देश में इस समय चावल का इतना ज्यादा भंडार है कि सरकारी गोदाम भर चुके हैं. 59 मिलियन टन से भी ज्यादा चावल केंद्रीय स्टॉक में मौजूद है, जो कि 1 जुलाई के तय बफर स्टॉक (13.54 मिलियन टन) से करीब चार गुना ज्यादा है. यह स्थिति तब है जब केंद्र सरकार ने खुले बाजार में बिक्री, राज्यों को चावल आवंटन, एथनॉल उत्पादन और ‘भारत चावल’ पहल जैसे कार्यक्रमों में भरपूर चावल वितरित किया है.
क्यों हुआ इतना ज्यादा चावल का स्टॉक?
इसका सबसे बड़ा कारण है रिकॉर्ड स्तर पर फसल उत्पादन और बढ़ी हुई सरकारी खरीद. सरकार हर साल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत लगभग 36 मिलियन टन चावल बांटती है, लेकिन खरीदी इससे कहीं ज्यादा, करीब 50 मिलियन टन हो जाती है. यही वजह है कि चावल का स्टॉक हर साल बढ़ता जा रहा है.
भंडारण अब बन रहा है सिरदर्द
चावल के भंडारण की कमी की चिंता अब बढ़ने लगी है. हालांकि खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा का कहना है कि अभी स्थिति नियंत्रण में है और जून से PDS के लिए अनाज का आवंटन शुरू हो जाएगा. लेकिन अगर यही रफ्तार रही तो भंडारण की जगह कम पड़ सकती है.
कब शुरू होगी नई खरीद?
धान की नई खरीदी 1 अक्टूबर 2025 से शुरू होगी. एफसीआई और राज्य सरकार की एजेंसियां किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर धान खरीदेंगी, जिसे बाद में मिलों को चावल में बदलने के लिए भेजा जाएगा. असली आवक दिसंबर तक आने लगेगी.
मुफ्त राशन योजना और बढ़ता खर्च
सरकार की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 810 मिलियन लोगों को हर महीने 5 किलो मुफ्त अनाज दिया जा रहा है. यह योजना 2028 तक बढ़ा दी गई है, जिससे सरकारी खर्च पर भारी असर पड़ रहा है. बताया जा रहा है कि इससे 11.8 ट्रिलियन रुपये का बोझ पड़ेगा.
चिंता का दूसरा पहलू-लागत
एमएसपी, परिवहन और भंडारण मिलाकर चावल की आर्थिक लागत फिलहाल ₹41.73 प्रति किलो तक पहुंच गई है. अगर स्टॉक कम नहीं किया गया, तो यह लागत और बढ़ेगी और इससे खाद्य सब्सिडी पर भारी असर पड़ सकता है.
सरकार को अब यह तय करना होगा कि इस अधिशेष स्टॉक को कैसे नियंत्रित किया जाए. खुले बाजार में और अधिक बिक्री, या नई नीतियों के जरिए इस भंडारण पर लगाम लगाना जरूरी है ताकि न केवल जगह बचे, बल्कि सब्सिडी खर्च भी नियंत्रण में रहे.