Opinion: अपने और दूसरे के ‘बेईमानों’ के बीच फंसी भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून पर बहस

अगर 50 घंटे कोई सरकारी कर्मचारी हिरासत में रहता है, तो वो सस्पेंड हो जाता है. लेकिन मुख्यमंत्री, मंत्री जेल में रहकर भी सत्ता का सुख पाते हैं. ऐसा हुआ है.

शैलेश चतुर्वेदी
नोएडा | Updated On: 25 Aug, 2025 | 02:10 PM

2014 चुनाव से पहले जब नरेंद्र मोदी की लहर चल रही थी. उनका हर भाषण सोशल मीडिया की भाषा में वायरल हो रहा था. उस समय एक मुद्दा था, जो हर किसी को आकर्षित कर रहा था. मोदी को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में एक चेहरे की तरह, एक उम्मीद की तरह देखा जा रहा था. 11 साल हो गए हैं. एक बिल आया है, जिस पर कायदे से पूरे देश को स्वागत करना चाहिए. भ्रष्टाचार के खिलाफ बिल. जहां अगर कोई मंत्री, मुख्यमंत्री, यहां तक कि प्रधानमंत्री भी अगर गंभीर आरोप में 30 दिन से ज्यादा जेल में है, तो उसे अपने पद से हटना पड़ेगा.

सवाल यही है कि इस बिल में गलत क्या है? ज्यादातर देशवासी यही तो चाहते थे. लेकिन इस बिल को लेकर उस तरह की आम राय नहीं सामने आई, जैसी आनी चाहिए थी. पूरा विपक्ष इसके खिलाफ है. और ऐसा लग रहा है कि बिहार चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष के विरोध को मुद्दा बनाना चाह रहे हैं. बिहार में उन्होंने शुक्रवार को अपने भाषण में इस पर बात भी की.

उन्होंने कहा, ‘एनडीए सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ऐसा कानून लाई है, जिसके दायरे में देश का प्रधानमंत्री भी आता है. इस कानून में मुख्यमंत्री और मंत्री भी शामिल किए गए हैं. इस कानून के बनने के बाद, अगर कोई मुख्यमंत्री, मंत्री या प्रधानमंत्री गिरफ्तार होता है, तो उसे 30 दिन के भीतर जमानत लेनी होगी, और अगर जमानत नहीं मिली तो 31वें दिन उसे कुर्सी छोड़नी पड़ेगी.’

उन्होंने अपने भाषण में यह भी कहा कि अगर 50 घंटे कोई सरकारी कर्मचारी हिरासत में रहता है, तो वो सस्पेंड हो जाता है. लेकिन मुख्यमंत्री, मंत्री जेल में रहकर भी सत्ता का सुख पाते हैं. ऐसा हुआ है. अरविंद केजरीवाल ने जेल में रहते हुए सरकार चलाई है. हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री रहते जेल गए थे. हालांकि उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था.
मोदी और बीजेपी यकीनन इसे मुद्दा बनाएगी कि कैसे विपक्ष भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा है. और विपक्ष को इसकी काट ढूंढनी पड़ेगी. पिछले 11 साल में ज्यादातर बार मोदी ने जिन बातों को मुद्दा बनाया है, उसकी काट आसान नहीं रही है. यहां भी देखना पड़ेगा कि कैसे विपक्ष अपनी बात को जनता तक पहुंचा पाता है.

यह सही है कि 11 साल बाद भी मोदी की छवि आम जनता में ईमानदार नेता की है. लेकिन इसके साथ छवि यह भी बनी है कि यह सरकार ‘अपने बेईमानों’ के खिलाफ एक्शन नहीं लेती. वहां नरम होती है. दूसरे पक्ष के ‘बेईमानों’ पर ही एक्शन लिया जाता है.

यही विपक्ष का विरोध है. इस विरोध में कुछ सच्चाई भी है. अजित पवार से लेकर हिमंत बिस्व सरमा तक तमाम लोग ऐसे हैं, जिन पर बीजेपी ने जोरदार हमला बोला था. भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे. लेकिन आज ये सरकार का हिस्सा हैं. दूसरी तरफ, विपक्ष के ‘बेईमानों’ पर ईडी, सीबीआई से लेकर जेल तक सब कुछ हुआ है.

विपक्ष की आशंका को एक उदाहरण से समझते हैं. झारखंड में हेमंत सोरेन को जेल हुई. उन्होंने चंपई सोरेन को पदभार सौंपा और इस्तीफा दे दिया. चंपई सोरेन बीजेपी खेमे में चले गए. विपक्ष लगातार यही आरोप लगाता है कि विपक्षी सरकार के मुखिया को जेल भेजकर बीजेपी सरकार गिराने और खुद सत्ता हथियाने का खेल खेलती है. इस आरोप को ऐसे भी समझा जा सकता है कि पिछले कुछ सालों में जिन मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को जेल जाना पड़ा है, उसमें सभी विपक्षी पार्टियों के हैं.

भ्रष्टाचार के खिलाफ बिल ही नहीं, उसके खिलाफ ईमानदार लड़ाई की इस देश को सख्त जरूरत है. इस लड़ाई में मोदी से बड़ा चेहरा कोई नहीं हो सकता. आज भी उनके खिलाफ आरोपों पर आम लोगों की राय यही होती है कि राजनीति में कभी समझौता करना पड़ता है, लेकिन मोदी जी अपने लिए तो कुछ कर नहीं रहे. आम लोगों की ऐसी सोच पिछले तमाम सालों में बेहद कम नेताओं के साथ रही है.

इसलिए यह समय है, जब मोदी सरकार इस मुद्दे को भले ही चुनाव में अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करे. लेकिन अपने और पराए बेईमानों वाली सोच हटाने की जरूरत है. वो धारणा हट गई, तो यह बिल भारतीय राजनीति में बेहद अहम साबित होगा. ऐसा नहीं हुआ, तो यह विपक्ष को काबू में रखने का हथियार साबित होगा. लेकिन उन सबसे पहले जरूरी है कि लोगों की धारणा क्या है, जहां अभी उस तरह का उत्साह नहीं दिख रहा, जैसा दिखना चाहिए.

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Published: 22 Aug, 2025 | 05:38 PM

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