है, जब कोई देश अपने उत्पाद को विदेशी बाजार में बहुत कम कीमत पर बेचता है, जिससे वहां के स्थानीय किसानों या उद्योगों को नुकसान पहुंचे. लेकिन वाणिज्य सचिव के अनुसार भारतीय बासमती चावल की अमेरिका में कीमतें काफी ऊंची हैं. ये कीमतें भारत के सामान्य निर्यात मूल्यों से भी ज्यादा होती हैं.
उन्होंने यह भी साफ किया कि अभी तक अमेरिका की ओर से भारत के खिलाफ किसी तरह की डंपिंग जांच शुरू नहीं की गई है. यानी अमेरिकी प्रशासन ने आधिकारिक तौर पर भी यह नहीं माना है कि भारत की ओर से कोई गलत व्यापारिक गतिविधि हो रही है.
ट्रंप के बयान से बढ़ी थी हलचल
इस पूरे मामले पर तब चर्चा तेज हुई, जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में व्हाइट हाउस में किसानों और कृषि क्षेत्र से जुड़े प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक के दौरान बयान दिया. उन्होंने कहा था कि कुछ देश अमेरिका में चावल डंप कर रहे हैं और जरूरत पड़ी तो उन पर अतिरिक्त टैरिफ लगाया जा सकता है. इस बयान में भारत, थाईलैंड और चीन जैसे देशों का नाम भी लिया गया था.
ट्रंप ने यह भी कहा था कि अगर अमेरिकी किसान प्रभावित हो रहे हैं तो टैरिफ लगाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है. उनके इस बयान के बाद भारतीय निर्यातकों में चिंता बढ़ गई थी, लेकिन भारत सरकार के ताजा बयान से अब स्थिति काफी हद तक साफ हो गई है.
पहले से ही भारी टैरिफ झेल रहा भारतीय चावल
गौर करने वाली बात यह भी है कि भारतीय चावल पहले से ही अमेरिका में भारी शुल्क का सामना कर रहा है. अगस्त 2025 में अमेरिका ने भारतीय चावल पर 50 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया था. इसके बावजूद भारत अमेरिका को बासमती चावल का निर्यात कर रहा है, क्योंकि वहां इसकी अच्छी मांग है.
भारत और अमेरिका के बीच इस समय एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते को लेकर बातचीत चल रही है. इस बातचीत में टैरिफ से जुड़े मुद्दों को सुलझाने की कोशिश की जा रही है, ताकि दोनों देशों के व्यापार को और आसान बनाया जा सके.
किसानों और निर्यातकों के लिए राहत
वाणिज्य सचिव का यह बयान भारतीय किसानों और चावल निर्यात से जुड़े कारोबारियों के लिए राहत भरा माना जा रहा है. बासमती चावल की खेती करने वाले किसान पहले ही लागत और बाजार की अनिश्चितताओं से जूझ रहे हैं. अगर डंपिंग जैसे आरोप लगते, तो निर्यात पर और दबाव बढ़ सकता था.
फिलहाल सरकार का रुख साफ है कि भारत एक गुणवत्ता वाला, महंगा और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरने वाला बासमती चावल निर्यात करता है. इसलिए अमेरिका में डंपिंग का आरोप न तो तार्किक है और न ही तथ्यों पर आधारित. आने वाले समय में व्यापार वार्ताओं के जरिए दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर और स्पष्टता आने की उम्मीद है.