बरसात का मौसम एक ओर जहां खेतों के लिए नई उम्मीदें लेकर आता है, वहीं पशुपालकों के लिए कई तरह की चुनौतियां भी पैदा करता है. लगातार नमी, गीला चारा, मक्खी-मच्छरों का बढ़ता प्रकोप और बीमारियों का खतराये सब मिलकर गाय-भैंसों की सेहत को प्रभावित करते हैं. अगर जरा सी भी लापरवाही हो जाए तो पशु बीमार पड़ सकते हैं और दूध उत्पादन घट सकता है. लेकिन अगर मौसम के हिसाब से सही देखभाल की जाए तो न सिर्फ पशु स्वस्थ रहते हैं, बल्कि दूध की मात्रा और क्वालिटी दोनों में इजाफा होता है. इस मौसम में खानपान से लेकर टीकाकरण और साफ-सफाई तक हर छोटी-बड़ी बात पर ध्यान देना जरूरी है.
बिना दूध देने वाले पशुओं की भी हो देखभाल
अगर आपकी गाय या भैंस दूध नहीं दे रही है तो भी उनकी देखभाल करना बहुत जरूरी है. अगर आप उन्हें नजरअंदाज करते हैं तो उनका शरीर कमजोर हो सकता है और अगली बार दूध देने में दिक्कत आ सकती है. इसलिए, उन्हें रोजाना अच्छा पोषण देना जरूरी है. इसके लिए, हर दिन करीब 1 से 1.5 किलो दाना, 3 किलो सूखा भूसा और 15 से 20 किलो हरा चारा देना चाहिए. इससे उनकी सेहत ठीक रहेगी और वे भविष्य में अच्छा दूध उत्पादन करेंगी.
दूध देने वाले पशुओं के लिए खास डाइट
दूध देने वाली गाय और भैंसों को ज्यादा ताकत और पोषण की जरूरत होती है, इसलिए उनकी खुराक का संतुलित होना बहुत जरूरी है. आसान भाषा में कहें तो जितना ज्यादा दूध, उतनी ज्यादा देखभाल. मीडियो की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गाय अगर एक लीटर दूध देती है तो उसे 400 ग्राम दाना देना चाहिए, जबकि भैंस के हर लीटर दूध पर 500 ग्राम दाना जरूरी होता है. साथ में रोज़ 4 से 5 किलो सूखा भूसा और 20 से 30 किलो हरा चारा भी देना चाहिए. इसके अलावा, आहार में 2 प्रतिशत मिनरल मिक्सचर और 1 प्रतिशत नमक जरूर मिलाएं. इससे न सिर्फ दूध बढ़ेगा, बल्कि उनकी हड्डियां भी मजबूत रहेंगी.
फंगल इन्फेक्शन से हो सकते हैं बीमार
बरसात में पशुओं की उचित देखरेख के साथ-साथ उन्हें संतुलित आहार भी देना चाहिए. इसलिए बारिश में पशुपालकों को खानपान को लेकर विशेष सावधानी बरतनी चाहिए. आप बारिश के मौसम में पशुओं को गीला या नमीयुक्त चारा भूलकर भी न खिलाएं. क्योंकि नमी के कारण चारे में फंगल इन्फेक्शन फैल जाता है. अगर पुश ऐसे चारे का खाते हैं, तो उन्हें बीमार पड़ने की संभावना बढ़ जाती है.
दूध दुहने से पहले और बाद में सफाई जरूरी
दूध निकालने से पहले और बाद में पशु के थनों को साफ करना बहुत जरूरी है. इससे थनैला जैसी खतरनाक बीमारी से बचाव होता है. क्योंकि, साफ-सफाई से न सिर्फ पशु की सेहत बेहतर रहती है, बल्कि दूध भी साफ और सुरक्षित होता है. गंदगी के कारण थनों में सूजन और संक्रमण हो सकता है, इसलिए हर बार दूध दुहने से पहले और बाद में साफ कपड़े से थन जरूर पोंछें.
बरसात में कीट नियंत्रण जरूरी
बरसात में मच्छर और मक्खियों का प्रकोप बढ़ जाता है, जो पशुओं को परेशान करते हैं और उन्हें बीमार कर सकते हैं. इससे दूध उत्पादन भी घट सकता है, क्योंकि पशु तनाव में आ जाते हैं. ऐसे में पशु शेड में नीम की पत्तियों का धुआं देना या कीटनाशक स्प्रे करना फायदेमंद होता है. ये उपाय पशुओं को राहत देते हैं और उनके स्वास्थ्य को सुरक्षित रखते हैं.
बरसात में संतुलित आहार जरूरी
बरसात के मौसम में पशुओं को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाए रखने के लिए संतुलित आहार बेहद जरूरी है. पशुओं के खानपान में प्रोटीन, फैट, मिनरल और विटामिन का सही संतुलन होना चाहिए, जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे. इसके अलावा, प्रोटीन के लिए सरसों खली, सोयाबीन खली और सूर्यमुखी खली अच्छे विकल्प हैं. वहीं, दाने के रूप में मक्का, गेहूं और बाजरा शामिल करें. इतना ही नहीं, भूसा और हरा चारा फाइबर का अच्छा स्रोत होते हैं, जो पाचन क्रिया को दुरुस्त रखते हैं. संतुलित आहार देने से दूध उत्पादन भी बेहतर होता है.
बरसात में बीमारियों से कैसे बचाएं पशु
बरसात के मौसम में पशुओं को संक्रमण और बीमारियों से बचाना बेहद जरूरी होता है. क्योंकि इस समय FMD (मुंह-खुर रोग), गलघोंटू जैसी संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. इससे बचाव के लिए समय पर टीकाकरण कराएं और टीके की तारीख व समय नोट करके रखें. इसके अलावा, पशु शेड में बारिश का पानी या नमी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे थनैला जैसी बीमारी हो सकती है. इतना ही नहीं, फर्श पर फिसलन से बचाने के लिए रबर मैट बिछाएं ताकि पशु सुरक्षित रहें. ध्यान दें कि शेड को हवादार और सूखा बनाए रखने के लिए तेज पंखे चलाएं. इतना ही नहीं, मच्छर-मक्खी से बचाने के लिए कीटनाशक का छिड़काव जरूर करें, ताकि पशु तनावमुक्त रहें और दूध उत्पादन पर असर न पड़े.