सोयामील के निर्यात में 11 फीसदी की गिरावट, जानिए क्यों अंतरराष्ट्रीय खरीदार बना रहे हैं दूरी?

सोयाबीन मील, सोयाबीन तेल निकालने के बाद बचा प्रोडक्ट है, जो प्रोटीन से भरपूर होता है. इसका उपयोग मुख्य रूप से पशु चारे, मुर्गी पालन और मछली पालन में किया जाता है. इसके अलावा, सोया फ्लोर और सोया चंक्स जैसे खाद्य उत्पादों के निर्माण में भी इसका इस्तेमाल होता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 30 Oct, 2025 | 11:07 AM

Soybean Meal Exports: भारत के सोयाबीन मी निर्यात में इस वर्ष 11 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. इसका प्रमुख कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय सोयाबीन मील की बढ़ी हुई कीमतें बताई जा रही हैं. इंदौर स्थित सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) के मुताबिक, तेल विपणन वर्ष 2024-25 (अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025) के दौरान देश ने लगभग 20.23 लाख टन सोयाबीन मील का निर्यात किया, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 22.75 लाख टन था.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में घटती मांग

SOPA के अधिकारियों ने बताया कि भारतीय सोयाबीन मील की कीमतें अमेरिका, ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे प्रमुख निर्यातक देशों की तुलना में काफी अधिक हैं. इस वजह से विदेशी खरीदारों ने भारतीय उत्पादों की बजाय सस्ते विकल्पों की ओर रुख कर लिया है. भारत से सोयाबीन मील का प्रमुख निर्यात जर्मनी, फ्रांस, नेपाल, बांग्लादेश और केन्या जैसे देशों को किया जाता है. चालू वर्ष में कुल निर्यात का लगभग 55 प्रतिशत हिस्सा केवल इन पांच देशों को भेजा गया.

उत्पादन पर भी पड़ा असर

विशेषज्ञों का कहना है कि बढ़ती लागत और वैश्विक प्रतिस्पर्धा ने न केवल निर्यात पर असर डाला है, बल्कि घरेलू बाजार में भी दामों में उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है. उत्पादन केंद्रों से मिली जानकारी के अनुसार, प्रसंस्करण इकाइयों को कच्चे माल की ऊंची कीमतों और ऊर्जा लागत के कारण उत्पादन लागत में बढ़ोतरी झेलनी पड़ रही है. इसका सीधा असर निर्यात पर पड़ा है.

क्या है सोयाबीन मील?

सोयाबीन मील, सोयाबीन तेल निकालने के बाद बचा प्रोडक्ट है, जो प्रोटीन से भरपूर होता है. इसका उपयोग मुख्य रूप से पशु चारे, मुर्गी पालन और मछली पालन में किया जाता है. इसके अलावा, सोया फ्लोर और सोया चंक्स जैसे खाद्य उत्पादों के निर्माण में भी इसका इस्तेमाल होता है. भारत लंबे समय से दक्षिण एशियाई और यूरोपीय देशों को सोयाबीन मील का प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है.

विशेषज्ञों की राय

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, SOPA के कार्यकारी निदेशक डी. एन. पाठक ने कहा, “भारतीय सोयाबीन मील की कीमतें प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में अधिक हैं. अमेरिका, ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे देशों के उत्पाद कम दाम में मिल रहे हैं, जिससे हमारी मांग कम हो रही है.” उन्होंने यह भी जोड़ा कि यदि सरकार निर्यातकों को कुछ राहत दे या परिवहन लागत में सब्सिडी प्रदान करे, तो भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी हिस्सेदारी फिर से बढ़ा सकता है.

क्या है संभावनाएं?

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी उत्पादन प्रणाली को अधिक कुशल बनाना होगा. आधुनिक तकनीक के उपयोग, लागत में कटौती और गुणवत्ता सुधार से भारतीय सोयाबीन मील की प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ाई जा सकती है. साथ ही, एशियाई और अफ्रीकी देशों में नए बाजार तलाशने की भी जरूरत है. अगर उत्पादन लागत नियंत्रित की गई और निर्यात नीतियों में स्थिरता लाई गई, तो आने वाले वर्षों में भारत फिर से सोयाबीन मील निर्यात में मजबूती हासिल कर सकता है.

यह गिरावट भारत के कृषि निर्यात क्षेत्र के लिए एक चेतावनी के समान है. विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि समय रहते कीमतों और नीतियों पर संतुलन नहीं बनाया गया, तो भारत वैश्विक बाजार में अपनी मजबूत स्थिति खो सकता है.

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Published: 30 Oct, 2025 | 10:59 AM

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