गन्ने की खेती को लेकर देश के किसानों का रुझान बीते कुछ समय में और बढ़ा है, इसके चलते रकबे में भी इजाफा दर्ज किया गया है. इसके साथ ही चीनी उद्योग का काम बढ़ा है और चुनौतियां भी बढ़ गई हैं. चीनी उद्योग के शीर्ष निकाय इस्मा के महानिदेशक दीपक बल्लानी ने शुगर इंडस्ट्री की सफल यात्रा, चुनौतियां और भविष्य को लेकर किसान इंडिया से विशेष बातचीत की. उन्होंने चीनी के दाम, एमएसपी, एथेनॉल डायवर्जन समेत कई बिंदुओं पर खुलकर बात रखी है.
पिछले कुछ दशकों में चीनी इंडस्ट्री में जबरदस्त बदलाव आए हैं. इन बदलावों को आप कैसे देखते हैं
यह बात सही है कि पिछले चार दशकों में चीनी उद्योग में बहुत ज्यादा बदलाव आए हैं. इनकी प्रमुख वजह हैं इंडस्ट्री की तरक्की और मॉडर्नाइजेशन. गन्ने की खेती का रकबा दोगुना हो गया है, जिससे गन्ने का उत्पादन तीन गुना बढ़ गया है. 1980 के दशक के लगभग 1,500 लाख टन से आज लगभग 4,500 लाख टन उत्पादन हो गया है. प्रति हेक्टेयर उपज में भी काफी सुधार हुआ है. यह लगभग 57-58 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर लगभग 72-73 टन प्रति हेक्टेयर हो गई है, यानी लगभग 25 फीसदी की वृद्धि.
- रामतिल का एमएसपी 820 रुपये बढ़ा, सभी फसलों पर पिछले और इस साल के MSP में अंतर देखें
- गन्ना की खेती को मॉडर्न बना रहे 16 साल के यश, 101 प्रोजेक्ट से किसानों का 18 फीसदी बढ़ाया उत्पादन
- तुर्की बायकॉट के बीच पानी मांग रहा पाकिस्तान.. चिट्ठी पर फैसला लेगा भारत?
- गन्ना किसानों के लिए बड़ा फैसला, FRP 15 रुपये बढ़ाया, जानिए अब कितना मिलेगा दाम
भारत ऐसे चीनी उत्पादक देश के रूप में विकसित हुआ है, जिसके पास चीनी सरप्लस में है. अब यह ब्राजील के बाद दुनिया का दूसरा दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक है. सबसे उल्लेखनीय विकासों में से एक इथेनॉल उत्पादन क्षमताओं का तेजी से विस्तार हुआ है, जो 2019-20 में 430 करोड़ लीटर से लगभग दोगुना होकर इथेनॉल सप्लाई वर्ष 2024-25 में 850 करोड़ लीटर हो गया है. सितंबर 2025 तक इथेनॉल मिश्रण 19.12 फीसदी तक पहुंच गया है, जिससे देश अपने 20 फीसदी लक्ष्य के करीब पहुंच गया है.
यह इवॉल्यूशन या तरक्की जो हुई है, उसकी तमाम वजहें हैं. उनके कॉम्बिनेशन का नतीजा है कि आज हम जहां हैं. इन वजहों में लगातार रिसर्च और विकास है, गन्ना डेवलपमेंट में निवेश, तकनीक का विकास, बेहतर प्रदर्शन करने वाली किस्मों का आना और गैप यानी गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिस को अपनाना शामिल है.
इंडस्ट्री ने उस तरह के कामों को अपनाया है, जिन्हें सस्टेनेबल प्रैक्टिस कह सकते हैं. पानी को बचाने के लिए क्या करना है, उसे कैसे बेहतर तरीके से इस्तेमाल करना है और वेराइटल आइडेंटिफिकेशन पर भी फोकस किया है, जिससे गन्ने की नई एवं अच्छी उपज व चीनी परता में वृद्धि हो सके . इसके अलावा, गन्ने की खेती में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मतलब एआई के कितना और कैसे प्रयोग किया जा सकता है, इस तरफ भी प्रयास चल रहे हैं, जो उद्योग के विकास और स्थिरता के लिए एक रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाता है.
चीनी की कीमतों यानी न्यूनतम बिक्री मूल्य को लेकर बात कर लेते हैं, जिसे लेकर इंडस्ट्री लगातार आवाज उठाती रही है. 2019 से चीनी की MSP 31 रुपये तय की गई है, जबकि दूध और ज्यादातर कृषि उत्पादों की कीमतों में अच्छी-खासी बढ़ोतरी देखी गई है. क्या आपको लगता है कि सरकार को चीनी का एमएसपी बढ़ाना चाहिए और क्यों?
यकीनन, इसकी सख्त जरूरत है. ये इंडस्ट्री की जरूरत है. सरकार को चीनी उद्योग के वित्तीय स्वास्थ्य और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) को संशोधित करना चाहिए. पिछले दशक में, लगभग सभी प्रमुख कृषि वस्तुओं में काफी अधिक वृद्धि देखी गई है. चाहे इसे सीएजीआर यानी चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के हिसाब से देखें या ओवरऑल कीमतों में बढ़ोतरी देखें, तो बड़े प्रतिशत में वृद्धि देखी गई है. दूसरी तरफ चीनी की कीमतों में केवल 25 फीसदी की वृद्धि हुई है. जरूरी वस्तुओं में बढ़त पर नजर डाली जाए तो सबसे कम. बढ़ती लागत और किसानों की सहायता के लिए गन्ने के लिए उचित और लाभकारी मूल्यों (एफआरपी) में बढ़ोतरी के बावजूद, चीनी का एमएसपी 2019 से 31 रुपये प्रति किलोग्राम पर स्थिर रहा है. तब गन्ने का एफआरपी 275 रुपए रुपये प्रति क्विंटल था. 2024-25 में यह बढ़कर 340 और इस वर्ष यानी 2025-26 के लिए 355 रुपए है.
एफआरपी और एमएसपी के बीच बढ़ता यह असंतुलन चीनी मिलों पर काफी वित्तीय दबाव डालता है, जिससे किसानों को समय पर भुगतान करने और कैपेसिटी बिल्डिंग में निवेश करने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है. इसे स्वीकार करते हुए, इस्मा ने लगातार चीनी के एमएसपी में संशोधन और गन्ने के एफआरपी के साथ इसको अलाइन करने की वकालत की है. इसके अलावा, इस्मा ने चीनी के एमएसपी के साथ गन्ने के एफआरपी के अलाइनमेंट के लिए एक व्यावहारिक लिंकेज फॉर्मूले का प्रस्ताव दिया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि गन्ने की कीमतों में किसी भी वृद्धि का चीनी की कीमतों में आनुपातिक वृद्धि से मिलान किया जाए.
बाजार की वास्तविकताओं और लागत संरचनाओं के अनुसार एमएसपी को संशोधित करने से न केवल चीनी उद्योग की विकास क्षमता या वायबिलिटी सुनिश्चित होगी, बल्कि गन्ने की खेती पर निर्भर 5.5 करोड़ किसानों को भी मदद मिलेगी. इसलिए सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह एक संतुलित और टिकाऊ कृषि-अर्थव्यवस्था बनाए रखने के लिए इस संशोधन पर तत्काल विचार करे.
आपको आसानी से समझ आए, इसलिए कुछ उदाहरण देता हूं. चीनी के दामों में दस साल में 25 फीसदी बढ़त हुई है. प्याज के 83, अरहर दाल 120, दूध 66, चावल 57, गेहूं का आटा 65 और सरसों का तेल 55 फीसदी बढ़ा है. गन्ने की कीमतों में प्रति क्विंटल 62 फीसदी का इजाफा हुआ है. सीएजीआर में भी चीनी और बाकियों में बड़ा फर्क है. जैसे चीनी का सीएजीआर 2.3 प्रतिशत है, जबकि अरहर दाल 8.2 प्रतिशत है.
गन्ना और इथेनॉल उत्पादन को बेहतर बनाने के लिए सरकार को और क्या चाहिए?
भारत ने इथेनॉल मिश्रण के लिए जो लक्ष्य रखा था, उस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है. सितंबर 2025 तक पेट्रोल में इथेनॉल का प्रतिशत लगभग 19.12 तक पहुंच गया है और अब 2025-26 तक 20 फीसदी के लक्ष्य को पूरा करने के लिए हम बहुत अच्छी स्थिति में है. इस वृद्धि की प्रमुख वजह यह रही कि गन्ने के रस और बाइ प्रॉडक्ट बी-हैवी और सी-हैवी शीरे का जिस तरह रणनीतिक उपयोग किया गया. इस वजह से घरेलू चीनी की उपलब्धता को प्रभावित किए बिना इथेनॉल उत्पादन को बढ़ाने में कामयाबी मिली.
भविष्य की संभावनाएं देखें, तो अभी विकास की पर्याप्त क्षमता है. खासतौर पर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे प्रमुख राज्यों में चीनी मिलों के साथ एक ही स्थान पर स्थित इथेनॉल डिस्टिलरी के विस्तार के माध्यम से. यह इंटीग्रेशन यानी एकीकरण भारी मूल्यवर्धन के अवसर, बेहतर मूल्य स्थिरता और टिकाऊ ग्रामीण आर्थिक विकास के अवसर पैदा करता है.
इस क्षमता को पूरी तरह से प्राप्त करने के लिए कुछ पॉलिसी लेवल पर हस्तक्षेप जरूरी और अहम हैं. जैसे, इथेनॉल खरीद मूल्यों में संशोधन और गन्ने के एफआरपी के साथ इसका संबंध.
इथेनॉल इकाइयों की स्थापना या अपग्रेडेशन के लिए वित्तीय इंसेंटिव में सहयोग. पर्यावरण और नियामक अप्रूवल्स जल्दी मिलना सुनिश्चित किया जाए. साथ में दक्षता और उत्पादन को बढ़ाने के लिए तकनीकी अपग्रेडेशन सुनिश्चित किया जाए. इन उपायों के साथ, चीनी क्षेत्र न केवल भारत के इथेनॉल लक्ष्यों में बल्कि इसकी ऊर्जा सुरक्षा, ग्रामीण समृद्धि और जलवायु प्रतिबद्धताओं में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है.
निरंतर और आर्थिक रूप से व्यवहार्य इथेनॉल उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए, सरकार को कुछ और कदम उठाने की भी जरूरत है. पहला, गन्ने के रस और बी हैवी शीरे से बने इथेनॉल खरीद मूल्यों को 2022-23 ईएसवाई के बाद से संशोधित नहीं किया गया है. गन्ने के सिरप, बी-हैवी शीरा (बीएचएम) और सी-हैवी शीरा (सीएचएम) जैसे फीडस्टॉक्स के लिए खरीद मूल्यों को बढ़ते इनपुट और परिचालन लागत के अनुरूप संशोधित करना जरूरी है. ये उपाय चीनी मिलों की वित्तीय स्थिरता में मदद करेंगे और इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा.
इसके साथ डिस्टिलरीज में कैपेसिटी बिल्डिंग की जरूरत है. इथेनॉल भंडारण और परिवहन के लिए बुनियादी ढांचा होना चाहिए. राज्य और केंद्रीय स्तरों पर परियोजना के अप्रूवल प्रोसेस को आसान बनाए जाने की जरूरत है और इसमें तेजी लानी पड़ेगी. यानी अप्रूवल में कम से कम समय लगे. इन सारी चीजों से उत्पादन को बढ़ाने, लॉन्ग टर्म वायबिलिटी लाने और इस क्षेत्र को भारत के व्यापक जैव ईंधन और कृषि स्थिरता लक्ष्यों के साथ अलाइन करने में मदद मिलेगी और हम लक्ष्य पूरा कर पाएंगे.
भारतीय चीनी मिलों के सामने तीन सबसे बड़ी चुनौतियां क्या हैं?
भारतीय चीनी उद्योग सिस्टम से जुड़ी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. जैसे एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य, जिसका मैंने आपके शुरुआती सवाल में भी जिक्र किया. एक बार फिर उसकी बात कर लेते हैं. गन्ने के एफआरपी में लगातार वृद्धि और बढ़ती उत्पादन लागत के बावजूद, 2019 से चीनी के लिए एमएसपी 31 रुपये प्रति किलोग्राम है. इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है. इसने चीनी मिलों के लिए मुनाफा और लिक्विडिटी, दोनों मोर्चों पर चुनौतियां पैदा की हैं.
गन्ने के एफआरपी यानी उचित और लाभकारी मूल्य और चीनी के एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य के बीच एक पारदर्शी और ऑटोमेटिक संबंध स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता है. 2019 के बाद से, एमएसपी 31 रुपये प्रति किलोग्राम पर स्थिर रहा है, जबकि एफआरपी 275 रुपये से बढ़कर 355 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. यह 29 फीसदी की वृद्धि है, जो चीनी की कीमतों में रिफ्लेक्ट नहीं हुई है.
इस्मा ने एफआरपी का एक फॉर्मूला सुझाया है.
MSP of Sugar (in Rs/kg) = [ (FRP per unit recovery in Rs/kg sugar) X 1.16*]
*An increment of 0.01 for each subsequent year (हर दूसरे वर्ष 0.01 की बढ़ोतरी)
इस फॉर्मूले के मुताबिक, 2025-26 एसएस के लिए चीनी का एमएसपी 40.24 रुपये प्रति किलोग्राम होना चाहिए.
एक और चुनौती की बात करते हैं. वह है चीनी उत्पादन की बढ़ती लागत. गन्ने की कीमतों, सावधि ऋणों पर ब्याज, संयंत्र और मशीनरी मूल्यह्रास और ऊर्जा और कच्चे माल की लागत सहित इनपुट लागतों में लगातार वृद्धि देखी गई है. इन बढ़ते वित्तीय बोझ की भरपाई वर्तमान चीनी और इथेनॉल मूल्य निर्धारण नीतियों द्वारा पर्याप्त रूप से नहीं की जा सकती है.
इसके अलावा, इथेनॉल खरीद मूल्यों में संशोधन, जिसके बारे में हमने पिछले सवाल में बात की. फिर है पॉलिसी मिसमैच और रेग्युलेटर से संबंधित अड़चन. एक तरफ सरकार ने नियमित एफआरपी वृद्धि के माध्यम से किसानों का समर्थन किया है, मिलों की व्यवहार्यता की सुरक्षा के लिए कोई समानांतर तंत्र नहीं है.
इसके अतिरिक्त, राज्य के नियमों में एकरूपता की कमी ऑपरेशनल यानी परिचालन दक्षता में और बाधा डालती है.
इन चुनौतियों का सामना करना-विशेष रूप से एमएसपी को संशोधित करके, एफआरपी के साथ एमएसपी लिंकेज सुनिश्चित करना, और चीनी आधारित फीडस्टॉक्स की इथेनॉल कीमतें और एफआरपी के साथ इसका लिंकेज-चीनी मिलों की वित्तीय स्थिरता और भारत की चीनी-इथेनॉल वैल्यू चेन की पूरी तरह सफलता के लिए आवश्यक हैं.
आज की पीढ़ी स्वास्थ्य को लेकर बहुत सचेत है, अक्सर कम कार्ब, जीरो शुगर खाने की बात होती है. लाइफ स्टाइल से जुड़ी बीमारियों के बढ़ने के साथ, उद्योग भारत की प्रति व्यक्ति चीनी की खपत को कैसे बढ़ाएगा?
हेल्थ अवेयरनेस बढ़ रही है और यह अच्छी बात है. लेकिन बढ़ती अवेयरनेस और बदलती आहार प्राथमिकताओं के बावजूद भारत की घरेलू चीनी की खपत स्थिर बनी हुई है. चीनी सीजन (एसएस) 2023-24 में, खपत लगभग 290 लाख टन थी. इसके बारे में कह सकते हैं कि चुनावों के दौरान बढ़ी हुई मांग और अनियमित सीमा पार निर्यात की वजह से थोड़ा-बहुत प्रभावित थी. एसएस 2024-25 के लिए, घरेलू चीनी की खपत लगभग 280 लाख टन होने का अनुमान है, जो हमारे टिपिकल हिस्टोरिकल पैटर्न के मुताबिक ही है.
अब बात करें कि प्रति व्यक्ति खपत बढ़ाने के लिए उद्योग का नजरिया क्या है. इसके लिए बहुत जरूरी है कि कंज्यूमर इनसाइट और पॉलिसी रिसर्च. इस्मा इस पर लगातार काम कर रहा है. हम पूरे भारत में चीनी की खपत के पैटर्न का अध्ययन करने के लिए अनुसंधान एजेंसियों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ रहे हैं. इसका उद्देश्य वर्तमान रुझानों और क्षेत्रीय विविधताओं की गहरी समझ विकसित करना है. यह डेटा-संचालित नजरिया उद्योग और सरकार को संतुलित चीनी की खपत और जानकारी भरा निर्णय लेने के लिए प्रभावी नीतियों और एडवोकेसी स्ट्रैटेजी को तैयार करने में मदद करेगा.
इसके अलावा ग्रामीण और गैर-मेट्रो बाजारों का विस्तार हो रहा है. टियर टू और टियर थ्री शहरों में विकास की संभावना है, जहां जीवन शैली में बदलाव और आय के बढ़ते स्तर से पैकेज्ड खाद्य पदार्थों, मिठाइयों और पेय पदार्थों की मांग बढ़ रही है. वेल्यू ऐडेड प्रोडक्ट्स पर फोकस है. घरेलू पर कैपिटा कंजप्शन तो शायद बहुत तेजी से न बढ़े. लेकिन ब्रैंडेड और वेल्यू ऐडेड शुगर प्रोडक्ट्स के प्रोडक्शन और मार्केटिंग में काफी उम्मीदें हैं.
गन्ने को ऐसी फसल के तौर पर देखा जाता है, जिसमें पानी की बहुत खपत है. हालांकि, हाल के वर्षों में पानी बचाने को लेकर काफी प्रयास हुए हैं और कामयाबी भी मिली है. आपके दृष्टिकोण से, पानी के उपयोग के मामले में गन्ने की खेती को और बेहतर बनाने के लिए क्या कुछ नई तकनीक, नई सोच अपनाई जानी चाहिए?
भारत सरकार की विशेषज्ञ समिति द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, गन्ना इथेनॉल उत्पादन के लिए सबसे अधिक वॉटर एफिशिएंट फसलों में से एक है. इसको ऐसे समझिए, मक्का के लिए 4,760 लीटर और चावल के लिए 10,790 लीटर की तुलना में प्रति लीटर इथेनॉल के लिए लगभग 3,630 लीटर पानी की जरूरत होती है. यह गन्ने को चावल की तुलना में 66 फीसदी कम पानी का उपयोग करने और महत्वपूर्ण जल संसाधनों का संरक्षण करते हुए भारत के इथेनॉल टारगेट में योगदान देने के लिए एक अधिक टिकाऊ विकल्प बनाता है.
मैं आपके साथ कुछ आंकड़े साझा करूंगा, जो आप दिखा सकते हैं. ISMA-ICAR द्वारा किए जा रहे अध्ययन में साफतौर पर प्रमुख फसलों के बीच गन्ने की बेहतर जल उत्पादकता पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें 7.14 किलोग्राम प्रति घन मीटर पानी का उत्पादन किया गया है, जबकि गेहूं के लिए 1.21 किलोग्राम, चावल के लिए 0.81 किलोग्राम और मक्के के लिए 0.79 किलोग्राम है. इसका मतलब है कि गन्ना अन्य मुख्य फसलों की तुलना में पानी की प्रति इकाई 6 से 9 गुना अधिक उपज देता है, जो एक अत्यधिक जल-कुशल और टिकाऊ फसल के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करता है-विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और बढ़ती पानी की कमी के संदर्भ में महत्वपूर्ण है.
भारतीय चीनी उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले एक प्रमुख संगठन के रूप में आप इस्मा की यात्रा को कैसे देखते हैं?
इंडियन शुगर एंड बायो-एनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन यानी इस्मा भारत के चीनी क्षेत्र के विकसित परिदृश्य के अनुरूप एक महत्वपूर्ण परिवर्तन से गुजरा है. दिसंबर 2023 तक हमारी संस्था इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के रूप में जानी जाती थी. जनवरी 2024 से, एसोसिएशन ने अपनी नई पहचान को अपनाया ताकि न केवल चीनी क्षेत्र पर, बल्कि इथेनॉल, कम्प्रेस्ड बायोगैस यानी सीबीजी और सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल, एसएएफ जैसे जैव-ऊर्जा समाधानों पर भी ध्यान केंद्रित किया जा सके.
90 से अधिक वर्षों की विरासत के साथ, इस्मा निजी चीनी मिलों और बायो एनर्जी मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर के विस्तार का प्रतिनिधित्व करने वाली एपेक्स बॉडी के रूप में उभरा है. इसके नेतृत्व ने भारत में एक स्थायी, कुशल और भविष्य के लिए तैयार चीनी उद्योग को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
चीनी उद्योग के विकास और परिवर्तन में इस्मा के काफी योगदान है. इसमें स्ट्रेटेजिक पॉलिसी के संबंध में हमारा रोल है. हमने यानी इस्मा ने चीनी मिलों का सपोर्ट करने, किसानों के लिए उचित मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करने और बाजार की स्थिरता बनाए रखने के लिए ढांचा विकसित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के साथ काम करते हुए नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
डेटा-संचालित पूर्वानुमान और अनुसंधान में हमने काफी काम किया है. इस्मा ने राज्यों में गन्ने के रकबे का अनुमान लगाने के लिए उपग्रह इमेजरी के उपयोग का बीड़ा उठाया, जिससे उत्पादन पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार हुआ. यह योजना और विश्लेषण के लिए सरकार और उद्योग के हितधारकों द्वारा उपयोग किए जाने वाले एक समृद्ध डेटाबेस को भी बनाए रखता है.
बायो रिफाइनरीज के ट्रांसफॉर्मेशन में इस्मा का रोल है. पारंपरिक मिलों को इंटीग्रेटेड बायो रिफाइनरीज में बदलने का सपोर्ट हम करते हैं और इसका साथ देते हैं. इससे वे न केवल चीनी और इथेनॉल बल्कि बिजली, एसएएफ, सीबीजी और अन्य जैव-आधारित रसायनों का उत्पादन करने में सक्षम होते हैं. यह भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता और जलवायु लचीलेपन के लक्ष्यों में योगदान करते हुए चीनी मिलों की राजस्व क्षमता को बढ़ाता है.
कुल मिलाकर इस्मा की यात्रा एक पारंपरिक इंडस्ट्री बॉडी से परिवर्तन के लिए एक प्रगतिशील उत्प्रेरक के रूप में एक प्रगतिशील परिवर्तन को दर्शाती है. हरित ऊर्जा को अपनाकर, स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देकर और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ उद्योग के उद्देश्यों को अलाइन करके, इस्मा एक लचीला, विविध और भविष्य के लिए तैयार भारतीय चीनी और जैव-ऊर्जा क्षेत्र को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.