चीन की रोक के बीच भारत ने बदला रुख, अब बेल्जियम–मिस्र से मंगाएगा विशेष उर्वरक

पिछले कुछ महीनों से चीन द्वारा विशेष उर्वरकों के निर्यात में कमी किए जाने की खबरों ने भारत में उर्वरक उद्योग को हिलाकर रख दिया. लेकिन स्थिति को बिगड़ने से पहले ही भारत ने वैकल्पिक रास्ते तलाश लिए हैं. सरकार के मुताबिक अब बेल्जियम, मिस्र, जर्मनी, मोरक्को और अमेरिका जैसे देशों से विशेष उर्वरकों की खरीद बढ़ाई जा रही है.

नई दिल्ली | Published: 6 Dec, 2025 | 07:06 AM

Fertiliser Import: भारत में खेती हमेशा से मौसम, बाजार और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों पर निर्भर रही है. ऐसे समय में जब किसान अपनी फसलें बेहतर बनाने के लिए उन्नत और विशेष उर्वरकों पर भरोसा करते हैं, वैश्विक सप्लाई चेन में थोड़ा सा बदलाव भी बड़ा असर डाल सकता है. पिछले कुछ महीनों से चीन द्वारा विशेष उर्वरकों के निर्यात में कमी किए जाने की खबरों ने भारत में उर्वरक उद्योग को हिलाकर रख दिया. लेकिन स्थिति को बिगड़ने से पहले ही भारत ने वैकल्पिक रास्ते तलाश लिए हैं. सरकार के मुताबिक अब बेल्जियम, मिस्र, जर्मनी, मोरक्को और अमेरिका जैसे देशों से विशेष उर्वरकों की खरीद बढ़ाई जा रही है.

चीन की कटौती से बनी कमी, लेकिन भारत ने तुरंत बदला रुख

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा में दिए अपने लिखित उत्तर में केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बताया कि बीते महीनों में चीन से विशेष उर्वरकों की आपूर्ति कम होने लगी थी. इससे बाजार में कमी की आशंका बढ़ रही थी. हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि विशेष उर्वरक पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (NBS) योजना के दायरे में नहीं आते, इसलिए इन पर सरकार की तरफ से कोई सब्सिडी लागू नहीं होती. यही वजह है कि कंपनियों को परिस्थितियों के आधार पर अपनी मर्जी से इन्हें आयात करने की पूरी स्वतंत्रता है.

चीन लंबे समय से भारत को वॉटर-सॉल्यूबल और अन्य विशेष उर्वरक उपलब्ध कराता रहा है. 2024–25 में चीन से 1.71 लाख टन विशेष उर्वरक भारत आए, जो कुल आयात का 65 प्रतिशत से अधिक था. लेकिन जैसे ही आपूर्ति कमजोर हुई, भारतीय कंपनियों ने अन्य देशों से विकल्प तलाशने शुरू कर दिए. इससे घरेलू बाजार में कमी का जोखिम काफी हद तक टल गया.

आत्मनिर्भर कृषि की दिशा में बड़ा कदम

भारत सिर्फ आयात विकल्पों पर ही निर्भर नहीं है. देश की कई संस्थाएं लंबे समय से स्वदेशी तकनीक विकसित करने की दिशा में काम कर रही हैं. केंद्रीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), विभिन्न राज्य कृषि विश्वविद्यालय और कई रिसर्च संस्थान मिट्टी और पौधों के पोषण को बेहतर बनाने वाले उर्वरकों के नए फॉर्म विकसित कर रहे हैं.

इनमें जिंक EDTA, बोरॉन आधारित मिश्रण, नैनो-उर्वरक, और जैव उर्वरक शामिल हैं जिनमें माइक्रोन्यूट्रिएंट बढ़ाने वाली बैक्टीरिया प्रजातियां भी मिलाई जाती हैं. इनका उद्देश्य न केवल आयात पर निर्भरता घटाना है, बल्कि खेती को अधिक टिकाऊ बनाना भी है. नैनो-यूरिया और नैनो-DAP जैसी तकनीकें पहले ही किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही हैं, क्योंकि ये कम मात्रा में अधिक प्रभाव दिखाती हैं.

देश के वैज्ञानिक संस्थानों की बड़ी भूमिका

ICAR के ही तहत आने वाले भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान (IISS), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) और भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (IIHR) ने विशेष उर्वरकों के कई उन्नत संस्करण तैयार किए हैं. ये संस्थान साइट-विशिष्ट उर्वरक प्रबंधन और मिट्टी जांच आधारित सिफारिशों जैसे कार्यक्रमों पर काम कर रहे हैं, जिनका उद्देश्य यह पता लगाना है कि कौन-सी फसल के लिए कौन-सा पोषक तत्व किस मात्रा में जरूरी है. इससे उर्वरकों का सही उपयोग होता है और उत्पादन भी बढ़ता है.

कानूनी ढांचा और बाजार की दिशा

उर्वरक नियंत्रण आदेश (FCO) 1985 में “विशेष उर्वरक” नाम की कोई श्रेणी नहीं है, लेकिन इसमें 100 प्रतिशत पानी में घुलने वाले उर्वरकों और मिश्रणों का उल्लेख है. इन्हें देश में तेजी से लोकप्रियता मिल रही है क्योंकि ये फसल को तुरंत पोषण उपलब्ध कराते हैं. चीन की सप्लाई में कमी ने भले बाधा पैदा की हो, लेकिन वैश्विक बाजार से नए विकल्प और स्वदेशी नवाचार खेती को नई दिशा देने का मौका बनकर सामने आए हैं.

कृषि के लिए नई राह

विशेष उर्वरकों की मांग आने वाले वर्षों में और बढ़ने वाली है. भारत का यह कदम एक तरफ वैश्विक सप्लायर्स पर भरोसा और दूसरी तरफ स्वदेशी विकल्पों पर शोध को दोहरी मजबूती प्रदान करेगा. यह बदलाव किसानों को स्थिर सप्लाई, बेहतर गुणवत्ता और भविष्य में लागत में कमी जैसे लाभ भी दे सकता है. कृषि क्षेत्र के लिए यह समय चुनौती का जरूर है, पर संभावनाओं से भरा हुआ भी है.

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