विदेशी दालों का आयात 5 महीनों में 52 फीसदी तक घटा, जानिए क्या है भारी गिरावट वजह

अरहर को छोड़कर अन्य दालों के आयात में गिरावट दर्ज की गई है. अरहर का आयात 6 प्रतिशत बढ़कर 2.92 लाख टन हो गया, जबकि पिछले साल यह 2.75 लाख टन था. वहीं, उड़द का आयात 10 प्रतिशत घटकर 2.30 लाख टन रह गया.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 20 Sep, 2025 | 09:19 AM

Pulses Import India: पिछले साल भारत ने विदेशी दालों की रिकॉर्ड खरीदारी की थी, लेकिन इस साल आयात में अचानक सुस्ती देखने को मिल रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि कमजोर मांग और कीमतों में गिरावट के कारण अप्रैल से अगस्त 2025 के बीच दालों के आयात में लगभग 52 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है. यह बदलाव सिर्फ व्यापारियों के लिए ही नहीं, बल्कि किसानों और उपभोक्ताओं के लिए भी महत्वपूर्ण संकेत देता है. इससे यह पता चलता है कि दालों की आपूर्ति और मांग दोनों ही इस समय अस्थिर हैं.

आयात में भारी गिरावट

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस पांच महीने की अवधि में कुल दालों का आयात मूल्य केवल 841.11 मिलियन डॉलर रहा, जबकि पिछले साल इसी समय यह आंकड़ा 1.762 बिलियन डॉलर था. अकेले अगस्त महीने में आयात मूल्य 114.87 मिलियन डॉलर तक गिर गया, जबकि पिछले साल अगस्त में यह 320 मिलियन डॉलर था. इस गिरावट से साफ होता है कि विदेशी दालों की खपत और व्यापार दोनों ही धीमे हो गए हैं.

कौन सी दाल का आयात बढ़ा और कौन सा घटा

अरहर को छोड़कर अन्य दालों के आयात में गिरावट दर्ज की गई है. अरहर का आयात 6 प्रतिशत बढ़कर 2.92 लाख टन हो गया, जबकि पिछले साल यह 2.75 लाख टन था. वहीं, उड़द का आयात 10 प्रतिशत घटकर 2.30 लाख टन रह गया. पीले मटर के आयात में सबसे बड़ी गिरावट आई और यह 71 प्रतिशत घटकर 2.73 लाख टन पर आ गया. चना का आयात 52 प्रतिशत घटकर 27,802 टन रह गया, जबकि मसूर का आयात 37 प्रतिशत घटकर 1.76 लाख टन तक सीमित रह गया. इस आंकड़ों से यह साफ हो जाता है कि मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन में बदलाव आया है.

आयात में सुस्ती के कारण

बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, इग्रेन इंडिया के विशेषज्ञ राहुल चौहान का कहना है कि पिछले वित्तीय वर्ष में देश ने रिकॉर्ड मात्रा में दालों का आयात किया था. घरेलू उत्पादन के साथ मिलाकर उपलब्धता काफी बढ़ गई थी, जबकि मांग अपेक्षाकृत कम रही. इस वजह से विदेशी दालों का आयात धीमा पड़ गया. उन्होंने यह भी बताया कि उत्पादक देशों में दालों की कीमतें कम होने से आयात की लागत भी घट गई, जिससे व्यापारियों को आयात में तेजी दिखाने की जरूरत नहीं रही.

घरेलू उत्पादन और मौसम का असर

घरेलू स्तर पर इस साल खरीफ दालों का रकबा मामूली रूप से बढ़कर 118 लाख हेक्टेयर हो गया, जो पिछले साल 117.25 लाख हेक्टेयर था. हालांकि, अगस्त और सितंबर में हुई अत्यधिक बारिश से मूंग और उड़द जैसी फसलों को नुकसान होने की आशंका बनी हुई है. अगर फसल को नुकसान हुआ, तो भविष्य में दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं और आयात पर भी असर पड़ेगा.

चुनौतियां और समाधान

विशेषज्ञों का मानना है कि अब घरेलू उत्पादन और आयात के संतुलन पर नजर रखना बेहद जरूरी है. किसानों, व्यापारियों और निर्यातकों को समय रहते रणनीति अपनानी होगी. इसके साथ ही खरीफ सीजन की फसल की स्थिति और मांग पर लगातार नजर रखना आवश्यक है, ताकि दालों की कीमतें स्थिर रहें और आपूर्ति में कोई बाधा न आए.

इस स्थिति में सरकार और कृषि विशेषज्ञों के सुझावों को ध्यान में रखते हुए समय पर कदम उठाना महत्वपूर्ण होगा. यदि सही कदम नहीं उठाए गए, तो उपभोक्ताओं के लिए दालों की कीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है और किसानों को भी उनकी मेहनत का उचित मूल्य नहीं मिल पाएगा. इस तरह, संतुलित आयात और मजबूत घरेलू उत्पादन ही इस क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है.

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