भारत की सोयामील निर्यात पर मुश्किलें बढ़ीं, नए नियमों और महंगी कीमतों से घट सकती है मांग

सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) का कहना है कि इस साल भारत केवल लगभग 8 लाख टन सोयामील निर्यात कर पाएगा, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 20.23 लाख टन था. इतनी बड़ी गिरावट यह दिखाती है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति और नियामकीय बदलाव भारतीय निर्यातकों को कितनी प्रभावित कर रहे हैं.

नई दिल्ली | Published: 15 Nov, 2025 | 08:18 AM

Soymeal Exports: भारत का सोयामील उद्योग इस समय दोहरी चुनौती का सामना कर रहा है, एक तरफ यूरोप के नए नियम, और दूसरी तरफ वैश्विक बाजार की तुलना में भारतीय सोयामील की ऊंची कीमतें. स्थिति ऐसी है कि 2025–26 के तेल वर्ष में भारत का सोयामील निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में आधे से भी कम होने का अनुमान लगाया जा रहा है.

सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) का कहना है कि इस साल भारत केवल लगभग 8 लाख टन सोयामील निर्यात कर पाएगा, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 20.23 लाख टन था. इतनी बड़ी गिरावट यह दिखाती है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति और नियामकीय बदलाव भारतीय निर्यातकों को कितनी प्रभावित कर रहे हैं.

यूरोपीय EUDR नियम बने सबसे बड़ी चुनौती

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय संघ ने जल्द ही लागू होने वाले European Union Deforestation Regulation (EUDR) को लेकर साफ संकेत दिए हैं कि अब कोई भी कृषि उत्पाद वनों की कटाई से जुड़े क्षेत्रों से नहीं खरीदेंगे. इस नियम के तहत सोयामील की ट्रेसबिलिटी यानी उसकी उत्पत्ति का पूरा रिकॉर्ड रखना आवश्यक होगा.

SOPA के कार्यकारी निदेशक डी.एन. पाठक के अनुसार यह पूरी प्रक्रिया अभी भारत में काफी धीमी है. कई प्रोसेसर और निर्यातक इस नियम का पालन करने के लिए जरूरी दस्तावेजीकरण और मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित नहीं कर पाए हैं.

मध्य प्रदेश सरकार उद्योग जगत को इस प्रक्रिया में सहयोग दे रही है, लेकिन SOPA का कहना है कि तैयारी अभी भी पर्याप्त नहीं है. पिछले साल यूरोप खासकर जर्मनी, फ्रांस और नीदरलैंडभारत के बड़े खरीदार थे, लेकिन इस साल EUDR नियमों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है.

महंगी भारतीय सोयामील भी घटा रही मांग

भारत की सोयामील वैश्विक बाजार में पहले से ही महंगी मानी जाती है क्योंकि यह non-GM यानी बिना जेनेटिक संशोधन वाले सोयाबीन से तैयार होती है. गैर-जीएम होने के कारण भारतीय सोयामील की कीमत आमतौर पर अन्य देशों से 80–100 डॉलर प्रति टन ज्यादा रहती है.

इस समय भारत का FOB मूल्य 425–430 डॉलर प्रति टन है, जबकि ब्राजील और अर्जेंटीना का सोयामील 320 डॉलर प्रति टन मिल रहा है. स्पष्ट है कि अंतरराष्ट्रीय खरीदार कम कीमत वाले विकल्प चुन रहे हैं और भारत का महंगा उत्पाद पीछे छूट रहा है.

USBangladesh समझौता भी बनेगा बाधा

हाल ही में अमेरिका और बांग्लादेश के बीच हुए 1 बिलियन डॉलर के कृषि व्यापार समझौते के कारण भी भारत को नुकसान होगा. बांग्लादेश भारत का बड़ा खरीदार रहा है, लेकिन अब वह अमेरिका से सीधे आयात करेगा, जिससे भारत की मांग और घट सकती है.

पिछले साल के आंकड़े भी दिखाते हैं गिरावट

2024–25 तेल वर्ष में भी भारत का सोयामील निर्यात 5 फीसदी घटकर 20.23 लाख टन रह गया था. ईरान और बांग्लादेश जैसे बड़े खरीदारों ने खरीद कम कर दी थी.

हालांकि यूरोप से मांग बढ़ी थी

जर्मनी: 4 गुना वृद्धि (4.10 लाख टन)

फ्रांस: 3 गुना वृद्धि

नीदरलैंड: दोगुनी वृद्धि

लेकिन इस साल EUDR लागू होने की तैयारी के चलते यूरोप से भी खरीद कम होने की आशंका है.

 क्या कर सकता है भारत?

भारत को अपने सोयामील निर्यात को बनाए रखने के लिए तीन बड़े कदम तत्काल उठाने होंगे. EUDR अनुपालन प्रणाली विकसित करना, ताकि यूरोप को निर्यात जारी रह सके. कीमतों को प्रतिस्पर्धी बनाना, इसके लिए उत्पादन लागत कम करने और सप्लाई चेन सुधार की जरूरत है. नए बाजारों की तलाश, ताकि एक ही क्षेत्र पर निर्भरता कम हो.

फिलहाल संकेत साफ हैं अगर सुधार तेजी से नहीं हुए, तो इस साल भारत का सोयामील निर्यात बड़ी गिरावट दर्ज करेगा और इसका असर किसानों व निर्यात उद्योग दोनों पर पड़ेगा.

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