गांवों में हीटवेव बन रहा ‘साइलेंट किलर’, WHO रिपोर्ट में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

WHO का अनुमान है कि 2030 से 2050 के बीच हर साल गर्मी की वजह से 38,000 से 1 लाख तक लोग जान गंवा सकते हैं, जिनमें से बड़ी संख्या गांवों से होगी.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 17 Jun, 2025 | 11:05 AM

शहरों में जैसे ही गर्मी बढ़ती है, हर तरफ अलर्ट, डॉक्टरों की सलाहें और एसी-कूलर की ठंडी हवा मिल जाती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गांवों में क्या हाल होता है? वहां न कोई अलर्ट, न ठंडी हवा, न डॉक्टर की सलाह बस तपती दोपहर और गर्म टिन की छत के नीचे बैठा एक बुजुर्ग, जो चुपचाप गर्मी से जूझता है और कई बार अपनी जान भी गंवा देता है.

जलवायु परिवर्तन का असर अब सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं है. गांवों में भी हीट वेव यानी गर्मी की लहरें अब जानलेवा बनती जा रही हैं. WHO का अनुमान है कि 2030 से 2050 के बीच हर साल गर्मी की वजह से 38,000 से 1 लाख तक लोग जान गंवा सकते हैं, जिनमें से बड़ी संख्या गांवों से होगी.

झोपड़ियों में कैद होती जिंदगी

शहरों में सीमेंट के घर, पंखे और कूलर मिल जाते हैं, लेकिन गांवों में लोग आज भी टिन की छत या बिना वेंटिलेशन वाली झोपड़ियों में रहते हैं. इन घरों में न हवा आती है, न गर्मी से राहत मिलती है. ऐसे घर गर्मियों में ‘हॉट बॉक्स’ बन जाते हैं, जिसमें रहना बेहद मुश्किल हो जाता है.

तापमान के नए रिकॉर्ड

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के गांवों में हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि टिन की छत वाले घरों का तापमान जून में 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया. सीमेंट की छत वाले घरों में भी औसतन तापमान 38.5 डिग्री सेल्सियस था. केवल 2 फीसदी घरों में फूस की छत थी, जो कुछ हद तक राहत देती है, बाकी घरों में तो जैसे धूप को खुद बुलाया जाता है.

बीमारियां बढ़ीं, इलाज नहीं

गांवों में 82 फीसदी लोगों को गर्मी से जुड़ी बीमारियों के लक्षण महसूस हुए जैसे थकावट, अत्यधिक पसीना, तेज प्यास, चक्कर, घबराहट और बेहोशी. लेकिन वहां न डॉक्टर हैं, न प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं, न ही कोई जागरूकता. नतीजा लोग चुपचाप बीमार होते हैं और चुपचाप दम तोड़ देते हैं.

मजदूरों की हालत और भी खराब

गांवों में खेतों और मजदूरी करने वाले लोगों की हालत सबसे ज्यादा खराब है. उन्हें चाहे जितनी भी गर्मी हो, काम करना ही पड़ता है. नींद भी पूरी नहीं हो पाती, बिजली आती-जाती रहती है, और पंखे की हवा भी गर्म लगती है.

सरकार और समाज की भूमिका अब जरूरी

अब वक्त आ गया है कि सरकारें और समाज इस चुपचाप बढ़ते खतरे को गंभीरता से लें. गांवों में भी गर्मी से बचने के उपायों को प्राथमिकता दी जाए. जैसे-छतों पर पुआल या मिट्टी का प्लास्टर, स्थानीय स्तर पर कूल छत बनाने की योजनाएं और सबसे जरूरी लोगों को जागरूक करना कि गर्मी से कैसे बचा जाए.

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