भारत ने चावल निर्यात पर सख्त किए नियम, वैश्विक बाजार में बढ़ी हलचल

देश में खाद्य सुरक्षा को लेकर कई चुनौतियां सामने आई हैं. मौसम का बदलता मिजाज, अनियमित बारिश, गर्मी की लहरें और लगातार बढ़ती खपत ने चावल के उत्पादन को प्रभावित किया है. वहीं भारत में नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट (NFSA) के तहत करीब 80 करोड़ लोगों को सब्सिडी वाले अनाज दिए जाते हैं.

नई दिल्ली | Published: 1 Dec, 2025 | 08:34 AM

 Rice exports: भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है. हर साल लाखों टन चावल दुनिया भर में भारत से भेजा जाता है. लेकिन अब देश के भीतर खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने के लिए सरकार ने चावल निर्यात से जुड़े नियमों को और सख्त कर दिया है. इसके साथ ही भारत का चावल व्यापार एक नए बदलावों भरे दौर में प्रवेश कर रहा है.

पिछले वित्त वर्ष 2024–25 में भारत ने 20.1 मिलियन टन चावल निर्यात किया था, जिसकी कीमत करीब 12.95 बिलियन डॉलर रही. यह आंकड़ा बताने के लिए काफी है कि वैश्विक चावल बाजार पर भारत का कितना बड़ा प्रभाव रहता है. लेकिन जब सरकार घरेलू आपूर्ति को सुरक्षित करने के लिए नियम बदलती है, तो इसका असर दुनिया के हर कोने तक पहुंचता है.

सरकार खाद्य सुरक्षा के नियम क्यों सख्त कर रही है?

देश में खाद्य सुरक्षा को लेकर कई चुनौतियां सामने आई हैं. मौसम का बदलता मिजाज, अनियमित बारिश, गर्मी की लहरें और लगातार बढ़ती खपत ने चावल के उत्पादन को प्रभावित किया है.

भारत में नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट (NFSA) के तहत करीब 80 करोड़ लोगों को सब्सिडी वाले अनाज दिए जाते हैं. ऐसे में सरकार के लिए चावल के पर्याप्त स्टॉक बनाए रखना बेहद जरूरी है.

इसी वजह से सरकार ने नॉन-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध, निर्यात के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) तय करना, कस्टम चेक्स को और सख्त करने जैसे कई कदम उठाए हैं. इन नियमों का उद्देश्य है—चावल की घरेलू उपलब्धता बनाए रखना और कीमतों को नियंत्रण में रखना.

बार-बार बदलती नीतियों से निर्यातकों की मुश्किलें बढ़ीं

नए खाद्य सुरक्षा नियमों से निर्यातकों की अनिश्चितता बढ़ गई है. अक्सर निर्यात नीति मुक्त, प्रतिबंधित या प्रतिबंधित पूरी तरह बंद श्रेणियों के बीच बदलती रहती है. इससे उनके लिए शिपमेंट टाइमिंग और कॉन्ट्रैक्ट प्लानिंग करना मुश्किल हो जाता है.

इसके अलावा:

वैश्विक बाजार में भी बदलाव

भारत के नियमों का असर केवल देश तक सीमित नहीं रहता—यह सीधे दुनिया के चावल व्यापार को प्रभावित करता है. पश्चिम अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे क्षेत्र भारत के चावल पर काफी निर्भर हैं. जब भारत ने नॉन-बासमती और टूटे चावल के निर्यात पर रोक लगाई, तो कई देशों ने तुरंत नए आपूर्तिकर्ताओं की ओर रुख किया—

हालांकि इन देशों से चावल महंगा पड़ता है, फिर भी वैश्विक खरीदार लगातार आपूर्ति बनाए रखने के लिए विकल्प तलाश रहे हैं.

घरेलू जरूरतों और वैश्विक व्यापार का संतुलन

भारत की रणनीति हमेशा दो लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाने की रही है-देश के गरीब और जरूरतमंद वर्ग के लिए पर्याप्त चावल उपलब्ध रहे और साथ ही भारत की पकड़ वैश्विक चावल बाजार पर भी बनी रहे. सरकार उत्पादन, महंगाई, स्टॉक और अंतरराष्ट्रीय बाजार के आधार पर नीतियों में बदलाव करती रहती है. इससे निर्यातकों को लगातार सतर्क रहना पड़ता है, क्योंकि किसी भी समय व्यापार नियम बदल सकते हैं.

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