Pulses Import 2025: भारत ने वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में दालों के आयात पर खर्च आधा कर दिया है. वाणिज्य मंत्रालय की ताजा जानकारी के अनुसार, इस दौरान आयात मूल्य 1.03 बिलियन डॉलर रहा, जो पिछले साल इसी अवधि में 2.18 बिलियन डॉलर था. रुपये में देखें तो यह 8,908 करोड़ रुपये हुआ, जबकि पिछले साल 18,282 करोड़ रुपये था. यह कमी मुख्य रूप से वैश्विक कीमतों में गिरावट और आयात की कम मात्रा के कारण हुई है.
आयात में कमी और दालों की घरेलू उपलब्धता
वर्तमान वित्त वर्ष में दालों का आयात धीमी गति से बढ़ रहा है. IGrain India के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-जुलाई 2025 में कुल आयात 9.97 लाख टन रहा, जबकि पिछले साल इसी अवधि में 18.02 लाख टन था. सभी प्रमुख दालों के आयात में गिरावट देखी गई है, सिवाय तूर (अरहर) के आयात में मामूली बढ़ोतरी के.
पीली मटर का आयात अप्रैल-जुलाई 2025 में 2.73 लाख टन रहा, जबकि पिछले साल 9.32 लाख टन था. देशी चना का आयात 0.27 लाख टन (पिछले साल 0.58 लाख टन), उड़द 2.30 लाख टन (2.56 लाख टन), और मसूर 1.76 लाख टन (2.81 लाख टन) रहा. तूर का आयात 2.91 लाख टन (पिछले साल 2.75 लाख टन) रहा, जो मामूली बढ़ोतरी दर्शाता है.
सरकार की नीतियां और आयात शुल्क
तूर, उड़द और पीली मटर के आयात पर मार्च 2026 तक कोई आयात शुल्क नहीं है, जबकि चना और मसूर पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क लागू है. घरेलू बाजार में सस्ती और रिकॉर्ड मात्रा में दालों की उपलब्धता के कारण व्यापारियों ने पीली मटर के आयात पर रोक लगाने की मांग की है.
कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) ने रबी 2026-27 के लिए अपनी रिपोर्ट में पीली मटर के आयात पर पूर्ण रोक लगाने और चना-मसूर के सस्ते आयात को उच्च शुल्क के जरिए नियंत्रित करने की सिफारिश की है. साथ ही उच्च उपज देने वाली, जलवायु-सहनशील किस्में विकसित करने और किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया है.
आत्मनिर्भर भारत मिशन – दाल उत्पादन बढ़ाने की योजना
सरकार ने हाल ही में दालों में आत्मनिर्भरता मिशन शुरू किया है, जिसके लिए 11,440 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है. इसके तहत घरेलू उत्पादन को 350 लाख टन तक बढ़ाना और खेती के क्षेत्र को 310 लाख हेक्टेयर तक फैलाना लक्ष्य है. सरकार 4 साल तक तूर, उड़द और मसूर जैसी दालों का MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर 100 प्रतिशत खरीद सुनिश्चित करेगी.
खरिफ 2025 में दालों की खेती
खरिफ 2025 में दालों की खेती का क्षेत्र 120.41 लाख हेक्टेयर रहा, जो पिछले साल 119.04 लाख हेक्टेयर से थोड़ा अधिक है. हालांकि, भारी और असमय बारिश के कारण प्रमुख उत्पादक राज्यों जैसे कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में उत्पादन पर असर पड़ा. पूरे देश में मानसून सामान्य से अधिक रहा और औसत लंबी अवधि की तुलना में 108 प्रतिशत बारिश हुई.