भारत के डेयरी उद्योग के लिए बड़ी खुशखबरी है. नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB) ने अब देश में ही स्टार्टर कल्चर बनाना शुरू कर दिया है. स्टार्टर कल्चर वे जीवाणु (बैक्टीरिया) होते हैं, जिनकी मदद से दही, लस्सी, छाछ, दही-आधारित पेय और चीज जैसे फर्मेंटेड उत्पाद तैयार किए जाते हैं. अब तक भारत को इन कल्चर के लिए यूरोपीय देशों पर निर्भर रहना पड़ता था, जिससे उत्पादन महंगा भी होता था और सप्लाई पर खतरा भी बना रहता था.
अब विदेश से नहीं मंगाने होंगे कल्चर
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, गुजरात के आनंद में NDDB ने नया रेडी-टू-यूज कल्चर (RUC) प्लांट शुरू किया है. यहां तैयार किए गए स्टार्टर कल्चर सीधे देश की बड़ी डेयरी कंपनियों जैसे अमूल, बनास डेयरी और मदर डेयरी को सप्लाई किए जा रहे हैं. NDDB का कहना है कि इससे न सिर्फ लागत घटेगी बल्कि उत्पाद की क्वालिटी भी बेहतर होगी.
NDDB के चेयरमैन मीनैश शाह के मुताबिक, पहले भारत को बड़ी मात्रा में कल्चर डेनमार्क और अन्य यूरोपीय देशों से मंगवाने पड़ते थे. लेकिन अब यह तकनीक भारत में विकसित हो चुकी है. नई तकनीक से बने कल्चर ज्यादा बैक्टीरिया वाले, लंबे समय तक सुरक्षित और इस्तेमाल में आसान हैं.
एक किलो दही में सिर्फ 30 पैसे का खर्च
NDDB के अनुसार, उनके बनाए स्टार्टर कल्चर काफी किफायती हैं. उदाहरण के तौर पर बाजार में बिकने वाले 60 रुपये के एक किलो दही में सिर्फ 30 पैसे का RUC इस्तेमाल होता है. यानी किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए यह फायदेमंद सौदा है.
अत्याधुनिक प्लांट से बड़े पैमाने पर उत्पादन
आनंद स्थित इस प्लांट में एक दिन में करीब 10 लाख लीटर दूध को फर्मेंट करने की क्षमता है. इसमें अत्याधुनिक फ्रीज ड्रायर, कंसेंट्रेटर और फर्मेंटर मशीनें लगाई गई हैं. जुलाई 2025 में गृह मंत्री अमित शाह ने इस प्लांट का उद्घाटन किया था. फिलहाल इसमें 38.50 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है और अगले साल तक इसकी क्षमता दोगुनी करने की तैयारी है.
बड़े ब्रांडों ने किया टेस्ट
NDDB का कहना है कि उनके बनाए कल्चर अमूल, बनास डेयरी और मदर डेयरी जैसे बड़े ब्रांड्स ने टेस्ट किए हैं और रिजल्ट सकारात्मक रहे हैं. हालांकि, कंपनियों की अपनी जरूरतों के हिसाब से कल्चर को और एडजस्ट करने पर काम चल रहा है.
300 करोड़ का बाजार, 20 फीसदी हिस्सेदारी का लक्ष्य
भारत में रेडी-टू-यूज कल्चर का बाजार करीब 300 करोड़ रुपये का है. NDDB का लक्ष्य है कि आने वाले समय में इसमें कम से कम 20 फीसदी हिस्सेदारी हासिल की जाए. इससे न सिर्फ विदेशी निर्भरता घटेगी बल्कि भारतीय डेयरी सेक्टर और भी मजबूत होगा.