काली हल्दी की खेती बनाएगी लखपति, 1 एकड़ फसल से होगी 16 लाख तक की कमाई
काली हल्दी की खेती के लिए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड, तेलंगाना, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल आदि राज्य सबसे सही हैं. काली हल्दी की एक खासियत है कि इसकी फसल में कीट और रोग बहुत कम लगते हैं इसलिए अगर जरूरत हो तो किसान फसल पर जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल करें.
किसान अपने खेतों में लगातार अलग-अलग प्रयोग करते रहते हैं. उनकी कोशिश हमेशा यही रहती है कि उन्हें खेती से अच्छा फायदा मिले. आज के किसानों के बीच पारंपरिक फसलों से अलग हटकर औषधीय फसलों की खेती काफी लोकप्रिय हो गई है. इन फसलों की खेती से किसानों को न केवल अच्छा उत्पादन मिलता है बल्कि बाजार में इनकी भारी मांग के कारण किसानों को अपने उत्पादन की अच्छी कीमत भी मिलती है. इन्हीं औषधीय फसलों में से एक है काली हल्दी (Black Turmeric), जो कि अपनी एक अलग गंध, काले-नीले रंग और औषधीय गुणों के कारण बहुत ही कीमती मानी जाती है.
आयुर्वेद में काली हल्दी को महत्वपूर्ण स्थान मिला हुआ है, कई तरह की आयुर्वेदिक दवाइयों को बनाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है. बता दें कि, बीते कुछ सालों में काली हल्दी की मांग में बढ़ोतरी हुई है जिसके कारण देश के किसान अब इसकी खेती बड़े पैमाने पर करने लगे हैं और ये किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित होती है. काली हल्दी से अच्छी पैदावार के लिए बेहद जरूरी है कि किसान इसकी खेती सही ढंग से करें.
ऐसे करें खेत की तैयारी
काली हल्दी की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी बेस्ट होती है जिसका pH मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए. इसकी बुवाई से पहले जरूरी है कि किसान खेत की अच्छे से 2 से 3 बाग गहरी जुताई कर लें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो सके और खरपतवार भी नष्ट हो सकें. किसानों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि मिट्टी में जैविक खाद पर्याप्त मात्रा में हो. खेत तैयार करते समय मिट्टी में प्रति एकड़ की दर से 15 से 20 टन गोबर की खाद जरूर मिलाएं. इसके बाद खेत में क्यारियाँ बनाकर ड्रिप सिंचाई या नालियों से पानी की निकासी की व्यवस्था करें.
इस बात का खास खयाल रखना होगा कि खेत में पानी न भरे, ऐसा होने की स्थिति में फसल जड़ से सड़कर खराब होने लगेगी. बता दें कि, काली हल्दी की खेती के लिए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड, तेलंगाना, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल आदि राज्य सबसे सही हैं.
इस विधि से करें कंदों की रोपाई
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रति एकड़ फसल के लिए 800 से 1000 किग्रा काली हल्दी के कंद की जरूरत होती है. काली हल्दी के कंदों की रोपाई के लिए उन्हें मिट्टी में 5 से 7 सेमी गहराई में लगाएं. ध्यान दें कि, कतार से कतार की दूरी 35 से 40 सेमी वहीं पौधों के बीच दूरी 20 से 25 सेमी होनी चाहिए. एक बार किसान कंदों की रोपाई अच्छे से कर दें तो जरूरी होता है कि फसल को सही समय पर पानी दिया जाए.
आमतौर पर काली हल्दी की खेती मॉनसून सीजन में होती है इसलिए बरसात के पानी से ही फसल को पर्याप्त मात्रा में सिंचाई मिल जाती है लेकिन सूखे इलाकों में इसकी फसल को सिंचाई की जरूरत होती है. ऐसे में खेत की 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें.काली हल्दी की एक खासियत है कि इसकी फसल में कीट और रोग बहुत कम लगते हैं इसलिए अगर जरूरत हो तो किसान फसल पर जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल करें.
काली हल्दी का फूल (Photo Credit- Canva)
फसल कटाई का सही समय और पैदावार
काली हल्दी की फसल कंदों की रोपाई के करीब 8 से 10 महीने बाद जब पत्तियां सूखने लगती हैं, तब कटाई के लिए तैयार हो जाती है. जब पत्तियां सूखने लगें तो बहुत ही सावधानी से कंदों को जमीन से खोदकर बाहर निकालें. बात करें काली हल्दी से होने वाली पैदावार की तो किसान को प्रति एकड़ फसल से इसकी कच्ची गांठें लगभग 60 से 80 क्विंटल तक मिल सकती हैं. वहीं बात करें अगर सूखी गांठों की तो इसकी प्रति एकड़ फसल से किसान औसतम करीब 12 से 20 क्विंटल तक पैदावार ले सकते हैं. पैदावार की क्वालिटी और मांग पर निर्भर करता है कि बाजार में इसकी कीमत कितनी होगी.
वर्तमान में बाजार में काली हल्दी की कीमत 500 से 2 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक जा सकती है. इस लिहाज से काली हल्दी की खेती से एक किसान को होने वाली कुल कमाई का अंदाजा लगाया जाए तो वो करीब 5 लाख से 16 लाख रुपये तक होगी.
आयुर्वेद में काली हल्दी का महत्व
काली हल्दी एक शक्तिशाली औषधीय जड़ी-बूटी है, जिसे आयुर्वेद में बहुत पुराने समय से इस्तेमाल में लाया जा रहा है. काली हल्दी को शरीर के अंदर होने वाली बीमारियों से लड़ने में कारगर माना जाता है. साथ ही, अस्थमा, खांसी, ब्रोंकाइटिस आदि के इलाज में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. वहीं दूसरी ओर, गठिया, जोड़ों का दर्द, साइटिका जैसी बीमारियों में काली हल्दी के लेप या तेल का इस्तेमाल किया जाता है. बता दें कि, काली हल्दी में मौजूद औषधीय गुम कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने के लिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं.
विशेष रूप से सर्दियों और मॉनसून सीजन में होने वाली समस्याओं से लड़ने में काली हल्दी बेहद मदद करती है. शरीर की सूजन या दर्द को कम करने के लिए इसके तेल या लेप का इस्तेमाल किया जाता है.