विदेशी अरहर-चना की बंपर पैदावार से भारतीय दाल के भाव गिरे, किसानों को भारी नुकसान का डर

सस्ती विदेशी दालों की उपलब्धता से घरेलू बाजार दबाव में है. मंडियों में कई जगह किसानों को अपनी उपज समर्थन मूल्य से कम दामों पर बेचनी पड़ रही है. इससे उनकी मेहनत और लागत का उचित मुआवजा नहीं मिल पा रहा.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 6 Sep, 2025 | 09:25 AM

देश में दालों की कीमतों में हाल के दिनों में तेज गिरावट देखने को मिल रही है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में सस्ती दालों की आवक ने घरेलू किसानों और कारोबारियों दोनों को बेचैन कर दिया है. अरहर जैसी दाल, जिसकी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 80 रुपये प्रति किलो तय है, वहीं विदेश से आयात होकर मात्र 47-48 रुपये किलो में आ रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति किसानों के लिए बड़े संकट का संकेत है और सरकार को तुरंत कदम उठाने की जरूरत है.

विदेशी दालों की भरमार, कीमतें गिरीं

अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इस साल अरहर, चना और मसूर की भरपूर पैदावार हुई है. नतीजतन इन देशों से भारत आने वाली दालों की कीमतें लगातार घट रही हैं. मोजाम्बिक और तंजानिया से आयातित अरहर 47-48 रुपये किलो में मिल रही है, जो आगे 40 रुपये तक भी जा सकती है. वहीं, पीला मटर तो केवल 30 रुपये किलो पर आ पहुंचा है. इसके मुकाबले भारत में MSP कहीं अधिक है, जिससे किसान प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाते हैं.

किसानों के हित में जरूरी हस्तक्षेप

बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन के चेयरमैन बिमल कोठारी ने कहा कि खाद्य महंगाई अब उतनी बड़ी चिंता नहीं है, लेकिन किसानों की आय पर खतरा मंडरा रहा है. उनका कहना है कि सरकार को विदेशी दालों के आयात पर 50 फीसदी तक शुल्क लगाना चाहिए, ताकि घरेलू बाजार को सहारा मिल सके. कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी हाल ही में इसी तरह की चिंता जताई थी और पीले मटर पर टैरिफ बढ़ाने की सलाह दी थी.

घरेलू बाजार पर असर

सस्ती विदेशी दालों की उपलब्धता से घरेलू बाजार दबाव में है. मंडियों में कई जगह किसानों को अपनी उपज समर्थन मूल्य से कम दामों पर बेचनी पड़ रही है. इससे उनकी मेहनत और लागत का उचित मुआवजा नहीं मिल पा रहा. वहीं, व्यापारियों का कहना है कि अगर हालात ऐसे ही बने रहे तो दाल उत्पादन करने वाले किसान अगली बार फसल बोने से भी पीछे हट सकते हैं.

मौसम ने बढ़ाई मुश्किलें

खरीफ सीजन में दालों की बुवाई का क्षेत्रफल इस साल थोड़ा बढ़कर 114.46 लाख हेक्टेयर तक पहुंचा है. लेकिन अगस्त में हुई भारी बारिश ने फसल को नुकसान पहुंचाया है. कई जगह अरहर और उड़द की फसल जलभराव के कारण प्रभावित हुई है. विशेषज्ञों का कहना है कि सितंबर के आखिर तक असली स्थिति स्पष्ट हो पाएगी.

उद्योग की बड़ी मांग

दलहन उद्योग की सबसे बड़ी मांग यही है कि सरकार आयात पर सीमा शुल्क बढ़ाए. इससे सस्ते आयात की बाढ़ पर रोक लगेगी और किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा. इसके अलावा, MSP को केवल कागज पर न रखकर उसकी गारंटी सुनिश्चित करने की जरूरत है, ताकि किसानों का भरोसा बना रहे

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